भारत के प्रमुख त्योहारों में बैसाखी पर्व का भी नाम शामिल है, जो हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल कृषि और फसल कटाई से जुड़ा है, बल्कि इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी बहुत गहरा है।
क्यों मनाई जाती है बैसाखी?
बैसाखी का संबंध मुख्य रूप से रबी की फसल की कटाई से है। जब गेहूं की फसल पककर तैयार हो जाती है, तो किसान इस खुशी में बैसाखी का पर्व मनाते हैं। यह समय उनके लिए मेहनत का फल मिलने का समय होता है। खेतों में पकती हुई सुनहरी फसलें किसानों के चेहरे पर खुशी लाती हैं और वे भगवान का धन्यवाद करने के लिए नाच-गाकर पर्व मनाते हैं।
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कब है बैसाखी 2025?
बता दें कि हर साल बैसाखी पर्व सोलर नववर्ष के आधार पर मनाई जाती है। इस दिन सूर्य राशि चक्र पूरा कर फिर से पहली राशि यानी मेष राशि में प्रवेश करते हैं, इसी वजह से इस दिन को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पंचांग में बताया गया है कि इस साल मेष संक्रांति 14 अप्रैल 2025, सोमवार के दिन मनाया जाएगा और इसी दिन बैसाखी पर्व मनाया जाएगा।
धार्मिक महत्व
बैसाखी का धार्मिक महत्व विशेष रूप से सिख धर्म से जुड़ा है। सन् 1699 में इसी दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी। गुरु जी ने इस दिन आनंदपुर साहिब में हजारों लोगों की भीड़ के सामने पांच लोगों को बुलाया और उन्हें ‘पंच प्यारे’ नाम से नवाजा। यहीं से सिख धर्म में 'खालसा' परंपरा की शुरुआत हुई।
गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा कि खालसा वही है जो सच्चाई, निडरता और धर्म की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहे। इसलिए सिख समुदाय के लिए बैसाखी सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उनकी धार्मिक पहचान और बहादुरी की शुरुआत का दिन है।
बैसाखी पर लोग पारंपरिक पंजाबी पोशाकें पहनते हैं। पुरुष 'भांगड़ा' और महिलाएं 'गिद्धा' नृत्य करती हैं। ढोल की थाप पर नाचते किसान अपनी खुशी का इजहार करते हैं। गांव-गांव में मेले लगते हैं, जहां लोक गीत, अच्छे पकवान और झूले होते हैं। गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है।
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बैसाखी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और मंदिरों व गुरुद्वारों में जाकर ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कि उनकी मेहनत रंग लाई। गुरुद्वारों में 'गुरु ग्रंथ साहिब' का पाठ होता है और निशान साहिब की धुलाई की जाती है। इसके बाद भक्तों को लंगर (भोजन) परोसा जाता है। इस दिन दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है।