- अमृतपाल के संसदीय क्षेत्र की आवाज कौन उठाएगा? जवाब दे AAP- रवनीत सिंह बिट्टू केंद्रीय मंत्री
- पैरोल किस आधार पर रद्द की? बताए पंजाब सरकार- पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट
- पंजाब की AAP सरकार जानबूझकर पैरोल देने से इनकार कर रही है- तरसेम सिंह (सांसद अमृतपाल के पिता)
संसद के शीतकालीन सत्र में वोट चोरी, SIR जैसे मुद्दों पर चर्चा हो रही है तो संसद से करीब 456 किलोमीटर दूर पंजाब के अमृतसर में खडूर साहिब लोकसभा सीट से सांसद अमृतपाल के समर्थक पंजाब सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। असम की जेल में बंद सांसद अमृतपाल ने पंजाब सरकार से संसद के शीतकालीन सत्र में शामिल होने के लिए पैरोल मांगी थी लेकिन सरकार ने उनकी पैरोल को खारिज कर दिया है। इस मुद्दे पर अब केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने पंजाब की आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान पर सवाल उठाए हैं।
केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने संसद सत्र के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और पंजाब की AAP सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा, 'अमृतपाल के बारे में मेरी पार्टी के विचार कुछ भी हो सकते हैं, वह अलग चीज है लेकिन अमृतपाल 15-20 लाख लोगों के चुने हुए सांसद हैं। लोकतंत्र के इसी मंदिर में स्पीकर ने उन्हें शपथ दिलाई है। मुझे ज्यादा चिंता है कि जिस इलाके से वह सांसद है उस क्षेत्र की नौ विधानसभा क्षेत्रों की आवाज उठाने का काम कौन करेगा।'
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AAP पर बोला हमला
रवनीत सिंह बिट्टू ने पंजाब सरकार को घेरते हुए स्पष्ट किया कि अमृतपाल पर जो नेशनल सिक्योरिटी ऐक्ट (NSA) लगाया गया है वह केंद्र सरकार या मोदी ने नहीं बल्कि पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने लगाया है। इसके पीछे पंजाब सरकार, मुख्यमंत्री भगवंत मान, SSP, DC, DGP और चीफ सेक्रेटरी हैं। रवनीत बिट्टू ने कहा, ' जब हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार से पैरोल पर सवाल किया तो वे कहते हैं कि पांच दरिया (पांच नदियों) की धरती पर आग लग जाएगी। कितनी निकम्मी सरकार है। यह बात साफ है कि अमृतपाल को जेल में रखने के पीछे पंजाब सरकार का हाथ है।'
पैरोल के विरोध में क्यों पंजाब सरकार?
- सांसद अमृतपाल ने संसद के शीतकालीन सत्र में शामिल होने के लिए पैरोल के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में संसद सत्र में शामिल होने को अपना संवैधानिक अधिकार बताया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जाने के लिए कहा और याचिका खारिज कर दी।
- इसके बाद हाई कोर्ट में याचिका दर्ज की गई और हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार से जवाब मांगा। कोर्ट ने पंजाब सरकार को एक हफ्ते के अंदर पैरोल की अर्जी पर फैसला लेने को कहा।
- पंजाब सरकार ने अमृतपाल की पैरोल अर्जी को खारिज कर दिया। अमृतसर के डीसी ने कहा कि अमृतपाल के बाहर आने और संसद में बोलने से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। उन पर NSA के तहत केस दर्ज है।
पैरोल अर्जी खारिज होने के बाद अमृतपाल ने हाई कोर्ट में पंजाब सरकार के फैसले को चुनौती दी। हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार से पैरोल अर्जी खारिज करने का आधार पूछते हुए दस्तावेज मांगे हैं। हाई कोर्ट 8 दिसंबर को होने वाल अगली सुनवाई में पैरोल पर कोई फैसला ले सकता है।
जेल में क्यों बंद हैं अमृतपाल
अमृतपाल को 2022 में 'वारिस पंजाब दे' संगठन का प्रमुख बनाया गया। यह संगठन सिख खालिस्तान का समर्थन करता है। इस संगठन से जुड़े हजारों लोगों ने 23 फरवरी 2023 को अमृतपाल के करीबी लवप्रीत सिंह तूफान की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर में एक थाने पर हमला कर दिया था। इस भीड़ का नेतृत्व अमृतपाल सिंह ही कर रहे थे।
इसके बाद वह घर से फरार हो गए थे और पुलिस ने उन्हें और करीब एक महीने बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। तब से वह असम के डिब्रूगड़ जेल में बंद हैं। 2024 में उन्होंने जेल से ही विधानसभा चुनाव लड़ा था और भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। सांसद के रूप में शपथ लेने के लिए उन्हें 4 दिन की पैरोल मिली थी।
रवनीत सिंह बिट्टू के बदले सुर
रवनीत सिंह बिट्टू ने अचानक अमृतपाल के समर्थन में बयान दिया है। यह बयान उनके पुराने बयानों के उल्ट है। इससे पहले वह अमृतपाल को पंजाब की शांति के लिए खतरा बताते रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अमृतपाल को अलगाववादी नेता करार देते हुए कहा था, 'अगर वह लोकसभा के लिए चुने गए तो अमृतपाल जैसे लोग पंजाब में शांतिप्रिय लोगों को रहने नहीं देंगे।' इससे पहले जब बिट्टू कांग्रेस में थे तो उन्हें उनके दादा के जैसा हाल करने की धमकी भी मिली थी। उनके दादा बेअंत सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री थे और 1995 में खालिस्तानी उग्रवादियों से जुड़े एक आत्मघाती हमले में उनकी हत्या हो गई थी। रवनीत बिट्टू को मिली धमकी को अमृतपाल के खिलाफ दिए बयानों का नतीजा ही बताया गया था।
गौरतलब है कि 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं और भारतीय जनता पार्टी के पास फिलहाल कोई ठोस योजना चुनावों के लिए नहीं है। पार्टी अपने शहरी हिंदू वोटबैंक के जरिए सत्ता हासिल नहीं कर सकती। इसलिए पार्टी को बहुसंख्यक सिखों का भी साथ चाहिए। सिख धर्म से जुड़ी ताकतें पंजाब की राजनीति में उभर रही हैं और इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। फरीदकोट और खडूर साहिब दोनों सीटों से खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करने वाले उम्मीदवार जीते। अमृतपाल के अलावा फरीदकोट से सरबजीत सिंह भी चुनाव जीते थे। बता दें कि सरबजीत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हथियारे बेअंत सिंह के बेटे हैं।
रवनीत सिंह बिट्टू के इस बयान को राजनीतिक जानकार बीजेपी की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। बीजेपी चाहती है कि सिख उनके साथ जुड़े ताकि वह 2027 के चुनावों में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सके। 2022 के चुनाव बीजेपी ने अकाली दल के साथ गठबंधन से अलग होकर लड़े थे लेकिन चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी को 7 प्रतिशत से भी कम वोट मिले और सिर्फ 3 विधायक ही विधानसभा पहुंच पाए। बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सिखों को अपने साथ जोड़ने की कवायद कर रही है और रवनीत बिट्टू का यह बयान इसी क्रम से जोड़कर देखा जा रहा है।
