उत्तर प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक के बाद ऐसी सियासी हलचल मची कि सूबे के अध्यक्ष पंकज चौधरी को बार-बार सफाई देनी पड़ रही है कि अब दोबारा यह बैठक नहीं होगी, इस तरह के बैठक की इजाजत उनकी पार्टी नहीं देती है, विधायकों ने दोबारा ऐसा किया तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने ऐसी बैठकों को संविधान विरोधी तक बता दिया। ब्राह्मण समाज के कई नेता अब मुखर होकर, इस फरमान की आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर राजपूत, कुर्मी, यादव, पिछड़ों की जातीय बैठकें हो सकती हैं फिर ब्राह्मण समाज की इस बैठक से दिक्कत क्या है।
यूपी में भारतीय जनता पार्टी के अंदर अब जाति को लेकर तनाव बढ़ता नजर आ रहा है। कुशीनगर के विधायक पीएन पाठक के लखनऊ आवास पर 52 ब्राह्मण विधायकों और विधानस परिषद सदस्यों ने एक बैठक क थी। बैठक के बाद ही यूपी बीजेपी की राजनीति में हलचल मच गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस बैठक में सिर्फ बीजेपी ही नहीं, दूसरी पार्टियों के भी ब्राह्मण विधायकों ने हिस्सा लिया। राज्य में बीजेपी की टॉप लीडरशिप इसे ठाकुर बनाम ब्राह्मण की कवायद की जोड़कर देख रही है। |
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पकंज चौधरी, अध्यक्ष, यूपी बीजेपी:-
भारतीय जनता पार्टी, सर्व समाज की पार्टी है। किसी को भी हमारा संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है कि भारतीय जनता पार्टी के जन प्रतिनिधि जाति आधार पर बैठक करें। हमने एक सूचना दी है, चेतावनी भी है, बात भी की है, निर्देश और चेतावनी दी है कि इस तरह की कोई बैठक भविष्य में न हो।
पीएन पाठक के घर हुआ क्या था?
बीजेपी विधायक पीएन बाठक के घर हुई डिनर पार्टी में कुछ विधायकों ने ब्राह्मणों के साथ हो रहे भेदभाव की शिकायत की है। पूर्वांचल के कई ब्राह्मण नेताओं ने इस पर मुखर होकर कहा। मीटिंग की तस्वीरें, विधायकों के नाम और तस्वीरें सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुईं। बैठक से शीर्ष नेतृत्व इस हद तक असहज हुआ कि पार्टी में खलबली मच गई। बृजभूषण शरण सिंह से लेकर अध्यक्ष पंकज चौधरी तक को बोलना पड़ गया। बीजेपी के नए यूपी अध्यक्ष पंकज चौधरी ने सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी कि जाति के आधार पर ऐसी मीटिंग पार्टी के नियमों और मूल्यों के खिलाफ है। अगर आगे ऐसा हुआ तो इसे अनुशासनहीनता माना जाएगा और कार्रवाई होगी।
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विधायकों में चर्चित नाम कौन रहे हैं?
काशीनाथ शुक्ला, प्रकाश द्विवेदी, पीएन पाठक, अंकुर राज, उमेश द्विवेदी (MLC), रत्नाकर मिश्र, राकेश गोस्वामी, शलभ मणि त्रिपाठी, विनय द्विवेदी
ब्राह्मण विधायक के बचाव में क्या कह रहे हैं लोग?
बृजभूषण शरण सिंह:-
मैं इसमें कुछ गलत नहीं देख रहा हूं। 4 क्षत्रिय मिल जाएं, 4 ब्राह्मण मिल जाएं, आपस में बैठकर चर्चा करें, इसमें कुछ गलत नहीं देख रहा हूं। ब्राह्मण विधायकों का मिलना कोई गलत नहीं था। अगर किसी को इसमें गलत लग रहा है, तो खोट उसके नजरिए में है, न कि ब्राह्मण विधायकों के साथ बैठकर भोज करने में। जो गलत देख रहा हो, देख रहा हो, मैं नहीं देख रहा हूं।
ब्राह्मणों को खटक क्या रहा है?
बीजेपी के अंदर खेमे में एक खबर और भी है। अगस्त में राजपूत समाज के विधायकों ने भी एक बैठक की थी। बीजेपी की तरफ से कोई चेतावनी नहीं दी गई थी। एक तरफ पार्टी में संगठन चुनाव हो रहे थे, दूसरी तरफ क्षत्रिय समाज के लोग एकजुट हो रहे थे। अब बीजेपी के नए अध्यक्ष का फरमान है कि ऐसी बैठक नहीं होनी चाहिए। बीजेपी का ब्राह्मण तबका इसी बात से नाराज है कि ऐसा दोहरा रवैया पार्टी क्यों अपना रही है।
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पंकज चौधरी ने सख्ती क्यों दिखाई है?
साल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले जाति आधारित गुटबाजी न बने, बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इसी वजह से यह कवायद कर रहा है। साल 2024 में गुटबाजी का नतीजा देख चुकी है। लोकसभा चुनावों में 60 से ज्यादा सीटों वाली पार्टी, 33 पर आ गई है। साल 2024 में बीजेपी के पास 73 सीटें थीं, 2019 में 62 में मिलीं। कहा गया कि बीजेपी की कार्यशैली से ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग नाखुश था। ऐसी भी शिकायतें मिलीं कि ब्राह्मण नेताओं की बातों को अधिकारी अनसुना कर रहे हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। साल 2027 में चुनाव है, यह रिस्क पार्टी दोबारा नहीं ले सकती है।
क्या यही असली डर है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि असली दिक्कत बैठक से नहीं, सत्ता में हिस्सेदारी है। ब्राह्मण गुट टिकट बंटवारे और मंत्री पदों के लिए दबाव बना सकते हैं। यूपी में पहले से ही इतने जातीय समीकरण हैं कि और दबाव सहने की स्थिति में बीजेपी नहीं है। पहले ही ओबीसी की दूसरी जातियां भी हिस्सेदारी मांग रही हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में ठाकुरों के एक हिस्से की नाराजगी से बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान हुआ था। अब ब्राह्मणों में भी असंतोष चरम पर है।
यूपी बीजेपी में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी है?
यूपी बीजेपी में कुल 258 विधायक हैं। सबसे ज्यादा 84 ओबीसी विधायक हैं। 59 दलित, 45 ठाकुर, 42 ब्राह्मण और 28 कायस्थ और वैश्व जैसी जातिया हैं। विधान परिषद में भी ठाकुर और ओबीसी की संख्या ज्यादा है।
सियासी तौर पर यूपी में ब्राह्मण कितने मजबूत हैं?
यूपी में ब्राह्मण वोटर, निर्णायक भूमिका हैं। 110 से ज्यादा सीटों पर जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता कुल आबादी का लगभग 10-12 फीसदी हैं। पूर्वांचल और अवध में ब्राह्मण वोटरों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। 2017 और 2022 के चुनावी नतीजों में भी अहम भूमिका रही है। करीब 115 सीटें पर ब्राह्मण वोट बैंक गेमचेंजर है। नए विवाद के बाद विपक्षी दल, ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की पेशकश कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ब्राह्मण, सवर्ण और गैर यादव जातियां, बीजेपी की कोर वोटर रहीं हैं।
विपक्ष ब्राह्मण विधायकों पर क्या सोच रहा है?
अखिलेश यादव:-
अपनों की महफिल सजे तो जनाब मेहरबान
और दूसरों को भेज रहे चेतावनी का फरमान।
अखिलेश यादव ने इशारा किया कि अगस्त में जब ठाकुरों की बैठक हुई थी, तब बीजेपी ने यह प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी थी। कांग्रेस ने भी ब्राह्मणों को समर्थन देने की बात कही है।
अजय राय, अध्यक्ष, यूपी कांग्रेस:-
जिस प्रकार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा इनका अपमान किया गया। बाकी जातियों की बैठक हुई उसपर किसी कार्रवाई की बात नहीं की गई। लेकिन ब्राह्मण समाज को विशेष रूप से टारगेट करके कार्रवाई की बात हो रही है। निश्चित तौर पर इसपर इन लोगों को मजबूत रुख अपनाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी के लोग अन्याय के खिलाफ उनका समर्थन करेंगे।
ब्राह्मणों की सियासत BSP और SP ने कैसे की?
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों दल, पिछड़ों की पार्टी होने का दावा करते रहे हैं। यूपी में BSP ब्राह्मण वोटरों के सहयोग से कमाल कर चुकी है। उत्तर प्रदेश में BSP ने 2007 में मायावती के नेतृत्व में सफल सोशल इंजीनियरिंग की थी। सतीश चंद्र मिश्रा को आगे रखकर ब्राह्मणों को जोड़ा था, बड़े पैमाने पर टिकट दिए थे। 86 में से 41 उम्मीदवार जीते थे। BSP वही है, जिसने 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा' के नारे लगवाए थे।
दलित-बीजेपी वोट बैंक काम आया और बसपा की सरकार बनी। समाजवादी पार्टी ने 2012 में अखिलेश यादव के समय ब्राह्मणों का समर्थन पाकर सरकार बनाई। समाजवादी पार्टी भी, ब्राह्मण सम्मेलन करती रही है, परशुराम की प्रतिमाओं का अनावरण करती है, मुस्लिम-यादव समीकरण में ब्राह्मणों को भी फिट बैठाने की कोशिश भी की जा रही है। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि अखिलेश यादव लगातार PDA में ब्राह्मणों को शामिल कर ठाकुर-ब्राह्मण विवाद को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं।
