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किन शर्तों पर BJP के साथ NDA में वापसी चाहता है अकाली दल? मुश्किलें समझिए

पंजाब में अकाली और बीजेपी फिर से एक साथ आ सकते हैं। अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर ने गठबंधन के लिए बीजेपी के सामने कुछ शर्तें रखी हैं।

Punjab politics BJP and Shiromani Akali Dal

बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल, Photo Credit: SORA

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पश्चिम बंगाल चुनाव की तैयारी में जुटी है तो वहीं उत्तर भारत में पंजाब में पार्टी असमंजस की स्थिति में है। पंजाब बीजेपी के लिए एक अभेद्य किले की तरह रहा है। नवंबर 2025 में तरनतारन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार की जमानत भी जब्त हो गई। उन्हें मात्र 6239 वोट मिले। इस उपचुनाव के बाद पंजाब बीजेपी में पुराने गठबंधन के साथी शिरोमणि अकाली दल को साथ लाने की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर बीजेपी और अकाली दल फिर से एक साथ नहीं आए तो 2027 का चुनाव नहीं जीत सकते। वहीं, अकाली दल ने गठबंधन पर बातचीत शुरू करने के लिए कुछ शर्तें रख दी हैं। 

 

कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब बीजेपी के सीनियर नेता हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में पंजाब बीजेपी के कमजोर होने की बात मानी और कहा कि अकाली दल के साथ गठबंधन बीजेपी को जमीनी नेटवर्क दे सकता है, वरना बीजेपी को अपना खुद का आधार तैयार करने में दो से तीन चुनाव लग जाएंगे। उन्होंने कहा, 'अकाली दल के साथ गठबंधन के बिना सरकार बनाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। ' राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पंजाब बीजेपी के कई बड़े नेता अकाली दल के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं।

 

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अकाली दल का स्टैंड

अकाली दल भी जानता है कि अगर उन्हें पंजाब की सत्ता में वापसी करनी है तो बीजेपी के साथ गठजोड़ करने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। पंजाब में अकाली दल का गिरता ग्राफ और पार्टी के नेताओं में आपसी टकराव के कारण पार्टी लगातार चुनाव हार रही है। ऐसे में अकाली दल के नेता भी चाहते हैं कि उन्हें कोई मजबूत साथी मिले। पिछले चुनाव में अकाली दल ने बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) के साथ गठबंधन किया था लेकिन गठबंधन का रिजल्ट पर कोई असर दिखाई नहीं दिया। अकाली दल की हार का सिलसिला जारी रहा। 

 

गठबंधन को लेकर शुरू हुई चर्चा पर अब अकाली दल की ओर से भी प्रतिक्रिया सामने आई है। पूर्व कैबिनेट मंत्री और सांसद हरसिमरत कौर बादल ने भी बीजेपी और अकाली दल के गठबंधन के संकेत दिए। हालांकि, उन्होंने गठबंधन ना होने के लिए बीजेपी और पंजाब के कुछ नेताओं पर निशाना साधा। हरसिमत कौर बादल ने कहा, 'बीजेपी की सरकार पंजाब में कभी नहीं बन पाएगी। बीजेपी के सीनियर नेता पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ और पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह जमीनी हकीकत जानते हैं। दिल्ली में बैठे पुराने अकाली नेता और अपने निजी हितों को ध्यान रखकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को सलाह देने वाले नेताओं की दुकानें बंद हो जाएंगी, अगर अकाली दल के साथ बीजेपी का गठजोड़ हो गया। उनको जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है। अगर बीजेपी अकेले चुनाव लड़ती है तो 2032 में भी सरकार नहीं बना पाएगी।'

किन शर्तों पर होगा गठबंधन?

हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि बीजेपी और अकाली दल का गठजोड़ हो सकता है लेकिन उसके लिए बीजेपी को पंजाब के मुद्दों को हल करना होगा। हरसिमरत कौर ने कहा, 'हमारी पार्टी पंजाब के हकों के साथ कभी समझौता नहीं करेगी। मैंने किसान कानूनों पर बीजेपी को समझाने की कोशिश की थी लेकिन जब बात नहीं बनी तो मैंने उनका साथ छोड़ दिया क्योंकि हमारे लिए सत्ता जरूरी नहीं है। हमारे लिए पंजाब के हकों की लड़ाई जरूरी है' उन्होंने यह भी बताया कि बीजेपी ऐसा क्या कर सकती है कि उसे अपना पुराना दोस्त पंजाब में वापस मिल जाए। उन्होंने गठबंधन के लिए कुछ मुद्दे रखे हैं जिनका हल केंद्र सरकार को निकालना होगा।

 

  • सिखों के धार्मिक स्थानों में दखल ना दिया जाए। SGPC को कमजोर करने की कोशिश ना करें और हरियाणा SGPC के अलग से चुनाव ना हों।
  • पंजाब के पानी के मुद्दों पर बात हो। बाहरी लोगों को BBMB में जगह ना दी जाए। हरियाणा और राजस्थान के प्रतिनिधियों को BBMB में जगह ना दी जाए।
  • बंदी सिखों को रिहा किया जाए। आरोप है कि सिखों को केंद्र सरकार निशाना बना रही है।
  • पंजाब यूनिवर्सिटी समेत अन्य संस्थानों में केंद्र दखल ना दे। 
  • MSP और किसानों के मुद्दों पर बातचीत शुरू की जाए।

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हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि अकाली दल का लक्ष्य सत्ता में आना नहीं बल्कि पंजाब के मुद्दों को हल करना है। अगर बीजेपी इन सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है तो हम बीजेपी के साथ गठजोड़ के बारे में सोच सकते हैंउन्होंने कहा कि जब वह बीजेपी के साथ थीं तो बीजेपी ने बंदी सिखों की रिहाई के लिए नोटिफिकेशन भी जारी किया था लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया।

2020 में टूटा था गठबंधन

अकाली दल और बीजेपी का गठजोड़ बहुत पुराना था। शिवसेना और अकाली दल ही बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी थे। 1992 तक बीजेपी और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ते थे लेकिन चुनाव के बाद एक साथ आ जाते थे। 1994 तक अकाली दल सिर्फ सिखों की पार्टी थी लेकिन इसके बाद अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी रास्ते खोले गए। इसके बाद 1997 में बीजेपी और अकाली दल ने एक साथ चुनाव लड़ा था। अकाली बीजेपी का गठजोड़ पंजाब में कई सालों तक कामयाब रहा और पार्टी कई बार सत्ता में आई।

 

2017 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन पंजाब की सत्ता से बाहर हुआ और 2020 में 25 साल पुराना गठबंधन किसान कानूनों के कारण टूट गया। अकाली दल ने किसान कानूनों का विरोध किया। 17 दिसंबर 2020 को किसान कानूनों के विरोध में हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग-अलग लड़े। अकाली दल ने बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर एक नया प्रयोग किया, जो बुरी तरह असफल रहा। 

 

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बिन गठबंधन सत्ता का रास्ता मुश्किल

अकाली दल पंजाब की राजनीति में बड़ा खिलाड़ी रहा है। हालांकि, 2017 में अकाली दल का ग्राफ गिरना शुरू हो गया था। 2017 के चुनावों में अकाली दल मात्र 15 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद से अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन टूट गया और कई बड़े नेताओं ने पार्टी भी छोड़ दी थी। सुखबीर सिंह बादल के पुराने फैसलों के चलते पार्टी को विरोध का सामना करना पड़ा। बीजेपी भी गठबंधन के बाद पंजाब की राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाई। विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पार्टी को कांग्रेस से बड़े नेताओं को तोड़ने के बावजूद भी सफलता नहीं मिली।

 

2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 2 सीट पर तो अकाली दल 3 सीट पर सिमट गई। बीजेपी के बड़े नेताओं ने पंजाब में मेहनत की लेकिन पंजाब का किला बीजेपी के लिए अभेद ही रहा। अकाली दल के लिए यह अब तक की सबसे शर्मनाक हार थी। पार्टी के बड़े नेता और 11 बार विधायक रहे प्रकाश सिंह बादल, पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। बादल परिवार के सदस्य और सभी करीबी चुनाव में अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। अकाली दल को 18.38 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2017 के चुनाव से करीब 7 प्रतिशत कम थे। बीजेपी ने पूरे दमखम के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन पार्टी को सिर्फ 6.6 प्रतिशत वोट ही मिले, जो 2017 के चुनाव में मिले 5.4 प्रतिशत वोट से कुछ ही ज्यादा थे। ऐसे में दोनों पार्टियों को गठबंधन के बिना चुनाव लड़ने का नुकसान हुआ। 


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