पिछले कुछ समय से भारत और श्रीलंका में कच्चातिवु द्वीप की खूब चर्चा है। राष्ट्रीय पटल के अलावा तमिलनाडु की सियासात में कच्चातिवु का मुद्दा खूब उठ रहा है। मछली पकड़ने के अधिकारों और सीमा विवाद की वजह से भी कच्चातिवु द्वीप कई बार पहले भी चर्चा में रहा है। समय-समय पर तमिलनाडु में इस निर्जन द्वीप को भारत में शामिल करने की मांग उठ चुकी है। हाल ही में 21 अगस्त को तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) के नेता और फिल्म अभिनेता विजय ने मदुरै में एक सम्मेलन को संबोधित किया। इसमें उन्होंने कहा था कि तमिलनाडु के मछुआरों की सुरक्षा के लिए भारत को कच्चातिवु को वापस ले लेना चाहिए।
अब विजय के बयान के बाद अचानक श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने कच्चातिवु का दौरा किया। अपने भाषण से दिसानायके ने भारत और उसके नेताओं को कड़ा संदेश देने की कोशिश भी की। आइये समझते हैं कि कच्चातिवु द्वीप का मामला क्या है, एक्टर विजय ने क्या बयान दिया और श्रीलंकाई राष्ट्रपति भारत को एक संदेश देना चाहते हैं।
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दिसानायके ने भारत को क्या संदेश दिया?
श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके 1 सितंबर को जाफना के माइलिड्डी मत्स्य पालन बंदरगाह पहुंचे। अपने पांच मिनट के भाषण में दिसानायके ने कहा, 'श्रीलंका की सरकार लोगों के हित में देश के आसपास समुद्र, द्वीपों और भूभाग की सुरक्षा करने को प्रतिबद्ध है। किसी भी बाहरी ताकत को अपना प्रभाव जमाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।' इसके बाद राष्ट्रपति दिसानायके नाव से अपने मंत्री रामलिंगम चंद्रशेखरन के साथ कच्चातिवु द्वीप पहुंचे। उनकी यह यात्रा पहले से निर्धारित नहीं थी।
अपनी रैली में क्या बोले थे विजय?
मदुरै की जनसभा में विजय ने कहा, 'श्रीलंकाई नौसेना के हमलों से लगभग 800 मछुआरे पीड़ित हैं। मैं आपसे इसकी निंदा करने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई करने को नहीं कह रहा हूं। कृपया कुछ बहुत छोटा सा काम करें। हमारे मछुआरों की सुरक्षा के लिए अब श्रीलंका से कच्चातिवु को वापस ले लीजिए। इतना ही काफी होगा।' इस बयान के बाद श्रीलंका में एक्टर विजय के फैन नाखुश हैं। जाफना में उनके पोस्टरों को उतार दिया गया है। आशंका है कि श्रीलंका के सिनेमाघरों में उनकी फिल्में अब रिलीज भी न हो।
विजय के बयान पर श्रीलंका क्या बोला?
उनके बयान को श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता हेराथ चुनावी बताया था और स्पष्ट शब्दों में कहा कि श्रीलंका कच्चातिवु को भारत को वापस नहीं देगा। उन्होंने आगे कहा, ;दक्षिण भारत में चुनाव होने वाले हैं। प्रत्याशी वोट बटोरने की खातिर चुनावी मंच से तरह-तरह के बयान देंगे। यह पहली बार नहीं है। पहले भी चुनाव प्रचार के दौरान इसी तरह के दावे किए गए।
पीएम मोदी भी उठा चुके कच्चातिवु का मुद्दा
तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने भी कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा उठाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामेश्वरम में इस द्वीप का जिक्र किया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने कच्चातिवु द्वीप का जिक्र किया और 1974 में श्रीलंका को सौंपने पर कांग्रेस की जमकर आलोचना की थी।
इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने पर पीएम मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधा था। उन्होंने एक आर्टिकल का हवाला दिया और अपने एक्स अकाउंट पर लिखा था, 'आंखें खोलने वाला और चौंकाने वाला! नए तथ्य बताते हैं कि कांग्रेस ने कैसे बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया था। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।'
कच्चातिवु द्वीप के बारे में जानें
भारत और श्रीलंका के मध्य में पाक जलसंधि पड़ती है। इसी में 285 एकड़ क्षेत्रफल का एक निर्जन द्वीप है। भारत से इसी दूरी लगभग 33 किमी और श्रीलंका के जाफना से 62 किमी है। इस द्वीप पर कोई इंसान क्यों नहीं रहता है, इसकी वजह यह है कि यहां पीने का पानी मौजूद नहीं है। न ही अभी तक कोई व्यवस्था की गई। लेकिन यहां 20वीं सदी का एक कैथोलिक चर्च जरूर है। इसका नाम सेंट एंथोनी चर्च है। माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी के फटने से कच्चातिवु द्वीप अस्तित्व में आया था।
तमिलनाडु में क्यों उठती है द्वीप को वापस लेने की मांग?
साल 1974 तक भारत और श्रीलंका के बीच कच्चातिवु पर स्वामित्व विवाद चला। इसी साल एक समझौते के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया। भारतीय मछुआरों को कच्चातिवु तक जाने की अनुमति थी। मगर दो साल बाद भारत और श्रीलंका के बीच एक और समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों ने अपने-अपने क्षेत्रों में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी। मगर कच्चातिवु दोनों देशों की सीमा से बाहर होने के कारण हमेशा विवादों में रहा। श्रीलंका ने कच्चातिवु द्वीप पर भारत के मछुआरों के ठहरने, आराम करने और जाल सुखाने पर रोक लगा दी। अगर कोई मछुआरा समुद्री सीमा पार करता तो श्रीलंका की नौसेना तुरंत उसे पकड़ लेती। तमिलनाडु में लोगों का मानना है कि अगर द्वीप को दोबारा भारत में मिला लिया गया तो मछुआरों की अवैध गिरफ्तारी से बचा जा सकता है।
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कच्चातिवु विवाद: सरकार का रुख क्या है?
साल 1973 में तमिलनाडु के उस वक्त के सीएम ने केंद्र सरकार से कच्चातिवु द्वीप को भारत में रखने की अपील की थी। 1991 में तमिलनाडु की विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया। इसमें भी द्वीप को वापस लेने की मांग की गई। इस मामले में साल 2008 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। इसमें दावा किया गया कि संविधान में बिना संशोधन के कच्चातिवु को पड़ोसी देश को नहीं सौपा जाना चाहिए। 2013 में केंद्र सरकार ने 1974 और 1976 के समझौतों का हवाला दिया और कहा कि श्रीलंका से कच्चातिवु को वापस लेना प्रसांगिक नहीं है। 2022 में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में जानकारी दी कि कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका के हिस्से पर स्थित है। अब इस मामले की आखिरी सुनवाई 15 सितंबर को होगी।