सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना की महिला अधिकारी निकिता पांडे को फिलहाल सेवा से हटाए जाने से रोक दिया है। निकिता पांडे विंग कमांडर हैं और उन्होंने बालाकोट और सिंदूर जैसे बड़े सैन्य ऑपरेशन में हिस्सा लिया है। वह 13 साल से अधिक समय तक सेवा कर चुकी हैं लेकिन वायुसेना ने उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया, जिससे उनकी नौकरी खतरे में थी। स्थायी कमीशन मिलने से अधिकारी लंब समय तक सेवा कर सकते हैं। कोर्ट के फैसले से फिलहाल उनकी नौकरी बच गई है।
केंद्र और भारतीय वायुसेना से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने वायुसेना की विंग कमांडर निकिता पांडे की याचिका पर केंद्र सरकार और भारतीय वायुसेना से जवाब मांगा है। निकिता पांडे ने आरोप लगाया है कि उन्हें स्थायी कमीशन नहीं देकर उनके साथ भेदभाव किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय वायुसेना एक पेशेवर संस्था है लेकिन ऐसे मामलों में जहां अधिकारी का भविष्य अनिश्चित हो, वहां यह स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगला आदेश आने तक विंग कमांडर पांडे को सेवा से न हटाया जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी।
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'हमारी वायुसेना बहुत शानदार है'
जस्टिस कांत ने कहा, 'हमारी वायुसेना बहुत शानदार है। उनके जवान और अधिकारी बहुत अच्छा काम करते हैं। उन्होंने मिलकर जो काम किया है, वह बहुत खास है। इसलिए हम हमेशा उनका सम्मान करते हैं। वे हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत हैं। सच कहें तो, उन्हीं की वजह से हम रात को आराम से सो सकते हैं।'
पीठ ने कहा कि शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों की मुश्किलें उनकी नियुक्ति के समय से ही शुरू हो जाती हैं। उन्हें 10 या 15 साल बाद स्थायी कमीशन देने की बात की जाती है, जिससे वह खुद को लेकर असमंजस में रहते हैं। जस्टिस कांत ने कहा कि इस तरह की अनिश्चितता सेना के लिए सही नहीं है। उन्होंने यह भी साफ किया कि भर्तियों के न्यूनतम मापदंडों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। यह सिर्फ एक आम नागरिक की राय है, क्योंकि हम इस क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं।
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कैसे होती है भर्ती?
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सेना में जितने भी शॉर्ट सर्विस कमीशन वाले अधिकारी हैं, उनमें से जो भी उपयुक्त पाए जाएं, उन्हें स्थायी कमीशन देने की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारियों ने बेहतरीन काम किया है लेकिन लंबे समय तक उन्हें स्थायी कमीशन नहीं मिलने के कारण SSC के जरिए भर्ती होती रही। इससे 10, 12 या 15 साल बाद अधिकारियों में आपसी प्रतिस्पर्धा पैदा होती है।