उज्जैन, जिसे प्राचीन काल से ही एक पवित्र धार्मिक नगरी माना जाता है, में स्थित महाकाली देवी मंदिर विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यहां स्थित भगवान महाकाल के दर्शन देश और दुनिया के कई हिस्सों से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। साथ इस धर्म नगरी में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ भी स्थापित है, जो गढ़कालिका मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

 

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित यह मंदिर देवी काली को समर्पित है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भैरव पर्वत क्षेत्र में आता है। मान्यता है कि यहां माता सती के ऊपरी होंठ गिरे थे, इसलिए यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

गढ़कालिका मंदिर की पौराणिक कथा

शिवपुराण के अनुसार, जब राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। माता सती, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं, बिना बुलाए ही वहां पहुंच गईं। यज्ञ में जब उन्होंने भगवान शिव का अपमान होते देखा तो वे अत्यंत दुखी हो गईं और स्वयं को यज्ञ अग्नि में समर्पित कर दिया।

 

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भगवान शिव इस घटना से अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने माता सती के शरीर को लेकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया। इससे संपूर्ण सृष्टि में भय और अशांति फैल गई। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

 

उज्जैन के भैरव पर्वत पर माता सती का ऊपरी होंठ गिरा था, जिसके कारण यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हुआ और यहां देवी महाकाली की पूजा की जाने लगी।

गढ़कालिका मंदिर का इतिहास

गढ़कालिका मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है। माना जाता है कि यह मंदिर महाकवि कालिदास से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि कालिदास पहले अल्पबुद्धि के थे, लेकिन माता गढ़कालिका की उपासना करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे संस्कृत साहित्य के महान कवि बने। उनके द्वारा रचित ‘मेघदूत’, ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और ‘रघुवंशम्’ जैसी कृतियां आज भी प्रसिद्ध हैं।

 

मंदिर के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि इसका मूल स्वरूप प्राचीन काल में बना था, लेकिन इसे समय-समय पर पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में हुआ और बाद में मराठा राजाओं द्वारा इसे भव्य रूप दिया गया।

गढ़कालिका मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

गढ़कालिका मंदिर साधकों और तांत्रिक उपासकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि यहां साधना करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है। उज्जैन के इस क्षेत्र में भगवान काल भैरव की उपासना भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्त यहां भैरव बाबा को मदिरा चढ़ाते हैं, जो एक अनोखी परंपरा है। साथ ही यह मंदिर उन लोगों के लिए भी खास माना जाता है जो कालसर्प दोष से मुक्ति चाहते हैं।

 

उज्जैन में स्थित यह शक्तिपीठ विश्वप्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के समीप स्थित है, जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यहां प्रतिदिन देवी की विशेष पूजा की जाती है। भक्तों की भारी भीड़ सुबह और शाम की आरती में शामिल होती है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और माता को भव्य रूप से सजाया जाता है।

 

यहां महाकाली की मूर्ति को विशेष रूप से रक्त चंदन का तिलक लगाया जाता है, जो शक्ति साधना का प्रतीक है। साथ ही इस मंदिर के आसपास कई साधक काल भैरव की उपासना करते हैं, जिससे वे तंत्र विद्या और सिद्धि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

 

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गढ़कालिका मंदिर जाने के लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गढ़कालिका मंदिर में दर्शन करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही एक मान्यता यह भी है कि माता काली के आशीर्वाद से भक्तों के शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं।

 

यह मंदिर विशेष रूप से शत्रु नाश और आत्मरक्षा के लिए प्रभावशाली माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं तो उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं। साथ ही महाकाली की कृपा से व्यक्ति के मन से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।