सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को आज यानी 5 नवंबर को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज का दिन सिख धर्म को मानने वालों के लिए बेहद खास है। आज के दिन सिख धर्म के लोगों के साथ-साथ अन्य धर्म के लोग भी गुरुद्वारों में जाकर मत्था टेकते हैं। पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में गुरु नानक देव जी के कई प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं जहां इस गुरु पर्व आप जा सकते हैं। देश विदेश से लोग इन गुरुद्वारों में आते हैं और सिख धर्म की परंपराओं को जानते हैं। 

 

हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई जाती है। उनकी जयंती को गुरु पर्व के नाम से जाना जाता है। उन्हें सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु के रूप में जाना जाता है। समानता प्रेम, विनम्रता और निस्वार्थ भाव से सेवा पर जोर देने वाली गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं दुनिया भर के करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब (अब पाकिस्तान) के तलवंडी में हुआ था। इस साल गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती मनाई जाएगी। 

 

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गुरुद्वारा ननकाना साहिब

गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब (अब पाकिस्तान) के राय भोई दी तलवंडी नाम की जगह पर हुआ था। आज इसी जगह पर एक विशाल गुरुद्वारा स्थित है। पहले सिख गुरु का जन्म स्थान होने के कारण इसे सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। ननकाना साहिब में जन्मस्थान समेत 9 गुरुद्वारे स्थित हैं। यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के रायपुर शहर में स्थित है और इस शहर की 70,000 की आबादी है। इसी जगह पर गुरु नानक देव जी ने पहली बार उपदेश देना शुरू किया था। पाकिस्तान और दुनिया के अन्य हिस्सों से लोग गुरु पर्व पर इस गुरुद्वारे पर इकट्ठा होते हैं। गुरु पर्व के दिन यहां बड़ा झुलुस निकाला जाता है और उत्सव मनाया जाता है। 

श्री करतारपुर साहिब

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम साल करतारपुर में बिताए थे। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 साल इसी जगह बिताए थे। गुरु नानक देव जी ने अंतिम सांस इसी जगह ली थी। उनकी मृत्यु के बाद 1522 में यहां गुरुद्वारा दरबार साहिब की स्थापना की थी। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने यहां पर गुरु ग्रंथ साहिब के शबद (भजन) की रचना की थी। यह पाकिस्तान के पंजाब के नारोवाल जिले में स्थित है और भारत के डेरा बाबा नानक से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत से लोग इस गुरुद्वारे में बिना वीजा के जा सकते हैं। 

गुरुद्वारा श्री बेर साहिब

यह गुरुद्वारा पंजाब में सुल्तानपुर लोधी के पास काली बेईं नदी के तट पर स्थित है। इस जगह पर बेर के पेड़ के नीचे बैठकर गुरु नानक देव जी ध्यान करते थे और पास में स्थित बेईं नदी में स्न्नान करते थे। गुरुद्वारे का नाम बेर साहिब इसी बेर के पेड़ के कारण पड़ा है। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने सुल्तानपुर लोधी में लगभग 14 साल, 9 महीने और 13 दिन बिताए थे। गुरुद्वारे के बाहर आज भी एक पुराना बेर का पेड़ है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह 800 साल पुराना है। इस जगह से जुड़ी एक कहानी बहुत ज्यादा प्रचलित है। माना जाता है कि एक दिन गुरु नानक देव जी बेईं नदी में स्न्नान करते हुए जल में ही अंतर्ध्यान हो गए और तीन बाद प्रकट हुए। प्रकट होते ही उनके पहले शब्द थे, 'ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान।' इसके बाद उन्होंने उपदेश भी दिया था। इस गुरुद्वारे में आज भी लाखों लोग आकर मत्था टेकते हैं। 

 

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गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब

गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन नें कई जगहों की यात्रा की थी। अपनी यात्रा के दौरान वह तिब्बत भी गए। दलाई लामा के अनुसार, कुछ तिब्बती लोग गुरु नानक देव जी को एक बोद्ध भिक्षु के रूप में भी पूजते हैं, जिन्हें गुरु गोपका महाराज के नाम से जाना जाता है। तिब्बत यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी लेह भी गए।

 

लेह से 25 मील दूर गुरुद्वारा पत्थर साहिब स्थित है। यह लेह-कारगिल मार्ग पर समुद्र तल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसका निर्माण 1517 ई. में श्री गुरु नानक देव जी की लद्दाख यात्रा की याद में बनाया गया था। आज भी लद्दाख जाने वाले टूरिस्ट और सिख धर्म में मान्यता रखने वाले लोग इस गुरुद्वारे में जाकर मत्था टेकते हैं। 

गुरुद्वारा श्री रीठा साहिब

उत्तराखंड के चंपावत जिले में दियूरी गांव के पास स्थित इस गुरुद्वारे का सिखों के लिए विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस जगह पर गुरु नानक देव जी भाई मर्दन के साथ आए थे। जब गुरु नानक देव जी भाई मर्दन सिंह के साथ रीठा पेड़ के नीचे बैठे थे तो उन्होंने मर्दन सिंह को रीठा खाने के लिए कहा। गुरु नानक देव जी की बात मान कर मर्दन सिंह ने रीठा था लिया था लेकिन वह हैरान थे क्योंकि आमतौर पर कड़वा लगने वाला रीठा मीठा हो गया था। यह चमत्कार देखकर आसपास के लोग हैरान हो गए थे। जिस रीठे के पेड़ के नीचे गुरु नानक देव जी बैठे थे उसके सभी रीठे मीठे हो गए थे। उनकी याद में बाद में यहां गुरुद्वारा रीठा साहिब का निर्माण किया गया।