वक्फ विधेयक 2025 पर नरेंद्र मोदी सरकार का साथ देकर नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के अल्पसंख्यक नेताओं को नाराज कर दिया है। वक्फ पर भारतीय जनता पार्टी के साथ सुर में सुर मिलाकर चलने वाले नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में जुटी भीड़ से ही लग गया था कि इस बार उनके अपने नेता ही किनारा कर रहे हैं। एक के बाद एक पार्टी के 5 सीनियर नेताओं ने जेडीयू से वक्फ पर रुख को लेकर किनारा कर लिया है।
वक्फ संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो चुका है, अब राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। वक्फ पर नरेंद्र मोदी सरकार का साथ देने की वजह से उनके 5 मुस्लिम नेता पार्टी छोड़कर चले गए। सबने एक सुर में नीतीश कुमार के फैसले की आलोचना की है। जेडीयू नेता नदीम अख्तर ने भी वक्फ संशोधन विधेयक पर पार्टी छोड़ दी है।
अब तक किन नेताओं ने छोड़ी है पार्टी?
बिहार में जेडीयू नेता राजू नायर, तबरेज सिद्दीकी, मोहम्मद शहनवाज मलिक और मोहम्मद कासिम अंसारी ने वक्फ संशोधन विधेयक संसद से पारित होने के बाद जेडीयू से किनारा कर लिया है। इन नेताओं ने कहा है कि यह धार्मिक मामलों में सरकार का दखल है, जो पूरी तरह से गलत है। जेडीयू को इसमें बीजेपी का साथ नहीं देना चाहिए।
इस्तीफे में नीतीश के नेताओं ने क्या लिखा?
राजू नायर ने अपने इस्तीफे में लिखा, 'जेडीयू ने वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन किया है। यह बहुत चोट पहुंचाने वाला है। मैं जेडीयू से इस्तीफा देता हूं। यह काला कानून है, जिसे मुस्लिमों को दबाने के लिए लाया गया है। जैसे ही वक्फ संशोधन विधेयक सदन से पास हुआ, मैंने इस्तीफा दे दिया।' उन्होंने पार्टी से अनुरोध किया है कि सभी दायित्वों से उन्हें मुक्त किया जाए।

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तबरेज हसन ने भी नीतीश कुमार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि उन्होंने मुस्लिमों का भरोसा तोड़ा है। मुस्लिमों को लगता था कि नीतीश कुमार उनके साथ खड़े हैं लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा, 'मुझे लगा था कि आप अपनी सेक्युलर छवि कभी नहीं तोड़ेंगे। आपने इसकी जगह उनका साथ दिया जो लगातार मुस्लिमों की आवाज दबाने की कोशिश कर रहे हैं।'

AIMPLB ने भी वक्फ विधेयक पर उठाए थे सवाल
वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी सख्त रुख अपनाया था। बोर्ड ने सभी धर्मनिरपेक्ष दलों, भारतीय जनता पार्टी के सहयोगियों और सांसदों से इस विधेयक को खारिज करने की अपील की थी। इस विधेयक पर राज्यसभा में 12 घंटे से अधिक समय तक चली तीखी बहस के बाद इसे पारित किया गया। बहस गुरुवार दोपहर से शुरू होकर देर रात तक चली।
बचाव में केंद्र ने क्या कहा?
नरेंद्र मोदी सरकार ने इस विधेयक का बचाव किया है। उन्होंने कहा है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए यह जरूरी है। विपक्ष ने इसे असंवैधानिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रहार बताया है। विपक्ष का कहना है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारिरों पर हमला किया गया है।
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क्यों घिरी है JDU?
जेडीयू नेताओं के इस्तीफे की वजह से पार्टी में कलह बढ़ती जा रही है। नीतीश कुमार की छवि सेक्युलर नेता की रही है। वह बीजेपी के सहयोगी होने के बाद भी अपनी सेक्युलर छवि बचाने में कामयाब रहे हैं। अब उनकी इस छवि पर सवाल उठ रहे हैं। उनके इस फैसले से उन्हीं की पार्टी के नेता नाराज हो गए हैं।
RJD का MY समीकरण, अब कितनी बड़ी चुनौती?
बिहार में नवंबर 2025 तक चुनाव हो सकते हैं। लालू यादव के नेतृत्व वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के कोर वोटर 'मुस्लिम-यादव' कहे जाते हैं। नीतीश कुमार बिहार में अरसे से सत्ता में टिके हैं, इसकी वजह से राज्य की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी का भी समर्थन है। RJD के बारे में कहा जाता है कि मुस्लिम और यादव पारंपरिक रूप से बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के वोटर हैं। दोनों दलों की संख्या निर्णायक है। यादव समुदाय की संख्या 14 फीसदी से ज्यादा है। आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी भी है। कांग्रेस के साथ गठबंधन है और कांग्रेस ने भी वक्फ पर केंद्र के खिलाफ ही रुख जताया है, अल्पसंख्यक हितों की बात की है।
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बीजेपी के हिंदुत्ववादी राजनीति के बाद भी नीतीश अल्पसंख्यक वोटों को जेडीयू में लाने में कामयाब रहे हैं, अब इसी पर खतरा मंडरा रहा है। जब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य पटना में धरने पर बैठे थे, तब लालू यादव को लेकर तेजस्वी यादव मंच पर पहुंच गए थे। उन्होंने मुस्लिम बोर्ड को भरोसा दिया था कि वक्फ संशोधन विधेयक लागू नहीं होने देंगे, इसके लिए सरकार से सवाल करेंगे।
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बिहार में करीब 243 विधानसभा सीटें हैं। 18 फीसदी आबादी मुस्लिम है। 47 सीटें मुस्लिम बाहुल हैं। राष्ट्रीय जनता दल के पास 75 सीटें हैं, बीजेपी के पास 74 सीटें हैं, जेडीयू के पास 43 सीटें हैं, कांग्रेस के पास 19 और लोजपा के पास 1 सीटें हैं। अन्य पार्टियों के पास 31 सीटें हैं। अगर नीतीश कुमार बेहद कम सीटों के बाद भी मुख्यमंत्री बने हुए हैं। उन्हें अल्पसंख्यक वर्ग का बड़ा तबका वोट करता था। उनकी इफ्तार पार्टी सुर्खियों में रहती थी। अब वक्फ पर बीजेपी का समर्थन कर मुश्किल में घिर गए हैं। अब उन्हें मुस्लिम नेताओं को फिर से एकजुट करने की जरूरत पड़ रही है।