'मेरे पास अपनी बुरी किस्मत की कहानियां लेकर मत आया करो। मैं उसे सिर्फ इसलिए सजा दे दूं कि वह अच्छा कारोबार कर रहा है?' देश की राजधानी दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में बने एक दफ्तर में केंद्रीय वित्त मंत्री वी पी सिंह ने ऐसा कहा तो उनसे मिलने आए लोगों के चेहरे सफेद पड़ गए। किसी की शिकायत लेकर आए इन बड़े कारोबारियों को एहसास हुआ कि वी सिंह तो खुद ही उस शख्स के कायल हैं। अपना सा मुंह लेकर लौट रहे इन लोगों में उस समय की दिग्गज म्यूजिक कंपनी TIPS और सारेगामा के साथ-साथ कई अन्य कंपनियों के शीर्ष पदों पर बैठे लोग थे। जिस शख्स की शिकायत हो रही थी वह कुछ साल पहले तक इसी दिल्ली में जूस बेचा करता था और अब म्यूजिक कैसेट बेचने वालों के कान काट रहा था।

 

साल 1984 से 1987 के बीच देश के वित्त मंत्री का पद संभालने वाले वी पी सिंह से मिलने पहुंचे लोगों में से कई पर बाद में हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगा। कुछ गिरफ्तार भी हुए। कुछ से पूछताछ भी हुई लेकिन ज्यादातर छूट गए। यह कहानी है मंदिर की सीढ़ियों पर गोलियों से भून दिए गए मशहूर गायक और कैसेट किंग के नाम से मशहूर गुलशन कुमार की। उसी गुलशन कुमार की जिसके बारे में कहा जाता था कि वह किसी भी फिल्म और गाने को चुराकर अपने कैसेट बना लेता है और उसी कैसेट को ओरिजिनल से कम दाम में बेच देता है। इतना ही नहीं, इस बात के लिए जब दूसरे कैसेट निर्माता धमकाते तो वह आगे से ऐसा न करने की बात कहकर निकल जाते लेकिन फिर से वही होता।

जूस विक्रेता से कैसेट किंग तक का सफर

 

साल 1997 में हत्या किए जाने से पहले लगभग डेढ़ दशक में गुलशन कुमार ने दो काम खूब तबीयत से किए। पहला कि लाखों-करोड़ों कैसेट बनाकर जमकर पैसा और प्यार बटोरा। दूसरा- यही कैसेट बनाने के चक्कर में प्रतिद्वंद्वी कंपनियों और अंडरवर्ल्ड के निशाने पर आ गए। ये दो काम करने से पहले गुलशन कुमार एक तीसरा काम करते थे। वह था दिल्ली के दरियागंज में जूस बेचने का। संगीत का जुनून कहें या फिर हद से ज्यादा बड़े सपने, जूस पिलाकर मन तृप्त करने वाले इस लड़के ने फैसला कर लिया कि वह अब संगीत सुनाया करेगा। बेटे के लिए पिता ने भी जेब ढीली करने से पहले ज्यादा नहीं सोचा और म्यूजिक रेकॉर्डस और कैसेट बेचने वाली एक दुकान खरीद ली। इसी दुकान से गुलशन कुमार ने कैसेट की दुनिया में कदम रखा। गुलशन कुमार ने सस्ते कैसेट बनाने शुरू कर दिए।

 

गुलशन कुमार ने सबसे पहले एक ही कैसेट से सैकड़ों, हजारों और लाखों कैसेट बनाने शुरू किए। यानी वह महंगे दाम पर एक कैसेट खरीदते, उसे नए कैसेट में कॉपी करते और इस नए कैसेट को 25 रुपये में बेच देते जबकि उनकी लागत सिर्फ 7 रुपये होती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि उस समय कैसेट मार्केट पर राज करने वाली म्यूजिक इंडिया और पॉलीडोर जैसी कंपनियां हिल गईं। दरअसल, उस समय इंडियन कॉपीराइट एक्ट में गुलशन कुमार ने एक लूपहोल ढूंढ लिया था। इसी के जरिए वह किसी एक का कैसेट कॉपी करने के बजाय HMV और पॉलीडोर के कैटलॉग से म्यूजिक उठाते, उसे एक कैसेट में भर देते और उसे टी सीरीज के नाम से बेच देते।

 

इस तरह से बने हुए कैसेट सस्ते होन के साथ-साथ क्वालिटी में भी थोड़े हल्के होते थे। ऐसे में गुलशन कुमार ने एक और दांव खेला। अगर कोई भी कैसेट खराब निकल जाए तो उसे फ्री में बदला जा सकता था। उनकी इस चाल ने हर घर तक उन्हें पहुंचा दिया। जहां HMV और पॉलीडोर जैसे संस्थान तमाम कानूनों से बंधे होते थे और टैक्स चुकाते थे, वहीं गुलशन कुमार का टी सीरीज शुरुआत में इन सभी बंधनों से मुक्त था।

कभी पकड़ी नहीं जाती थी चोरी

 

इतना ही नहीं, यह भी कहा जाता है कि गुलशन कुमार का नेटवर्क इतना मजबूत था कि न तो उनके पाइरेटेड कैसेट कभी पकड़े जाते और न ही कभी ऐसा होता कि वह कॉपीराइट केस में फंसे हों। यहां तक कि छापेमारी से पहले पुलिस के लोग ही गुलशन कुमार को सूचना दे देते थे। नतीजा यह हो रहा था कि देखते ही देखते गुलशन कुमार की कमाई कई गुना बढ़ती जा रही थी। उनका कारोबार बढ़ रहा था और कैसेट मार्केट पर टी-सीरीज का कब्जा होता जा रहा था।

 

उस समय के इंडस्ट्री से जुड़े लोग कहते थे, 'गुलशन कुमार को चोरी ही करनी होती थी। वह चाहते तो खुद का बिजनेस बना सकते थे लेकिन वह किसी के हिट गानों को ऐसे ही नहीं जाने देते थे और उसकी कमाई में हिस्सा लेने का तरीका निकाल लेते थे।' एक और चीज ने गुलशन कुमार का बहुत साथ दिया, वह थी म्यूजिक की समझ। गुलशन कुमार के विरोधी भी मानते थे कि उन्हें इतनी समझ थी कि वह पहले ही बता देते थे कि कौनसे गाने का कैसेट बिकेगा। इतना ही नहीं, वह उन्हीं गानों के कैसेट भी तैयार करवाते थे और उनसे खूब पैसे बनाते थे।

 

गुलशन कुमार से परेशान होकर बाकी म्यूजिक कंपनियों ने कई कोशिशें भी कीं लेकिन वे सारी नाकाम हो गईं। गाने रिलीज होने के कुछ घंटों में ही गुलशन कुमार उनके लाखों कैसेट बनाकर मार्केट में उतार देते थे। ऐसा ही कुछ हुआ जब 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' फिल्म आई और हिट हुई। उस जमाने में फिल्म बनाने वाले लोग जिनसे पैसे लेते थे, वे तब जरूर पैसे मांगने लगते थे जब फिल्म हिट हो जाए। हुआ यूं कि मीडिया में खबरें आईं कि इस फिल्म के 2 करोड़ कैसेट बिक गए हैं। खबरें सुनकर पैसे लगाने वालों ने अपने पैसे मांगे तो पचा चला कि भले ही इतने कैसेट बिके हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर कैसेट कंपनी ने खुद नहीं बल्कि गुलशन कुमार ने बेच लिए हैं।

 

उस समय अगर गुलशन कुमार से पूछा भी जाता तो वह साफ मुकर जाते थे। वह कहते, 'हमने नहीं किया, हमारा नाम लिखकर चोरा करता है।' इतना ही नहीं, वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से तो यह भी कह देते कि अब वह आगे ऐसा नहीं करेंगे। गुलशन कुमार ने ये कैसेट बनाने के अलावा भक्ति गीतों के खुले मैदान में अपने घोड़े दौड़ाए। वह कई गायकों को लेकर आए। अनुराधा पौडवाल के भक्ति गीत आज भी बेहद मशहूर हैं। इतना ही नहीं, अनुराधा पौडवाल से तो उनके अफेयर की भी चर्चा हुई। भक्ति गीतों के दम पर टी-सीरीज हर परिवार की पसंद बन गया था और पूरे देश में छा गया था।


हर दिन लाखों कमाते थे गुलशन कुमार

 

गुलशन कुमार को अल्टीमेटम दिया गया। उन्हें 10 करोड़ रुपये का जुर्माना देने को कहा गया। एक अनुमान के मुताबिक, उस समय गुलशन कुमार हर दिन लगभग 3 लाख कैसेट बनाते और लगभग 10 लाख रुपये कमाते थे। यानी उनके लिए ये पैसे कुछ नहीं थे। यहीं से वह अंडरवर्ल्ड के डॉन दाऊद इब्राहिम अबू सलेम के निशाने पर आ गए। अबू सलेम ने गुलशन कुमार से पैसे मांगे लेकिन गुलशन ने कह दिया कि इतने पैसों से वह वैष्णो देवी मंदिर में लोगों को खाना खिला देंगे। इस बारे में सोनू निगम ने उसी समय कहा था कि गुलशन को धमकियां मिल रही थीं लेकिन वह इसके बारे में किसी को बताते नहीं थे।

 

उसी समय के आसपास डायरेक्टर राजीव राय को भी धमकी मिली थी। उन्होंने पुलिस को सूचना दी और उन्हें एक बॉडीगार्ड दिया गया। इसी बॉडीगार्ड ने हमला करने आए एक गैंगस्टर को गोली मार दी थी। गुलशन कुमार के पास भी एक बॉडीगार्ड था लेकिन वह महाराष्ट्र पुलिस का नहीं, उत्तर प्रदेश पुलिस का था। इस बारे में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस सी मल्होत्रा ने कहा था, 'कुछ दिन पहले ही उन्हें धमकी दी गई थी लेकिन उन्होंने हमें नहीं बताया। मुझे पूरा भरोसा है कि अगर उन्होंने हमें सूचना दी होती तो हम राजीव राय की तरह ही उन्हें भी बचा लिया होता।'


हत्या के दिन क्या हुआ था?

 

5 अगस्त 1997 को अबू सलेम की ओर से पैसे मांगने के लिए फोन आया था लेकिन गुलशन कुमार ने साफ इनकार कर दिया। इस धमकी के ठीक एक हफ्ते के बाद यानी 12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार अंधेरी के जीतेश्वर मंदिर में पूजा करने पहुंचे थे जहां वह अक्सर जाते थे और इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी उन्होंने ही कराया था। पूजा करने के बाद वह अपनी कार की ओर जा ही रहे थे कि पहले से ही घात लगाए बैठे दो हमलावरों ने उन पर हमला बोल दिया। उनके साथ रहने वाला बॉडीगार्ड बीमार था। सामने दो हथियारबंद हमलावर और निहत्थे गुलशन कुमार। उन्होंने छिपने की कोशिश में एक महिला से मदद मांगी लेकिन वह इतना डर गई कि कुछ कर ही नहीं पाई। गुलशन कुमार के ड्राइवर राम पाल ने उनकी जान बचाने की कोशिश की लेकिन उसके पैरों में भी गोली मार दी गई और वह भी कुछ नहीं कर पाया। हमलावरों ने गुलशन कुमार का शरीर छलनी कर डाला। आनन-फानन में गुलशन कुमार को अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक वह दम तोड़ चुके थे।


हत्या करने के बाद शार्प शूटरों ने मंदिर के पास खड़ी एक टैक्सी के ड्राइवर से उसकी टैक्सी छीन ली और उसी में फरार हो गए। गुलशन के ड्राइवर राम पाल ने ही बाद में हमलावरों का हुलिया बताया। मदन शर्मा और मधुकर कवाकर नाम के दो गवाहों के बयान से थोड़ी और मदद मिली। बाद में पुलिस ने वह टैक्सी बरामद कर ली। इस हत्या ने बॉलीवुड इंडस्ट्री को सन्न कर दिया था और शायद अंडरवर्ल्ड के लोगों की कोशिश भी यही थी।

साजिश किसने की, किसने मारा?

 

हत्या के ठीक 18 दिन बाद मशहूर म्यूजिक कंपोजर नदीम अख्तर सैफी को गुलश कुमार की हत्या का साजिशकर्ता बताया गया। दरअसल, हत्या के आसपास ही नदीम दुबई गए थे। आरोप लगते है कि नदीम और कुछ अन्य लोगों ने दाऊद इब्राहिम के भाई अनीस से मुलाकात की और वहीं इस हत्या की साजिश रची गई। दरअसल, नदीम ने कुछ दिन पहले ही आरोप लगाए थे कि गुलशन कुमार ने उनके एलबम 'है अजबनी' का अच्छे से प्रचार नहीं किया था।  ये नदीम वही हैं जो नदीम-श्रवण जोड़ी में शामिल थे।

 

इन आरोपों के बारे में श्रवण कहते हैं कि हत्या वाले दिन से ठीक पहले उनका गुलशन कुमार से समझौता हो गया था और दोनों साथ काम करने को तैयार हो गए थे। रेडिफ ऑन द नेट से बातचीत में तब श्रवण ने कहा था, '11 जुलाई की रात को गुलशन जी ने महेश भट्ट और गीतकार समीर को बताया कि जैसे ही नदीम लंदन से लौटेंगे हम साथ में फिर से काम करेंगे। नदीम भाई कारोबारी हैं लेकिन वह प्यारे इंसान हैं। गुलशन जी हमें इंडस्ट्री में लाए, हम पर उनका बहुत कर्ज है। हां हमारा उनसे झगड़ा हुआ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनकी हत्या कर देंगे।' उस वक्त नदीम की बीवी को मिसकैरिज हो गया था जिसके चलते वह भारत नहीं लौटे और लंदन में ही रुक गए। यहां श्रवण कहते रहे कि वह जल्द लौटेंगे लेकिन नदीम फिर कभी नहीं लौटे। उन्होंने बार-बार यही कहा कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया और गुलशन कुमार उनके लिए बड़े भाई के जैसे थे। बाद में नदीम सैफी इन आरोपों से बरी भी हो गए।

 

इसी मामले में अगले आरोपी बने टिप्स के मालिक रमेश तौरानी। वह गुलशन कुमार के मुख्य प्रतिद्वंद्वियों में से एक थे। आरोप लगा कि उन्होंने ही हत्या करवाने के लिए 25 लाख रुपये दिए थे। हालांकि उन पर भी ये आरोप साबित नहीं हुए। इसी हत्या के मामले में पुलिस ने शाहरुख खान और सूरज पंचोली से भी पूछताछ की थी। दरअसल, 12 जून 1997 को दुबई में एक म्यूजिक प्रोग्राम हुआ था। इसमें नदीम ने परफॉर्म किया था और उनके साथ दाऊद इब्राहिम का भाई अनीस भी वहीं पर था। पुलिस को शक था कि पंचोली और शाहरुख खान को भी इस कार्यक्रम का न्योता मिला था। सूरज पंचोली ने इस पर कहा कि उन्हें न्योता मिला था लेकिन वह कार्यक्रम में नहीं गए। वहीं, शाहरुख खान ने माना कि वह दुबई में थे लेकिन इस कॉन्सर्ट में नहीं गए थे।

कैसे चला कानूनी केस?

 

हत्याकांड के 4 साल बाद एक हमलावर अब्दुल रऊफ उर्फ दाऊद मर्चेंट को कोलकाता से गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने अपनी 400 पन्नों की चार्जशीट में 26 लोगों को आरोपी बनाया था जिसमें से 18 आरोपी 2002 तक बरी हो गए। अब्दुल रऊफ को साल 2002 में दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। निचली अदालत ने रऊफ के भाई राशिद मर्चेंट को बरी कर दिया था लेकिन साल 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे भी दोषी करार दे दिया। अब्दुल रऊफ साल 2009 में पैरोल पर बाहर आया था और बांग्लादेश भाग गया था लेकिन उसे फिर से पकड़कर लाया गया और अभी वह जेल में ही है।