सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को साफ निर्देश दे दिया है कि यूजर-जनरेटेड कंटेंट के लिए चार हफ्ते में नए दिशा-निर्देश बनाओ। सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है कि पहले जनता और विशेषज्ञों से राय ली जाए, फिर दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब यू-ट्यूब, पॉडकास्ट, रील्स के लिए नए नियम तैयार किए जा सकते हैं।
 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'नियम बनाने का मकसद किसी की बोलती बंद करना नहीं है, बल्कि एक फिल्टर लगाना है, जिससे गंदगी अपने आप बाहर रह जाए। आज कोई अपना चैनल बनाता है, मनमर्जी की बातें बोलता है, लेकिन जिम्मेदारी कोई नहीं है। यह बहुत अजीब बात है।'

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, 'यह बहुत अजीब बात है कि मैंने अपना खुद का प्लेटफॉर्म और चैनल बनाया लेकिन कोई अकाउंटेबिलिटी नहीं है। ऐसे कंटेंट के साथ जिम्मेदारी की भावना जुड़ी होनी चाहिए।'

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सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

केस की शुरुआत पॉपुलर पॉडकास्टर रणवीर अलाहबादिया की याचिका से हुई थी। समय रैना के शो 'इंडिया गॉट लैटेंट' में कुछ प्रतिभागियों ने बहुत अश्लील और अपमानजनक बातें की थीं, जिसके बाद देशभर में कई FIR दर्ज हो गई थीं। उसी मामले में मार्च में कोर्ट ने सरकार से कहा था कि ऐसे कंटेंट के लिए गाइडलाइंस तैयार कीजिए। 

जस्टिस जॉयमाल्या बागची:-
जहां कंटेंट को राष्ट्र विरोधी माना जाता है। क्या कंटेंट बनाने वाला इसकी जिम्मेदारी लेगा? एक बार जब गंदा कंटेंट अपलोड हो जाता है, जब तक अथॉरिटी रिएक्ट करती है, तब तक वह लाखों दर्शकों तक वायरल हो चुका होता है। तो आप इसे कैसे कंट्रोल करेंगे?

क्या चाहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, 'क्या फेसबुक-यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म खुद 'देश-विरोधी' या समाज को तोड़ने वाला कंटेंट रोक पाएंगे? 48 से 72 घंटे में नोटिस देने और हटाने का मौजूदा नियम काफी नहीं, क्योंकि तब तक वीडियो वायरल हो जाता है। पहले ही रोकने का कोई तरीका चाहिए। बच्चों के सामने अश्लील कंटेंट एक क्लिक में खुल जाता है। एक लाइन का डिस्क्लेमर काफी नहीं। आधार या पैन से उम्र जांच होनी चाहिए।'

सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने बताया कि नए नियमों में अश्लीलता, डीपफेक, AI कंटेंट पर अलग-अलग गाइडलाइंस आएंगी। कंटेंट को भी U, U/A (7 साल से कम, 7-13 साल, 16+), और A (सिर्फ वयस्कों के लिए) कैटेगरी में बांटा जाएगा।

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सुप्रीम कोर्ट को ऐसा क्यों कहना पड़ा?

कुछ लोगों ने चिंता जताई कि कहीं ये नियम अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म न करने लगें। सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा दिया कि अगर ये नियम किसी को चुप कराने के लिए इस्तेमाल हुए तो हम मंजूरी नहीं देंगे। लेकिन अभी नियमों की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा 'सेल्फ रेग्युलेशन' करने वाली संस्थाएं कारगर नहीं हैं। एक आजाद और ताकतवर संवैधानिक संस्था बननी चाहिए, जो इस तरह के कंटेंट की निगरानी करे, किसी के दबाव में न आए। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'बोलने की आजादी बहुत कीमती है, लेकिन बच्चों की गरिमा का अधिकार भी उतना ही कीमती है। दोनों को संतुलन में रखना होगा।' अब सरकार को चार हफ्ते में नियम तैयार करने हैं। लोगों की राय लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार अपना ड्राफ्ट पेश करेगी।