हिंदू धर्म में देवी दुर्गा के विभिन्न शक्तिपीठ और धार्मिक स्थल स्थापित हैं, जिनका अपना एक विशेष इतिहास और महत्व है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित पाटेश्वरी देवी शक्तिपीठ, जिसे लोग देवीपाटन मंदिर के नाम से भी जानते हैं, एक विशेष स्थान रखता है। लोक मान्यता है कि यह स्थान 51 पवित्र शक्तिपीठ में शामिल है, जहां देवी सती के शरीर का अंग गिरा था। इसलिए इस स्थल को विशेष आध्यात्मिक महत्ता प्राप्त है।
पौराणिक कथा से जुड़ा इतिहास
हिंदू धर्मशास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान होने के कारण उनकी पत्नी सती ने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया। इसके पश्चात भगवान शिव अत्यंत दुखी होकर सती के मृत शरीर को लेकर सृष्टि भर में विचरण करने लगे। इससे संसार में भारी संकट उत्पन्न हो गया। इस आपदा को रोकने हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई भागों में विभाजित कर दिया, जो जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि पाटेश्वरी देवी शक्तिपीठ में माता सती का स्कन्ध भाग के साथ पट गिरा था, जिसके आधार पर इस स्थान का नाम पाटेश्वरी देवी पड़ा।
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मंदिर का निर्माण और गौरवपूर्ण विस्तार
पाटेश्वरी देवी मंदिर प्राचीन काल में संत गुरु गोरखनाथ द्वारा स्थापित किया गया था। उन्होंने इस स्थान को साधना और देवी उपासना का केंद्र बनाया। उनके बाद राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का विस्तार करवाया और इसे भव्य स्वरूप दिया। यहां एक पवित्र धूनी भी निरंतर जलती रहती है, जिसे त्रेता युग का माना जाता है। यह धूनी मंदिर की दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है।
माता सीता और पातालेश्वरी देवी की मान्यता
इस शक्तिपीठ से जुड़ी एक और लोक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता से सार्वजनिक रूप से अपनी पवित्रता प्रमाणित करने को कहा, तो सीता माता अत्यंत व्यथित हुईं। उन्होंने धरती माता से अपने अंदर समाने की प्रार्थना की और यहीं धरती फट गई, जिसमें सीता माता समा गईं। इसी कारण यहां देवी को पातालेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के भीतर आज भी एक गुप्त सुरंग है, जिसे पाताल मार्ग कहा जाता है और उस स्थान पर भक्तगण पूजन करते हैं।
विशिष्ट पूजा परंपरा और नियम
मंदिर में प्रत्येक दिन एक विशेष अनुष्ठान होता है। मुख्य पुजारी दिन में एक बार मंदिर के चारों ओर परिक्रमा कर भीतर जाकर कपाट बंद कर लेते हैं और लगभग तीन घंटे तक विशेष पूजा करते हैं। संध्या समय में कपाट खोले जाते हैं और तब भक्त देवी के दर्शन कर पाते हैं। यह रहस्यमयी पूजा पद्धति इस मंदिर की अद्वितीय पहचान है।
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सूर्य कुंड का महत्व
मंदिर परिसर में स्थित सूर्य कुंड भी एक पवित्र स्थल है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं और उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। विशेष अवसरों पर श्रद्धालु यहां स्नान कर देवी के दर्शन करते हैं। नवरात्रि के पावन पर्व पर मंदिर में भव्य मेले का आयोजन होता है। दूर-दूर से लाखों भक्त इस उत्सव में भाग लेते हैं। मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।