तेलंगाना में ढही सुरंग में फंसे 8 लोगों की तलाशी का आज 16वां दिन है और रविवार को बचावकर्मियों को एक शव बरामद हुआ है। पंजाब के तरनतारन के गुरप्रीत सिंह का शव सुरंग खोदने वाली टूटी हुई मशीन के अंदर पाया गया।
इस शव को केरल पुलिस के बेल्जियन मैलिनोइस खोजी कुत्तों ने बरामद किया। बता दें कि नागरकुरनूल जिले में श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल सुरंग में फंसे 8 मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन में खोजी कुत्तें अहम भूमिका निभा रहे है। इन कुत्तों को सुंरग में मानव अवशेषों का पता लगाने के लिए तैनात किया गया है।
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कैडेवर डॉग्स ने सुरंग में लगाया लोकेशन का पता
इस रेस्क्यू ऑपरेशन में कैडेवर डॉग्स ने महत्वपूर्ण रोल निभाया है, जिससे फंसे हुए मजदूरों का पता लगाने में मदद मिली है। बचाव दल अब रोबोट की सहायता से ऑपरेशन को और प्रभावी बनाने का प्रयास कर रहा है। हादसा 22 फरवरी को हुआ और केरल पुलिस के खोजी कुत्तों को 7 मार्च को पहली बार सुरंग में तैनात किया गया। सोचने वाली बात यह है कि एडवांस मशीन और कई अच्छे तकनीक होने के बावजूद खोजी कुत्तों की मदद ली जा रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर भारत में खोजी कुत्तों की शुरुआत कब से हुई? क्या है इनकी ट्रेनिंग प्रक्रिया...सब समझिए
भारत में खोजी कुत्तों की शुरुआत
भारत में खोजी कुत्तों का इस्तेमाल ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ था लेकिन औपचारिक रूप से 1960 के दशक में पुलिस और सुरक्षा बलों में इनकी तैनाती की जाने लगी। सबसे पहले दिल्ली पुलिस और सेना ने खोजी कुत्तों का इस्तेमाल करना शुरू किया। इसके बाद विभिन्न राज्यों की पुलिस, अर्धसैनिक बलों (CRPF, BSF, CISF) और रेलवे सुरक्षा बल (RPF) में भी इन्हें शामिल किया गया।
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कैसे होती है खोजी कुत्तों की ट्रेनिंग
भारत में खोजी कुत्तों को विशेष रूप से ट्रेन किया जाता है ताकि वह बम, ड्रग्स, अपराधियों, शवों, आगजनी, और आपदा राहत अभियानों में मदद कर सकें। सबसे पहले भर्ती और नस्लों का चयन किया जाता है। इसमें भारतीय सुरक्षा एजेंसियां आमतौर पर जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर, बेल्जियन मेलिनॉयस, डोबर्मन, और इंडियन पैरा डॉग्स (स्वदेशी नस्लें) का चयन करती हैं। नस्ल का चयन उनके सूंघने की क्षमता, मानसिक शक्ति, और सीखने की गति के आधार पर किया जाता है।
बता दें कि भारत में कई खोजी कुत्तों के ट्रेनिंग सेंटर है, जैसे National Training Centre for Dogs (NTCD), टेकनपुर, मध्य प्रदेश (BSF), Dog Breeding and Training School, ITBP, पंचकूला, Army Dog Training Centre, मेरठ, उत्तर प्रदेश और Police Dog Training Centre, चेन्नई, तमिलनाडु।
ट्रेनिंग में क्या-क्या होता है शामिल?
इन खोजी कुत्तों की ट्रेनिंग आमतौर पर 6 से 12 महीनों की होती है जिसमें विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रेनिंग में 'बैठो' (Sit), 'आगे बढ़ो' (Move), 'रुको' (Stop), 'लाओ' (Fetch) आदि सिखाए जाते हैं। कुत्तों को यह कमांड्स इशारों और आवाज के जरिए सिखाया जाता है। खोजी कुत्तों को बम और विस्फोटक डिटेक्शन जैसे TATP, RDX, TNT, C4 जैसे विस्फोटकों की गंध पहचानने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके अलावा हेरोइन, कोकीन, गांजा, अफीम जैसी नशीली चीजों की पहचान करने की भी ट्रेनिंग मिलती है। यह कुत्ते शव, अपराधियों की गंध, हथियार को भी ट्रेक कर लेते है।
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ट्रैकिंग और सर्च ऑपरेशन
जंगल, पहाड़, और शहरी इलाकों में संदिग्धों का पीछा करने की ट्रेनिंग के साथ-साथ आपदा के समय मलबे में दबे लोगों को खोजने का अभ्यास भी दिया जाता है। इसके अलावा असली अपराध और आपदा स्थितियों की नकल कर कुत्तों को व्यावहारिक अनुभव भी दिया जाता है। खोजी कुत्तों को सार्वजनिक जगहों पर बम डिटेक्शन और अपराधियों की पहचान की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
खोजी कुत्तों का रिटायरमेंट और देखभाल
कुत्तों की सर्विस अवधि आमतौर पर 8 से 10 साल होती है। रिटायरमेंट के बाद उन्हें गोद लेने के लिए उपलब्ध कराया जाता है या फिर विशेष आश्रयों में रखा जाता है। बता दें कि भारत में खोजी कुत्तों ने कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है। इसमें 2016 पठानकोट हमला और 26/11 मुंबई हमला शामिल है। 2016 हमले में आर्मी डॉग्स ने आतंकियों के लोकेशन का पता लगाया था वहीं, ताज होटल हमले में खोजी कुत्तों ने कई संदिग्ध चीजों को सूंघकर सुराग दिए थे।
बेजोड़ सूंघने की शक्ति और वफादारी इन खोजी कुत्तों को सबसे खास बनाती है। यह आतंकवाद, ड्रग तस्करी, बम डिफ्यूजल, आपदा राहत और अपराध जांच में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।