क्या पुरुष को पुरुष और स्त्री को स्त्री से शादी करने का कानूनी अधिकार मिलेगा? अब इस पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की नई संवैधानिक बेंच गुरुवार से सुनवाई शुरू करेगी। नई बेंच 17 अक्तूबर 2023 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का रिव्यू करेगी। 17 अक्तूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानून कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 50 से ज्यादा रिव्यू पिटीशन दाखिल हुई थीं, जिनपर 9 जनवरी से सुनवाई शुरू होगी।
वैसे तो अक्तूबर 2023 के फैसले को लेकर दाखिल रिव्यू पिटीशन पर 5 जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर ही रही थी। मगर पिछले साल जस्टिस संजीव खन्ना इस बेंच से अलग हो गए थे। इसके बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी रिटायर हो गए। इस कारण नई बेंच बनी है, जो अब सुनवाई करेगी।
पांच जजों की नई बेंच में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस दीपांकर दत्ता होंगे। जस्टिस पीएस नरसिम्हा उस बेंच में भी थी, जिसने अक्तूबर 2023 में सेम सेक्स मैरिज को लेकर फैसला सुनाया था।
क्या था अक्टूबर 2023 का फैसला?
17 अक्टूबर 2023 को तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने समलैंगिक विवाह को ये कहते हुए कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था कि कानून बनाना संसद का काम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'अदालत कानून नहीं बना सकती। सिर्फ इसकी व्याख्या कर सकती है।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए समलैंगिक जोड़े इसे मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते।'
इसी तरह बच्चा गोद लेने के अधिकार की मांग पर कोर्ट ने कहा था, 'अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से बाहर नहीं रखा गया है, लेकिन नियम कहता है कि अविवाहित जोड़े कम से कम 2 साल तक वैवाहिक रिश्ते में रहें, तभी बच्चा गोद ले सकते हैं।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर किसी को अपना पार्टनर चुनने और LGBTQ+ को संबंध बनाने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा था, 'ट्रांसजेंडर महिला को पुरुष से और ट्रांसजेंडर पुरुष को महिला से शादी करने का अधिकार है। हर किसी को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है।'
समलैंगिकों की मांगें क्या हैं?
इसे लेकर सबसे पहली याचिका 14 दिसंबर 2022 को दाखिल हुई थी। इसके बाद देशभर की कई अदालतों में समलैंगिकों ने शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुईं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
समलैंगिकों की मांग थी कि स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए। उनका कहना था कि इस कानून में 'पुरुष और महिला की शादी' की बात कही गई है। इसमें 'पुरुष' और 'महिला' की जगह 'व्यक्ति' शब्द लिखा जाए। उनकी मांग थी कि जो अधिकार हेट्रोसेक्सुअल (विपरित लिंग) को मिले हैं, वही अधिकार होमोसेक्सुअल (समलैंगिक) को भी मिलें और उनकी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड की जाए।
इसके अलावा समलैंगिकों ने ये भी मांग की थी कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ+ समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में मिले।
केंद्र क्यों है इसके विरोध में?
केंद्र सरकार शुरू से ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करती रही है। केंद्र ने दलील देते हुए कहा था, 'भले ही IPC की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया गया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा किया जाए।'
केंद्र सरकार ने कहा था, 'कानून में पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसके मुताबिक ही दोनों के अपने-अपने अधिकार हैं। विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जाएगा?'
केंद्र ने तर्क देते हुए कहा था, 'समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक लेने, भरण-पोषण, विरासत जैसे मुद्दों में जटिलताएं पैदा होंगी। इनसे जुड़े सभी प्रावधान पुरुष और महिला के बीच हुई शादी पर आधारित हैं।'
समलैंगिक शादियों के विरोध में केंद्र ने कहा था, 'भारतीय समाज में शादी को संस्कार माना गया है। किसी भी पर्सनल लॉ या कानून में एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच शादी को न तो मान्यता दी गई है और न ही स्वीकृति। समलैंगिक शादी भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ है।'
वहीं, स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव का विरोध करते हुए केंद्र ने कहा था, 'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए तो सूर्यास्त के बाद महिलाओं को गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे? अगर गोद लिए बच्चे की कस्टडी मां के पास जाती है तो कैसे तय होगा कि मां कौन है?'
क्या समलैंगिक संबंध अपराध है?
भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है। दिसंबर 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने IPC की धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त कर दिया था। इसके बाद आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बने संबंध को अपराध नहीं माना जाता है। ये फैसला देते समय कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकों के भी वही अधिकार हैं, जो आम लोगों के हैं।
समलैंगिक शादियों को कहां-कहां मान्यता?
समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाला नीदरलैंड्स पहला देश है। यहां अप्रैल 2001 में ही इसे मान्यता मिल गई थी। अमेरिका के सभी 50 राज्यों में भी समलैंगिकों को शादी करने का कानूनी अधिकार मिला है। दुनिया के 37 देश ऐसे हैं, जहां समलैंगिकों की शादी को मान्यता मिलती है। इनमें ब्राजील, ब्रिटेन, जर्मनी , ऑस्ट्रेलिया , फ्रांस, बेल्जियम, स्पेन, नार्वे, स्वीडन, स्विटजरलैंड,आइसलैंड, लग्जमबर्ग, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, डेनमार्क, उरुग्वे, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, ग्रीनलैंड, कोलंबिया, फिनलैंड, माल्टा, ऑस्ट्रिया, इग्वेडर, कोस्टारिका, मेक्सिको, चिली, स्लोवेनिया, क्यूबा, एंडोरा, एस्टोनिया शामिल हैं।