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महाराष्ट्र निकाय चुनाव: बार-बार जीती महायुति, हर बार MVA की हार, गलती कहां हुई?

महाराष्ट्र में महायुति ने एक बार फिर खुद को साबित किया है। ज्यादातर निकाय चुनावों में महायुति की जीत हुई है, बीजेपी एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बनी है। क्या हैं इस जीत के मायने, आइए समझते हैं।

Devendra Fadanvis

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस। Photo Credit: PTI

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महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में महायुति, विधानसभा चुनावों की तरह एक बार फिर महा विकास अघाड़ी पर भारी पड़ी है। 288 निकायों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अकेले 129 निकायों में जीत हासिल की है। दो चरणों में हुए इस चुनाव में बीजेपी ही सबसे बड़ी पार्टी है। महायुति की कुल सीटें 200 से ज्यादा हैं। एक तरफ शिवसेना ने 51 स्थानीय निकायों में जीत हासिल की है, वहीं नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने 33 सीटों पर जीत हासिल की है। महा विकास अघाड़ी, संयुक्त रूप से भी 50 पार नहीं कर पाई है। 

महा विकास अघाड़ी ने किसी तरह 50 निकायों में जीत हासिल की है। MVA की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस बनी, जिसने 35 सीटें हासिल कीं, वहीं शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) ने 8-8 निकायों में जीत दर्ज की। महा विकास अघाड़ी का दावा था कि निकाय चुनावों में महायुति की अनबन की वजह से उन्हें लाभ मिलेगा लेकिन जमीन पर ऐसा बिलकुल भी नजर नहीं आया। 

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BJP के लिए क्या हैं इस जीत के मायने?

  • BMC की राह हुई आसान: महाराष्ट्र निकाय चुनावों को आगामी बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (BMC) नगर निगम चुनावों का लिटमस टेस्ट माना जा रहा था। ये चुनाव, बीजेपी के पक्ष में गए हैं, ऐसे में एक बार फिर बीजेपी खुश नजर आ रही है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पार्टी ने राज्य में विपक्ष के सारे राजनीतिक समीकरणों को ध्वस्त किया है। उन्होंने जीत का श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को दिया है। स्थानीय स्तर पर पार्टी और मजबूत हुई है। 15 जनवरी को BMC और अन्य नगर निगमों के चुनाव होने वाले हैं।

  • ध्वस्त हुए अनबन वाले नैरिटिव: निकाय चुनावों ने साफ किया है कि महायुति के शीर्ष नेतृत्व में अनबन है। विपक्ष की तरफ से दावा किया जा रहा था कि अजीत पवार, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस में अनबन है, गठबंधन कलह से जूझ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इस अनबन को बार-बार महायुति के नेता खारिज कर रहे थे। अब नतीजे जमीन पर भी नजर आए हैं। 

  • महायुति पर बढ़ा भरोसा: महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी रही। एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। यह जीत 15 जनवरी को होने वाले मुंबई सहित अन्य नगर निगम चुनावों से पहले महायुति के लिए बड़ा बढ़ावा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि लोगों ने बीजेपी और गठबंधन पर अच्छे शासन के लिए भरोसा जताया है।

  • देवेंद्र फडणवीस का कद और बढ़ा: देवेंद्र फडणवीस के सियासी जीवन की शुरुआत पार्षद से हुई है। उन्होंने राज्य भर में 38 रैलियां कीं और गठबंधन के अनबन को सुलझाते हुए चुनाव लड़ा। चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ स्थानीय नेताओं के दलबदल और क्षेत्र नियंत्रण को लेकर झगड़े हुए थे, जिसे उन्होंने संयसम से सुलझाया। शिवसेना और एनसीपी मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। देवेंद्र फडणवीस ने इसे सुलझा लिया। 

  • कमजोर विपक्ष का नैरेटिव सच साबित हुआ: बीजेपा ने इन चुनावों को विधानसभा और संसदीय चुनावों की तरह बेहद गंभीरता से लड़ा है। राज्य की कैबिनेट के बड़े मंत्री जमीन पर उतरे। खुद देवेंद्र फडणवीस ने 38 रैलियां कीं। अपनी जमीनी ताकत को बीजेपी ने फिर आजमाया और स्थानीय स्तर पर बड़े चेहरे उतरे। 

  • भविष्य की रणनीति तैयार कर रही बीजेपी: महाराष्ट्र में बीते 3 विधानसभा चुनावों में यह साबित हुआ है कि बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी और मजबूत पार्टी है। दिलचस्प है कि बीजेपी सिर्फ अपने दम पर राज्य में कभी सत्ता में नहीं आई है। बीजेपी अब खुद को संगठनिक स्तर पर ज्यादा मजबूत कर रही है कि अगर गठबंधन की पार्टियां धोखा दे रहीं हैं तो भी अकेले जीत का लक्ष्य हासिल किया जा सके। सहयोगियों के बिना भी सत्ता हासिल की जा सके। 

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महायुति के नेता। फाइल फोटो। Photo Credit: PTI

कहां गलती कर रहा महा विकास अघाड़ी?

एक तरफ निकाय चुनावों में जीत से महायुति और बीजेपी के कार्यकर्ता खुश हैं, दूसरी तरफ महा विकास अघाड़ी को बड़ा झटका रहा है। जिस शिवसेना (जब विभाजन नहीं हुआ था) का बीएमसी चुनावों में जलवा रहता था, अब वही सबसे कमजोर कड़ी बन चुकी है। विपक्ष यह चुनाव हार गया है। चुनाव प्रचार में बीजेपी जैसी आक्रामकता के साथ न उद्धव ठाकरे नजर आए, न शरद पवार। एनसीपी (शरद) गुट की दूसरी सबसे बड़ी नेता सुप्रिया सुले भी दिल्ली में ज्यादा नजर आईं, महाराष्ट्र में कम। कांग्रेस के बड़े नेता जमीन पर नजर ही नहीं आए। गठबंधन में आपसी तालमेल की तगड़ी कमी नजर आई।

महा विकास अघाड़ी, आपसी कलह में ऐसे उलझी की है कि यह ही तय नहीं है कि जमीन पर साथ में कैसे उतरना है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) तो दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाए हैं, जबकि दावा किया जा रहा था कि इस बार जनता सारे समीकरण ध्वस्त कर देगी। ईवीएम वाला एजेंडा भी विपक्ष का धराशायी हो गया। पार्टी जमीनी स्तर पर बेहद कमजोर नजर आ रही है।

 शिवसेना बीते 3 दशक से बीएमसी में काबिज थी, लेकिन अब समीकरण पक्ष में नजर नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस एक बार फिर हार का ठीकरा बीजेपी पर ही फोड़ दिया। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने यह चुनाव सत्ता में धांधली से जीत लिया है। राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा है कि सत्ता का दुरुपयोग किया गया है, पैसे फेंके गए हैं और गुंडागर्दी से चुनाव लड़ा गया है, जिसकी वजह से राज्य में महा विकास अघाड़ी हारी है। दूसरी तरफ बीजेपी का कहना है कि जमीनी स्तर पर आपका कोई संगठन नहीं है, हार इस वजह से हुई है।


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