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सिख धर्म के लोग क्यों नहीं कटवाते हैं बाल, क्या है पंच ककार से जुड़ी मान्यता?

सिख धर्म में पंच ककार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानतें हैं सिख धर्म के पंच ककार कौन-कौन से हैं और इनसे जुड़ी मान्यता क्या है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

सिख धर्म अपने अनुशासन, सेवा और त्याग की परंपरा के लिए जाना जाता है। इस धर्म की पहचान उनके अनुयायियों के जरिए धारण किए जाने वाले ‘पंच ककार’ से होती है। केश, कड़ा, कंघा, कच्छा (कच्छैरा) और कृपाण सिख धर्म के पंच ककार कहे जाते हैं। ये पांचों प्रतीक न केवल खालसा सिख की बाहरी पहचान हैं, बल्कि सिख जीवनशैली, नैतिकता और ईश्वर के प्रति समर्पण का गहरा संदेश भी देते हैं।

 

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना करते हुए इन पंच ककारों को अनिवार्य बताया था। उनका मानना था कि हर सिख व्यक्ति अपने जीवन में साहस, संयम, शुद्धता और धार्मिक अनुशासन को बनाए रखे।

 

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सिख धर्म में पंच ककार की मान्यता क्या है?

केश (बाल)

 

अर्थ:
केश का मतलब है, बालों को बिना काटे रखना। सिख धर्म में बालों को ईश्वर की देन माना गया है, जिसे बदलना या काटना ‘प्रकृति के विरुद्ध’ माना जाता है।

 

मान्यता:
मान्यता के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को आदेश दिया था कि वे अपने बालों को कभी न काटें, क्योंकि यह आध्यात्मिकता, ईमानदारी और आत्म-स्वीकृति का प्रतीक है।
केश रखना ईश्वर की रचना के प्रति सम्मान और समर्पण को दर्शाता है।

 

कड़ा (लोहे का ब्रेसलेट)

 

अर्थ:

कड़ा एक लोहे या स्टील का गोल ब्रेसलेट होता है, जिसे सिख अपनी कलाई पर पहनते हैं।

 

मान्यता:
सिख धर्म में कड़ा को ईश्वर की अनंतता का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसका कोई आरंभ या अंत नहीं होता है। मान्यता के अनुसार, यह सिख को हमेशा याद दिलाता है कि उसके कर्म, धर्म के अनुसार होने चाहिए। कड़ा- शक्ति, एकता और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक भी माना जाता है।

 

कंघा (लकड़ी की कंघी)

 

अर्थ:
कंघा एक लकड़ी की छोटी कंघी होती है, जिसे केशों में रखा जाता है।

 

मान्यता:
सिख धर्म में कंघा को स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। कंघा सिख को सिखाता है कि बाहरी स्वच्छता के साथ-साथ आंतरिक (विचारों की) स्वच्छता भी आवश्यक है।
हर सिख को दिन में कम से कम दो बार बालों में कंघी करने का आदेश दिया गया है।

 

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कच्छा (कच्छैरा) 

 

अर्थ:
कच्छा एक घुटनों तक का ढीला कपड़ा (जैसे निकर) होता है, जिसे खालसा सिख पहनते हैं।

 

मान्यता:
यह शुद्धता, संयम और आत्म-संयम का प्रतीक माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसे इस बात का प्रतीक बताया कि सिख को हमेशा नैतिक जीवन जीना चाहिए और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। यह युद्ध के समय सुविधा और फुर्ती का भी प्रतीक माना जाता था।

 

कृपाण (तलवार)

 

अर्थ:
कृपाण का मतलब है, एक छोटी तलवार या खंजर, जिसे सिख हमेशा अपने साथ रखते हैं।

 

मान्यता:
सिख धर्म में कृपाण धर्म की रक्षा और न्याय की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। यह हिंसा नहीं, बल्कि निर्दोषों की रक्षा और अत्याचार के विरोध का प्रतीक माना जाता है। सिखों के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि सिख को हमेशा तैयार रहना चाहिए, 'धर्म की रक्षा के लिए तलवार उठाने से न डरें।'

 

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