क्या एक तलाकशुदा या विधुर व्यक्ति, सेरोगेसी के जरिए पिता बन सकता है? सेरोगेसी (रेग्युलेशन) एक्ट 2021 की धारा 2 (1) (एस), पुरुषों को इस प्रक्रिया के जरिए पिता बनने से रोकती है। सुप्रीम कोर्ट में 'महेश्वरा एमवी बनाम केंद्र सरकार' केस में याचिकाकर्ता ने महिलाओं की तरह ही, पुरुषों के लिए ऐसे अधिकार की मांग की है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह भेदभावपूर्ण है। समानता और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कानून अनुच्छेद 14, 15 और 21 को इस अधिनियम में नजरअंदाज किया गया है। यह प्रावधान पितृसत्तात्मक मान्यताओं को बढ़ावा देता है। याचिका में इस धारा को हटाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि अगर यह धारा हटाई न जाए तो पुरुषों को भी इसमें शामिल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2025 में इस केस की सुनवाई तय की है।

किस आधार पर चुनौती दी गई है?
याचिकाकर्ता का कहना है, 'याचिकाकर्ता को सेरोगेसी के जरिए मां बनने का अधिकार नहीं दिया जा रहा है। यह रोक किसी वैज्ञानिक, तार्किक या बच्चे की भलाई से जुड़े कारणों पर नहीं है। यह एक पुरानी और भेदभाव करने वाली नीति है, जो महिलाओं को नियंत्रित करने वाली पुरुष-प्रधान सोच से आती है।'

याचिका में कहा गया है, 'रॉबर्ट ब्राउन कहते हैं कि मातृत्व बहुत पवित्र और बलिदान से भरा है, जो प्रकृति का अनमोल उपहार है, लेकिन विज्ञान ने अब मातृत्व को देखने का नज़रिया बदल दिया है। सरकार के पास कोई ठोस कारण नहीं है कि वह लिंग या वैवाहिक स्थिति के आधार पर सेरोगेसी पर रोक लगाए। यह प्रतिबंध गलत, दमनकारी और संविधान के खिलाफ है।'

यह भी पढ़ें: शक्तियां अलग-अलग लेकिन संसद और सुप्रीम कोर्ट में टकराव क्यों होता है?

 

क्या लिंग के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है राज्य सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण देगा। अनुच्छेद 15 कहता है कि राज्य धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। अनुच्छेद 21 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है, जिसे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना छीना नहीं जा सकता। अनुच्छेद 21 का दायरा इतना व्यापक है कि इसमें जीवन से जुड़े कई अधिकार शामिल हो जाते हैं, जिनमें बच्चे का भी अधिकार शामिल है।

एडवोकेट रुपाली पंवार ने कहा, '14, 15 और 21 समता और जीवन के अधिकार की बात करते हैं। ये भेदभाव रोकते हैं लेकिन सेरोगेसी एक्ट से सिंगल पुरुष और महिलाओं को बाहर रखा गया है। अगर संवैधानिक नजरिए से देखें तो यह समता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में इसी को चुनौती दी गई है। जैसे तलाकशुदा और विधवा महिलाओं के पास इस कानून में सेरोगेसी के जरिए मातृत्व सुख लेने का हक है, वैसा पुरुषों के संदर्भ में भी होना चाहिए।'


क्या सच में भेदभावपूर्ण है सेरोगेसी कानून?
इसे समझने के लिए पहले यह जानना होगा कि सेरोगेसी एक्ट की धारा 2 (1) (एस) क्या है। यह धारा 'इंटेंडिंग विमेन' की बात करता है। इंटेंडिंग वुमन का मतलब, एक ऐसी भारतीय महिला से है जो विधवा या तलाकशुदा है, 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच है और सेरोगेसी के माध्यम से बच्चा प्राप्त करने की इच्छुक है। इस कानून में कहीं 'इंटेंडिग मेल' का जिक्र नहीं है। आसान भाषा में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अविवाहित, विधुर या तलाकशुदा पुरुषों के लिए इस कानून में कोई जगह ही नहीं है। 



महिला करा सकती है सेरोगेसी लेकिन है ये शर्त
अगर महिला की मेडिकल कंडीशन, एक्ट में तय शर्तों के दायरे में आती है तो महिला सेरोगेसी के जरिए मां बन सकती है। 

यह भी पढ़ें: उरी, तंगधार, कुपवाड़ा में पाकिस्तान का आतंक, निशाने पर सैन्य चौकियां



क्यों इस धारा पर सवाल उठते हैं?
यह धारा अविवाहित पुरुषों और महिलाओं, दोनों को सेरोगेसी के जरिए मां बनने पर रोक लगाती है। इसे अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन का आरोप लगाकर अदालतों में चुनौती दी गई है। 

भारत में सेरोगेसी के नियम क्या हैं?
सेरोगेसी एक्ट की धारा 4 सेरोगेसी के नियम और शर्तों से जुड़ी है। धारा 2 प्रक्रिया के बारे में बात करती है। धारा 21 प्रक्रिया से जुड़ी शर्तों की बात करता है। आइए इन धाराओं की अहम बातों को समझते हैं-

  • केवल विवाहित दंपति जिनकी शादी 5 साल पहले हुई हो या विधवा और तलाकशुदा महिलाएं, जिनकी आयु 35 से 45 के बीच में हो, वे ही सेरोगेसी के जरिए मां बन सकती हैं।
  • विवाहित दंपति के लिए भी यह शर्त जरूरी है कि पुरुष की उम्र 26 से 55  के बीच हो और महिला की 23 से 50 वर्ष के बीच।
  • कोई जीवित बच्चा, चाहे जैविक, दत्तक या सेरोगेसी के जरिए ही न हो।
  • अगर मानसिक या शारीरिक तौर पर बच्चा अक्षम है तो इसमें ढील दी जा सकती है।
  • सेरोगेसी के लिए 'मेडिकल इंडिकेशन' सर्टिफिकेट देना अनिवार्य है।
  • मेडिकल कंडीशन में उस वजह का जिक्र हो, जिसकी वजह से महिला प्राकृतिक तौर पर गर्भ नहीं धारण कर सकती है।