महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर लागू करने वाले सरकारी आदेशों को रविवार को रद्द कर दिया है। तमिलनाडु से शुरू हुआ विरोध महाराष्ट्र तक पहुंच गया है। महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का असर यह हुआ कि 2 दशक तक एक-दूसरे के खिलाफ जमकर बोलने वाले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पहली बार महाराष्ट्र में विजय यात्रा निकाल बैठे, एक साथ-एक मंच पर नजर आए। राज ठाकरे ने खुद कहा कि जो काम बाल ठाकरे नहीं कर पाए, वह काम देवेंद्र फडणवीस कर गए, दो भाई मिल गए। देवेंद्र फडणवीस ने अनिवार्य हिंदी पर लिए गए फैसले को लेकर कहा था कि मराठी को कभी कमतर नहीं आंका गया, हिंदी को वैकल्पिक भाषा के तौर पर पेश किया गया था। साल 2020 और 2021 में उद्धव ठाकरे की महा विकास अघाड़ी सरकार ने शुरू किया।
महाराष्ट्र में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य की गई थी, जिसका ठाकरे बंधुओं ने विरोध किया था। 17 जून को संशोधित जीआर ने हिंदी को वैकल्पिक बनाया लेकिन विकल्पों पर शर्तों की वजह से सरकार पर हिंदी थोपने के आरोप लगे। उद्धव ठाकरे ने कहा, 'हम हिंदी के खिलाफ नहीं, बल्कि प्राथमिक स्तर पर इसे थोपने का विरोध करते हैं।' राज ठाकरे ने धमकी दी कि यह प्रस्ताव स्थाई तौर पर वापस लिया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो नरेंद्र जाधव समिति को काम नहीं करने देंगे। सरकार ने नीति की समीक्षा के लिए नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है।
यह भी पढ़ें:- 3 भाषा फॉर्मूले पर पीछे हटी महाराष्ट्र सरकार, वापस लिया गया आदेशr
एमके स्टालिन, CM, तमिलनाडु:-
तमिलनाडु और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम हिंदी थोपे जाने के खिलाफ पीढ़ियों से लड़ रहे हैं। यह संघर्ष अब महाराष्ट्र तक फैल गया है। बीजेपी तमिलनाडु को धमकी देती है कि फंड तभी मिलेगा जब स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाएगी, महाराष्ट्र में विरोध के डर से नाकाम रही। उद्धव ठाकरे की मुंबई रैली ने हिंदी थोपने का विरोध किया। तमिलनाडु के लोग नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी और संस्कृत थोपने के खिलाफ बौद्धिक और तार्किक लड़ाई लड़ रहे हैं। केंद्र सरकार को तमिलनाडु के बच्चों के लिए 2,152 करोड़ रुपये तुरंत जारी करने चाहिए। तमिलनाडु एकजुट होकर जीतेगा।
महाराष्ट्र में लोग बोलते हैं हिंदी, फिर विरोध क्यों?
महाराष्ट्र में हिंदी विरोधी आंदोलन, शिवसेना और मनसे से इतर किसी और पार्टी ने नहीं की। विदर्भ और मराठवाड़ा में हिंदी बोलने वालों की बड़ी आबादी है। मराठी अस्मिता के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एकजुट हुए। दोनों पार्टियों की नीति, हिंदी विरोध और मराठी एकता पर टिकी है। महाराष्ट्र का उग्र विरोध दशकों पुराना है। महाराष्ट्र में हिंदी विरोध का मुख्य कारण मराठी अस्मिता और भाषाई पहचान की रक्षा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के फैसले को शिवसेना (UBT) और मनसे ने मराठी संस्कृति पर हमला माना। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने इसे हिंदी थोपने की कोशिश करार दिया। समर्थक भी भड़के। विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक दबाव के बाद सरकार ने फैसला वापस लिया।
यह भी पढ़ें: 'गुंडई करोगे तो बर्दाश्त नहीं करेंगे', MNS मारपीट मामले में CM फडणवीस
कितना पुराना है महाराष्ट्र में हिंदी विरोध?
महाराष्ट्र में हिंदी विरोध की जड़ें 1950-60 के दशक में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से जमी हैं। 1960 में महाराष्ट्र राज्य के गठन के बाद मराठी अस्मिता की मांग तेज हुई। हिंदी को राष्ट्रीय भाषा तौर पर थोपे जाने की आशंका कुछ लोगों ने जताई। साल 1965 में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के केंद्र के प्रयासों के खिलाफ शिवसेना ने आंदोलन शुरू किया है। उद्धव और राज ठाकरे भी विरोध करते रहे हैं।
यह भी पढ़ें: अपनी वापसी के लिए महाराष्ट्र में 2005 वाला दौर ला रहा है ठाकरे परिवार?
और किन राज्यों में है बढ़ी चुनौती, चुनावी कनेक्शन क्या है?
- केरल: केरल को यूजीसी रेग्युलेशन 2025 पर ऐतराज है। केरल के सीएम पिनराई विजयन ने मुखर होकर विरोध किया है। उनका मानना है कि अगर इस नीति पर चले तो अकादमिक मानक गिर जाएंगे, राज्य की भूमिका पढ़ाई-लिखाई में सीमित होगी, केंद्र की दखल बढ़ेगी। केरल को भी लगता है कि केंद्र सरकार हिंदी थोपना चाहती है।
- तेलंगाना: तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी भी हिंदी थोपे जाने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि वह हिंदी थोपे जाने के खिलाफ हैं। लोगों को भाषा सीखने के लिए मजबूर करने की जरूरत नहीं है।
- कर्नाटक: कर्नाटक में कन्नड़ और अंग्रेजी के अलावा तीसरी भाषा को स्वीकार करने के लिए राज्य के सीएम सिद्धारमैया तैयार नहीं हैं। वह 1 से 5 तक के स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के खिलाफ हैं।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हिंदी थोपे जाने के सबसे मुखर विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदी की वजह से 30 से ज्यादा भाषाएं खत्म हो गईं। एमके स्टालिन का भी आरोप है कि बीजेपी हिंदी थोपने का दबाव बना रही है।
- दूसरे राज्य: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवान मान भी हिंदी थोपे जाने के खिलाफ हैं।
हिंदी विरोध का चुनावी एंगल क्या है?
दक्षिण भारतीय राज्यों में बीजेपी जड़ नहीं जमा पाई है। दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधियों और भाषाई आंदोलनकारियों ने साफ तौर पर कहा है कि हम हिंदी के थोपे जाने का विरोध करते हैं। बीजेपी के विरोध की वजह सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक भी है। यहां की सत्तारूढ़ पार्टियां क्षेत्रीय आंदलोनों की वजह से सत्ता में हैं। उनका तर्क है कि हिंदी को बढ़ावा देने की कथित नीतियों की वजह से तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम जैसी स्थानीय भाषाओं पर खतरा मंडराता है। बीजेपी उत्तर भारतीय राजनीति करती है, जो दक्षिण की सांस्कृतिक विविधता के ठीक उलट है। ये क्षेत्रीय दल, बीजेपी को अपनी स्थानीय आजादी के लिए खतरा मानते हैं।