22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने हमला करके 26 निर्दोष भारतीयों की जान ले ली। इस हमले के बाद पूरे देश में गुस्से का उबाल उठ खड़ा हुआ। भारत पर नापाक आतंकी हमले को देखते हुए भारत सरकार ने एक के बाद एक पाकिस्तान पर जल, व्यापार और राजनयिक संबंध खत्म कर दिए। प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सीडीएस और तीनों सेनाओं के प्रमुख एक के बाद एक पाकिस्तान के खिलाफ रणनीतिक बनाने के लिए हाई लेवल बैठकें करने लगे।
आखिरकार, भारतीय वायु सेना ने 15 दिन के मैराथन बैठकों के बाद रात लगभग 1:30 बजे पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक करके ध्वस्त कर दिया। इस एयर स्ट्राइक को भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया। भारत की एयर स्ट्राइक से बौखलाया पाकिस्तान और उसकी सेना ने सीमा पर लागू सीजफायर का उल्लंघन करके गोलीबारी करने लगी। भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी सेना को उसकी भाषा में कड़ा जवाब दिया।
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8 और 9 मई को क्या हुआ?
ऑपरेशन सिंदूर ने लॉन्च होने के अगले दिन यानि 8 और 9 मई को पाकिस्तान ने भारत के जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कई शहरों में हैवी ड्रोन हमले किए, मगर भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने सभी को हवा में ही नष्ट कर दिया। बदले में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के पांच एयर बेस पर हमले करके उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। दोनों देशों के बीच यह संघर्ष युद्ध की शक्ल ले रहा था कि तभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई की शाम लगभग 5 बजे ऐलान किया कि भारत-पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान पर उठे सवाल
डोनाल्ड ट्रंप के इस ऐलान के बाद सवाल उठने लगे कि आखिर अमेरिका ने कैसे भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्ता करवाते हुए सीजफायर करवा दिया। हालांकि, उसी शाम भारत के विदेश विक्रम मिसरी ने साफ किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ सीजफायर दोनों देशों के DGMO स्तर की बातचीत के बाद हुआ है, इसमें किसी तीसरे पक्ष का दखल नहीं है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर का श्रेय लेने की पूरी जुगत लगा रहे हैं।
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शिमला समझौते के अस्तित्व पर सवालिया निशान
अमेरिकी राष्ट्रपति के दावों से शिमला समझौते के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। दरअसल, भारत अपने आंतरिक मसले में किसी भी तीसरे देश का हस्तक्षेप नहीं मानता है। यानि कि अगर मुद्दा भारत का है तो इसको भारत ही अपने तरीके से सुलझाएगा। ऐसे में अमेरिका के सीधे हस्तक्षेप से केंद्र सरकार पर सवालिया निशान उठने लगे क्योंकि 1971 में हुए शिमला समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत से करेंगे। तीसरे पक्ष की ओर से कोई मध्यस्थता नहीं की जाएगी।
शिमला समझौते में और क्या-क्या शर्तें तय की गई थीं, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्या है शिमला समझौता?
1971 में भारत-पाकिस्तान जंग के बाद उनके 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को बंदी बनाया गया था। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार, पाकिस्तान युद्ध बंदियों को छुड़ाने की कवायद शुरू हुई। फिर दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध के लिए 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौता हुआ।
समझौते की अहम बातें
- दोनों देशों ने 17 सितंबर 1971 को युद्ध विराम के रूप में मान्यता दी। तय हुआ कि इस समझौते के 20 दिनों के भीतर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमा में वापस चली जाएंगी।
- यह भी तय हुआ कि दोनों देशों/सरकारों के अध्यक्ष भविष्य में भी मिलते रहेंगे। संबंध सामान्य बनाए रखने के दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।
- दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे। तीसरे पक्ष द्वारा कोई मध्यस्थता नहीं की जाएगी।
- यातायात की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी। ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ-जा सकें।
- जहां तक संभव होगा, व्यापार और आर्थिक सहयोग फिर से स्थापित किए जाएंगे।
शिमला समझौते पर कहां बनी थी सहमति?
बता दें कि दो जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में बार्नेस कोर्ट में हुई बैठक में दोनों देश समझौते पर सहमत हुए थे। इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने साइन किए थे। इसीलिए इसे शिमला समझौता कहा जाता है। बार्नेस कोर्ट वर्तमान में हिमाचल प्रदेश का राजभवन है। राजभवन में आज भी शिमला समझौते की निशानियां मौजूद हैं। इस समझौते में दोनों देशों ने शांतिपूर्ण तरीकों और बातचीत के जरिए अपने मतभेदों का समाधान करने की प्रतिबद्धता जताई थी।