'भारत कोई धर्मशाला नहीं है'...सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुआई वाली बेंच ने श्रीलंका के तमिल शरणार्थी की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस दीपंकर दत्ता ने श्रीलंकाई तमिल शख्स को हिरासत में लिए जाने के मामले में भी दखल देने से इनकार कर दिया है। दरअसल, श्रीलंकाई तमिल शख्स ने खुद को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमे दखल से शीर्ष अदालत ने साफ इनकार कर दिया।

 

सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि भारत हर देश से आने वाले शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकता। देश पहले से ही 140 करोड़ की विशाल जनसंख्या को संभाल रहा है, जिसके कारण संसाधनों पर भारी दबाव है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों को नागरिकों जैसे अधिकार देने या उनकी हर मांग को पूरा करने की उम्मीद करना व्यवहारिक नहीं है। 

 

यह भी पढ़ें: UAE से लेकर सऊदी अरब तक...15 देश जो खरीदना चाहते हैं ब्रह्मोस मिसाइल

भारत की शरणार्थी नीति

भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या 1967 के प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है। इसका मतलब है कि भारत अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। फिर भी, भारत ने मानवीय आधार पर कई शरणार्थियों को पनाह दी है, जैसे तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल, और म्यांमार के चिन शरणार्थी। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, भारत में मौजूद हर व्यक्ति (नागरिक हो या विदेशी) को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत कुछ बुनियादी अधिकार मिलते हैं। इसीलिए शरणार्थी भी कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं। भारत में रोहिंग्या (म्यांमार से), बांग्लादेशी, और अन्य अवैध प्रवासियों की मौजूदगी एक बड़ा मुद्दा है।

 

140 करोड़ जनसंख्या

भारत की आबादी 2023 में 142.86 करोड़ को पार कर गई, जो चीन से भी ज्यादा है। इतनी बड़ी आबादी के कारण संसाधन (पानी, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा) पहले से ही सीमित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में अतिरिक्त शरणार्थियों को समायोजित करना चुनौतीपूर्ण है। बढ़ती जनसंख्या के साथ शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों का मुद्दा सरकार के लिए जटिल है। 

 

यह भी पढ़ें: कर्नल सोफिया पर विवादित बयान, मंत्री के खिलाफ SIT गठित

 

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का मतलब

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत की प्राथमिक जिम्मेदारी अपने नागरिकों की है। शरणार्थियों को मानवीय आधार पर कुछ अधिकार दिए जा सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर शरणार्थी को भारत में रहने या नागरिकों जैसे अधिकारों की गारंटी दी जाए। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में म्यांमार भेजे गए रोहिंग्याओं को वापस बुलाने और मुआवजा देने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया है लेकिन अनुच्छेद 21 के तहत उनकी सुनवाई का अधिकार बरकरार है।