भारत में भगवान विष्णु के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व है। हालांकि, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी भगवान विष्णु के कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं। इन्हीं में से एक है अंकोरवाट मंदिर, जिसे दुनिया के सबसे विशाल और अद्भुत मंदिरों में से एक है। कंबोडिया में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसकी गिनती विश्व की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में होती है।
मंदिर का निर्माण और इतिहास
इस भव्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में कंबोडिया के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था। मूल रूप से यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित था, लेकिन बाद में यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक पूजनीय स्थल बन गया। कंबोडिया के ऐतिहासिक काल में यह मंदिर खमेर साम्राज्य की शक्ति और धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा है।
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इसका नाम ‘अंकोरवाट’ संस्कृत के दो शब्दों 'नगर' (अंकोर) और 'वाट' (मंदिर) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है ‘नगर मंदिर’। यह मंदिर लगभग 162.6 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक बनाता है।
अद्भुत वास्तुकला और कलात्मकता
अंकोरवाट की वास्तुकला भारतीय और खमेर शैली का अनूठा संगम है। यह मंदिर पांच ऊंचे शिखरों से युक्त है, जो हिंदू धर्म के पवित्र पर्वत ‘मेरु’ का प्रतीक माने जाते हैं। मुख्य मंदिर ऊंचे स्तर पर बना है और इसे तीन विशाल दीवारों से घेरा गया है।
इसकी दीवारों और स्तंभों पर उकेरी गई नक्काशियां रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाती हैं। मंदिर की दीवारों पर देवताओं, अप्सराओं, योद्धाओं और ऐतिहासिक घटनाओं की सुंदर कलाकृतियां बनी हुई हैं, जो इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को प्रकट करती हैं।
भगवान विष्णु की पूजा और धार्मिक महत्व
अंकोरवाट मंदिर में भगवान विष्णु की भव्य मूर्ति स्थापित है। प्राचीन समय में यहां विष्णु भक्तों द्वारा नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती थी। मंदिर का मुख्य शिखर भगवान विष्णु को समर्पित है और उनकी महिमा को दर्शाने वाले अनेक शिलालेख भी यहां मौजूद हैं।
मंदिर की संरचना सूर्य की दिशा के अनुरूप बनाई गई है, जिससे यहां सूर्य की पहली किरणें सीधे मुख्य गर्भगृह पर पड़ती हैं। यह हिंदू धर्म की वैज्ञानिक और ज्योतिषीय समझ को भी दर्शाता है।
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आज का अंकोरवाट मंदिर
आज अंकोरवाट न केवल कंबोडिया की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह दुनियाभर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन चुका है। इसे 1992 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।
हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस मंदिर में आते हैं, जहां वे इसकी भव्यता, इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। कंबोडिया के लोग इसे अपनी पहचान मानते हैं और इसे अपने राष्ट्रीय ध्वज पर भी स्थान दिया गया है।