बांग्लादेश में हिंदुओं और भारत के खिलाफ नफरत चरम पर है। दो साल के भीतर दो बार राष्ट्रव्यापी हिंसा में हिंदुओं को निशाना बनाया गया। वहीं लोगों के गुस्से को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने का प्रयास किया गया। हाल ही में छात्र नेता उस्मान हादी की हत्या के बाद भारत के खिलाफ रैलियों में जहर उगला जाने लगा। बांग्लादेश के पूर्व सैन्य अधिकारी से सियासी नेता तक भारत को नुकसान पहुंचाने और नॉर्थ-ईस्ट को अलग करने की धमकी दे चुके हैं। 

 

18 दिसंबर की रात ही बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपू दास को बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया। उन्मादी और कट्टरपंथी भीड़ ने दीपू को पीटा, फांसी पर लटकाया और बाद में आग लगा दी। हादी की हत्या और दीपू दास को दी गई तालिबानी सजा ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दोगलनेपन को दुनिया के सामने ला दिया। 

 

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हसीना से हादी तक, हिंदू ही निशाने पर क्यों?

पिछले साल जुलाई में बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ छात्रों का आंदोलन भड़का। बाद में यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। कई लोगों की मौत के बाद हिंसा थमी। कुछ दिन बाद छात्रों का आंदोलन दोबारा उठ खड़ा हुआ। अबकी बार मांग शेख हसीना को हटाने की थी। 5 अगस्त को ढाका रणक्षेत्र में बदल गया। दोपहर तक शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। तीन दिन बाद 8 अगस्त को अचानक मुहम्मद यूनुस की एंट्री होती है। वह बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया बनते हैं।

आज के ट्रंप और चुनाव के ट्रंप अलग-अलग

यूनुस के सत्ता में आते ही हिंसा का मुंह हिंदुओं की तरफ घूम जाता है। कई हिंदुओं को मारा गया, मंदिरों को तोड़ा गया, जबरन नौकरियों से निकाला गया और उनकी संपत्तियों को लूटा गया। उस वक्त अमेरिका में चुनाव का माहौल था। डोनाल्ड ट्रंप बांग्लादेश हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ बोलने वाले पहले नेता बने। उन्होंने हिंदुओं की रक्षा करने और कट्टरपंथी हमले की निंदा की। विपक्षी नेता कमला हैरिस की जमकर आलोचना की। उन पर दुनियाभर में हिंदुओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।

कैसे सामने आया ट्रंप का दोगलापन?

अब एक साल बाद ट्रंप बदल चुके हैं। बांग्लादेश में दीपू दास को जिस तरह से मारा गया है, उसकी निंदा दुनियाभर में हो रही है। दीपू का वायरल वीडियो यह बताने के लिए काफी है कि बांग्लादेश कैसे कट्टरपंथ की जकड़ में है। बावजूद इसके न तो डोनाल्ड ट्रंप और न अमेरिकी दूतावास ने कोई बयान जारी किया। मगर कट्टरपंथी उस्मान हादी की मौत पर दुखी अमेरिका ने ट्रंप के दोगलेपन को उजागर कर दिया है।

दोस्ती का नाम, दुश्मनों वाला काम?

बाग्लांदेश में स्थित अमेरिकी दूतावास ने हादी की मौत पर दुख जताया। मगर दीपू दास की तालिबानी हत्या पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि यह घटना अमेरिका की उस सोच के खिलाफ है, जिसमें वह कट्टरता को वैश्विक चुनौती बताता है। छात्र नेता हादी का एक पक्ष यह भी है कि वह भारत विरोधी था। वह लगातार भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा था। उसने सोशल मीडिया पर भारत का विवादित मैप जारी किया। एक तरफ अमेरिका खुद ही भारत को अहम साझेदार बताता है और दूसरी तरफ भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने वाले शख्स की मौत पर विलाप करता है।

 

 

 

क्यों खड़ा हो रहा सवाल?

हादी की मौत पर 19 दिसंबर को अमेरिकी दूतावास ने लिखा, 'अमेरिकी दूतावास युवा नेता शरीफ उस्मान हादी के निधन पर बांग्लादेश के लोगों के साथ शोक व्यक्त करता है और उनके परिवार, दोस्तों और समर्थकों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है।' यहां यह बताना जरूरी है कि बहुत कम मौकों पर ही अमेरिका किसी की मौत पर दुख व्यक्त करता है। बड़ी-बड़ी हस्तियों के निधन पर भी अमेरिकी दूतावास शोक संदेश पोस्ट करने से बचते हैं। मगर हादी हमले में उसकी तत्परता बड़ा सवाल खड़ा करती है।

हिंसा के बीच राजदूत क्यों किया तैनात?

हिंसा के बीच अचानक 19 दिसंबर को ही अमेरिका ने बांग्लादेश में अपना अगला राजदूत नियुक्त कर दिया, जबकि पिछले साल जून में पीटर हास के इस्तीफा देने के बाद से बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत का पद खाली थी। पीटर हास करीब तीन साल से बांग्लादेश में तैनात थे। ट्रंप प्रशासन ने अब ब्रेंट क्रिस्टेंसन को अगला राजदूत नियुक्त किया है। वह अगले साल जनवरी में अपना पदभार संभाल सकते हैं। हिंसा के बीच अमेरिका की यह तैनाती भी कई सवाल खड़ी करती है।

सत्ता परिवर्तन में अमेरिका का हाथ! कैसे रचा गया पूरा खेल?

इसी साल अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी माइक बेंज ने खुलासा किया था कि बांग्लादेश में सत्ता बदलने में अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) ने फंडिंग की थी। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि अमेरिका ने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का समर्थन किया, क्योंकि शेख हसीना वाजिद ने चीनी प्रभाव के खिलाफ अमेरिका को एक सैन्य अड्डा बनाने से बना कर दिया था।

 

टकर कार्लसन के साथ बातचीत में माइक बेंच ने दावा किया कि अमेरिकी विदेश विभाग और यूएसएआईडी ने बांग्लादेश की सियासत को अस्थिर करने की प्लान में अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय रिपब्लिकन संस्थान का समर्थन किया था। बांग्लादेश में एलजीबीटी आबादी, बांग्लादेश के दो जातीय अल्पसंख्यक समूहों और युवा छात्रों से संपर्क किया गया। यह छात्र पहले से ही विरोध प्रदर्शन में जुटे थे।

 

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माइक बेंच के मुताबिक अमेरिका ने बांग्लादेश में गायकों को फंडिंग की। उनसे इस तरह के गीत बनाने को कहा, 'जिनको सुनने के बाद जनता सड़क पर उतर सके। इसके अलावा 170 लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं और 304 मुखबिरों का भी सहयोग लिया गया।'

बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ कितनी हिंसा?

यूके संसद की रिपोर्ट के मुताबिक शेख हसीना के देश से जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर 2000 से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया गया। हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में सबसे आगे जमात-ए-इस्लामी का नाम आता है। यूनुस की सरकार के बाद जमात के लोग बेखौफ घूम रहे हैं। भारत के खिलाफ जगह उगल रहे हैं। यूके संसद में बताया कि अल्पसंख्यक हिंदू पर हमले के मामले में पुलिस भी मूकदर्शक बनी रहती है। चटगांव में हिंदू के खिलाफ सुनियोजित हमलों में जमात का हाथ था। पिछले साल हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को ढाका एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाया गया।