कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) के बीच गठबंधन सिर्फ लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए है। स्थानीय चुनावों में दोनों दल, अलग-अलग अपने उम्मीदवारों को उतारेंगे। यह 'दोस्ताना लड़ाई' नहीं होगी, ठीक वैसी ही लड़ाई होगी, जैसे चुनावों में विरोधी पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं। पहले महाराष्ट्र में और अब कर्नाटक में इसी सिद्धांत पर निकाय चुनाव लड़ने जाने की तैयारी एनडीए गठबंधन के दोनों सहयोगियों ने की है। 

जनता दल (सेक्युलर) के शीर्ष नेतृत्व ने साफ कहा है कि स्थानीय स्तर पर, निकाय चुनावों के लिए बीजेपी और जेडी(एस) में कोई चुनावी गठबंधन नहीं हैं। निकाय चुनावों में दोनों दलों के उम्मीदवार अलग-अलग ही उतरेंगे। गठबंधन सिर्फ विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए है। भारतीय राजनीति में ऐसे गठबंधन चौंकाते नहीं हैं। स्थानीय समीकरणों को सुलझाने के लिए अक्सर ऐसे राजनीति प्रयोग किए जाते रहे हैं। 

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एचडी देवेगौड़ा, JD(S) प्रमुख:-
विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन जारी रहेगा। लेकिन जिला पंचायत, तालुक पंचायत और अन्य स्थानीय निकायों सहित शहरी स्थानीय निकायों के लिए गठबंधन मुश्किल होगा।


निकाय चुनावों में क्यों साथ नहीं बन पाई बात?

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने शुक्रवार को खुद कहा कि कर्नाटक में बीजेपी और जेडी(एस) गठबंधन केवल लोकसभा और विधानसभा चुनावों तक ही सीमित है और यह स्थानीय निकाय चुनावों के लिए नहीं है। जेडी(एस) अपने जमीनी आधार को मजबूत करने के लिए स्वतंत्र रूप से स्थानीय निकाय चुनाव लड़ेगी।

एचडी देवेगौड़ा ने यह भी कहा है कि भारतीय जनता पार्टी और जेडी(एस) गठबंधन ने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अच्छा काम किया है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों के लिए पार्टी संगठन और स्वतंत्र ताकत पर केंद्रित एक अलग नजरिए की जरूरत है। 

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क्या बीजेपी और जेडी(एस) के तल्ख होंगे रिश्ते?

निकाय चुनावों में पहले भी एनडीए गठबंधन की पार्टियां, एक-दूसरे के खिलाफ लड़ चुकी हैं। राजनीतिक दल, स्थानीय स्तर पर अपने कैडर को मजबूत करने के लिए ऐसा करते रहे हैं। कैडर, निकायों चुनावों में ही तैायर होता है। एचडी देवेगौड़ा ने कहा है कि प्रधानमंत्री नेरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ बीजेपी और जेडी(एस) के रिश्ते सौहार्दपूर्ण बने हुए हैं। 

क्यों निकाय चुनावों में आपस में लड़ जाते हैं सहयोगी दल?

राजनिति के जानकारों का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल को जमीनी स्तर पर जिंदा, कार्यकर्ता रखते हैं। निकाय चुनावों में गठबंधन सहयोगी दल इसलिए उलझते हैं क्योंकि क्योंकि ये चुनाव स्थानीय स्तर के होते हैं। यहां फैसले, दलों की जमीनी पकड़, कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षा और व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता के समीकरणों को साधते हुए लिए जाते हैं।

राज्य या राष्ट्रीय चुनावों की तरह यहां गठबंधन एकजुट नहीं रह पाता है। स्थानीय समीकरण, विधानसभा या लोकसभा चुनाव की तुलना में ज्यादा हावी होते हैं। कई बार सीट बंटवारे पर असहमति, स्थानीय कार्यकर्ताओं का आक्रोश, 'फ्रेंडली फाइट' और स्थानीय प्रभाव बनाए रखने की चाहत, पार्टी के भीतर ही अनबन पैदा कर देती है। इससे बचने के लिए राजनीतिक दल ऐसे कदम उठाते हैं। 

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महाराष्ट्र के बाद अब कर्नाटक में भी NDA के दल आपस में लड़ेंगे

महाराष्ट्र में महायुति के तीन सहयोगी दल हैं, बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी। विपक्षी गठबंधन, महा विकास अघाड़ी के दलों में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) में शामिल हैं। कई जगहों पर महायुति और महा विकास अघाड़ी के सहयोगी दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतारे। राजनीतिक दल,संगठन मजबूत करने के लिए ऐसे फैसले लेते हैं। कर्नाटक में बीजेपी और जेडी(एस) का गठबंधन जारी रहेगा लेकिन निकाय चुनाव, दोनों दल अलग-अलग लड़ेंगे।