वक्फ बिल पर लोकसभा में बहस जारी है। वक्फ पर जहां सत्ता पक्ष ने एक के बाद एक तर्क दिए कि वक्फ बिल को लाया जाना और वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन किया जाना क्यों जरूरी है वहीं विपक्ष ने इस बात को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की कि यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन है और उन्हें दबाने की कोशिश है।
बुधवार को वक्फ बिल के पेश होने के साथ ही लोकसभा की कार्यवाही काफी हो-हल्ले के साथ शुरू हुई। सुबह वक्फ (संशोधन) विधेयक को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा के पटल पर रखा। इसका विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर गौरव गोगोई ने कहा, 'यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। इस विधेयक के ज़रिए सरकार संविधान को कमज़ोर करना, अल्पसंख्यक समुदायों को बदनाम करना, भारतीय समाज को विभाजित करना और अल्पसंख्यक समुदायों को वंचित करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में, उनकी डबल इंजन वाली सरकारों ने लोगों को सड़कों पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं दी। आपके पास कितने अल्पसंख्यक सांसद हैं? हालांकि, इसका बचाव करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विधेयक का कभी भी किसी धार्मिक प्रथा या किसी मस्जिद के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं है। वहीं कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने निचले सदन में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर को चुनौती दी कि वे इस बात का सबूत दें कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पास किसी तरह की कोई वक्फ संपत्ति है।
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‘वक्फ के साथ अलग व्यवहार’
वक्फ विधेयक पर बोलते हुए वेणुगोपाल ने भाजपा रोजगार सृजन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कानून जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के बजाय वक्फ जैसे मुद्दों पर राजनीति को प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने बताया कि वैष्णो देवी अधिनियम के अनुसार बोर्ड के लिए हिंदू अध्यक्ष या नामित व्यक्ति होना अनिवार्य है और देवस्वोम बोर्ड भी इसी तरह काम करते हैं, लेकिन वक्फ बोर्ड के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है।
वहीं टीएमसी नेता और श्रीरामपुर के सांसद कल्याण बनर्जी ने बुधवार को लोकसभा में आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून का उद्देश्य हिंदू और मुस्लिम समुदायों को बांटना है।
उन्होंने कहा, 'कोई भी व्यक्ति जीवन के किसी भी चरण में, यहां तक कि मृत्यु के समय भी अपने धार्मिक दायित्वों को पूरा कर सकता है।' इससे पहले, तृणमूल कांग्रेस के सांसद ने प्रस्तावित कानून को 'गलत तरीके से बनाया गया, तर्कहीन और मनमाना' करार दिया था।
अमित शाह ने किया लालू का जिक्र
अमित शाह ने वक़्फ़ संशोधनों पर बोलते हुए आरजेडी प्रमुख लालू यादव की 2013 की टिप्पणी का हवाला दिया। 'उन्होंने वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक मज़बूत कानून बनाने की मांग की थी। जबकि आप उनके सपने को पूरा नहीं कर सके, नरेंद्र मोदी ने किया।' शाह ने कहा कि नया विधेयक पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।
वक़्फ़ संपत्ति की स्थिति निर्धारित करने में कलेक्टरों की भूमिका का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, 'भूमि से संबंधित यह मानक प्रक्रिया है। आपको यह साबित करना होगा कि वक़्फ़ संपत्ति के रूप में घोषित की जा रही भूमि सरकार की नहीं है।'
गैर-मुस्लिम सदस्य पर दी सफाई
गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाए जाने पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए बोर्ड और परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है। 'क्या हिंदू, जैन या सिख चैरिटी कमिश्नर दूसरे धर्म से नहीं हो सकते? आप देश को तोड़ देंगे। अगर उन्होंने 2013 के बिल में संशोधन करके इसे चरमपंथी नहीं बनाया होता तो यह बिल ज़रूरी नहीं था।
2014 के चुनावों से पहले, तुष्टीकरण के लिए, उन्होंने लुटियंस दिल्ली की महत्त्वपूर्ण जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में दे दिया।' उनका दावा है कि तिरुचेंदूर मंदिर की 400 एकड़ जमीन वक्फ संपत्ति के रूप में सौंप दी गई।
शाह ने कहा, 'वे हमसे कहते हैं कि हम इन सब का हिसाब न रखें। यह धन गरीब मुसलमानों का है, अमीर बोर्ड का नहीं।'
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क्यों हो रही आलोचना
विधेयक के कुछ सबसे विवादास्पद प्रावधानों में एक गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड का सदस्य बनने की अनुमति देना है, राज्य सरकारों द्वारा अपने राज्य के वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त किए जा सकने का प्रावधान करना, जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने की शक्ति देना कि विवादित संपत्ति वक्फ है या सरकार की है, 'वक्फ बाई यूजर' की अवधारणा को खत्म करना, यह अनिवार्य करना कि कानून के लागू होने के छह महीने के भीतर प्रत्येक वक्फ संपत्ति को केंद्रीय डेटाबेस पर रजिस्टर किया जाए, और उस प्रावधान को हटाना जो वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अंतिम बनाता है।
संख्या बल की क्या स्थिति
लोकसभा में, सहयोगी टीडीपी और जेडी(यू) के साथ, एनडीए के पास विधेयक को पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या बल है।
245 सदस्यों वाली राज्यसभा में एनडीए के पास 125 सांसद हैं। नौ सीटें खाली होने के कारण, एनडीए को विधेयक पारित कराने के लिए 118 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता है - जो उसके पास है
वक्फ बिल की खास बातें
सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिम और महिला सदस्य भी होंगी। काउंसिल और वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम और दो महिलाओं की नियुक्ति की जाएगी।
प्रस्तावित बिल में 'वक्फ बाय यूजर' को खत्म कर दिया गया है। अब तक यह होता था कि अगर किसी संपत्ति पर सालों से मस्जिद या मदरसा बना है तो वह वक्फ की होगी। मगर अब ऐसी संपत्ति वक्फ की तभी मानी जाएगी, जब इसके वैध दस्तावेज होंगे।
अब तक मस्जिद समेत इस्लामिक काम में इस्तेमाल होने वाली संपत्ति खुद-ब-खुद वक्फ की हो जाती थी। मगर अब जब तक संपत्ति दान नहीं की गई होगी, तब तक वह वक्फ की संपत्ति नहीं कहलाएगी। भले ही उस पर मस्जिद ही क्यों न बनी हो।
अभी वक्फ की संपत्ति का सर्वे करने का अधिकार सर्वे कमिश्नर या एडिशनल कमिश्नर के पास है। मगर प्रस्तावित बिल में सर्वे का अधिकार जिला कलेक्टर को मिल गया है। अब कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसका फैसला वक्फ बोर्ड नहीं कर सकेगा।
मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा करता है तो ट्रिब्यूनल में ही उसकी अपील की जा सकती थी। अब ट्रिब्यूनल के अलावा रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में भी अपील की जा सकती है।
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क्या होता है वक्फ?
इस्लाम को मानने वाला कोई व्यक्ति जब अल्लाह या मजहब के नाम पर कोई संपत्ति देता है तो उसे वक्फ की संपत्ति कहा जाता है। एक बार जो संपत्ति वक्फ की हो गई, वो हमेशा के लिए वक्फ की ही रहती है।
वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है 'ठहरना'। वक्फ की संपत्ति को न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है। मुसलमान मानते हैं कि वक्फ की संपत्ति का मालिक सिर्फ अल्लाह ही होता है।
अब तक इस्लाम को मानने वाला व्यक्ति चल या अचल संपत्ति वक्फ कर सकता था। मगर नए बिल के मुताबिक, वक्फ के लिए संपत्ति दान करते वक्त बताना होगा कि वो 5 साल से इस्लाम को मान रहा है। संपत्ति दान करने वाले को 'वाकिफ' और इसका प्रबंधन करने वाले को 'मुतवल्ली' कहा जाता है।