ओडिशा हाईकोर्ट ने कम सबूत होने के कारण एक शख्स को बरी कर दिया है। 42 वर्षीय शख्स 14 साल जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर था। जस्टिस संगम कुमार साहू और चित्तरंजन दाश की पीठ ने 7 मार्च के अपने फैसले में मदन कन्हार को दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया।
दरअसल, वर्ष 2005 में 20 वर्षीय महिला की हत्या के आरोप में मदन को फूलबनी जिले के एक सत्र न्यायाधीश ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 2008 में मदन ने हाई कोर्ट में अपील की थी, जिसके बाद 2019 में उसे जमानत दे दी थी।
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क्या है पूरा मामला?
पीड़ित महिला फूलबनी में अपने गांव के पास जंगल में जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने गई थी लेकिन वापस नहीं लौटी। उसकी मां ने उसे 12 अप्रैल, 2005 को जंगल में मृत पाया, उसके सिर और शरीर के अन्य हिस्सों पर चोटें थीं। उसी गांव के निवासी मदन कन्हार पर शक गहराया क्योंकि मृतक महिला ने कुछ दिनों पहले उसके साथ झगड़ा किया था। चशमदीद गवाहों की गवाही, सबूतों की कमी और फोरेंसिक रिजल्ट में कमी होने के कारण मदन को रिहा किया गया।
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'महज संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता'
पीठ ने कहा, 'चश्मदीद गवाह की गवाही में वह गुणवत्ता नहीं है जो आरोप के लिए जरूरी होने चाहिए। कमजोर सबूत और महज संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। न्याय प्रशासन को संदेह से परे सबूत की जरूरत होती है और इसके अभाव में अपीलकर्ता की दोषसिद्धि अप्रमाणित रह जाती है।' मदन के वकील जम्बेश्वर पति ने कहा कि उनका मुवक्किल छह साल पहले जमानत पर रिहा होने के बाद से खेतिहर मजदूर के रूप में जीवनयापन कर रहा है।