सनातन धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के स्वरूप का उल्लेख किया गया है। शिव पुराण, स्कन्द पुराण और विष्णु पुराण में भगवान शिव का स्वरूप अत्यंत दिव्य, रहस्यमय और व्यापक रूप में वर्णित किया गया है। साथ ही शास्त्रों में महादेव को को आदि-अनादि, सृष्टि के संहारक और पुनरुत्पत्ति के रूप में बताया गया है।
इन पुराणों में शिव जी का वर्णन केवल एक देवता के रूप में नहीं, बल्कि एक सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में किया गया है, जो सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार की त्रिगुणात्मक शक्ति के आधार हैं।
शिव पुराण में भगवान शिव का स्वरूप
शिव पुराण में भगवान शिव को महाकाल, अघोर, नीलकंठ, त्रिनेत्रधारी और पंचमुखी रूपों में दिखाया गया है। जिसमें वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के अधिपति हैं। शिव का स्वरूप अत्यंत सरल और गूढ़ दोनों रूपों में प्रकट होता है।
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है, गले में सर्पों की माला होती है और जटा से गंगा प्रवाहित होती है। यह रूप उनके संन्यास और वैराग्य का प्रतीक है। वे न केवल योगियों के भगवान हैं, बल्कि संसार के कल्याण के लिए सर्वस्व अर्पित करने वाले महादेव भी हैं।
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स्कंद पुराण में भगवान शिव का रूप
स्कन्द पुराण में भगवान शिव को परम दयालु, करुणामय और भक्तवत्सल के रूप में दर्शाया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान शिव साकार और निराकार दोनों रूपों में विद्यमान हैं। जिसका अर्थ है कि भगवान शिव शून्य भी हैं और समक्ष भी हैं। साथ ही इस पुराण में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की भी कथा मिलती है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती (शक्ति) एक ही रूप में हैं। शिवलिंग रूप भी इस पुराण में बताया गया है, जो इस बात को दर्शाता है कि वे अनादि और अनंत के स्वामी हैं।
स्कन्द पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव केवल संहार के देवता नहीं, बल्कि सृष्टि के सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने वाले देवता हैं, जो भक्तों की भक्ति मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।
विष्णु पुराण में भगवान शिव को क्या बताया गया है?
विष्णु पुराण में शिव को भगवान विष्णु के अनन्य भक्त के रूप में चित्रित किया गया है, वहीं भगवान विष्णु भी शिव के परम उपासक माने गए हैं। इस पुराण में हरि और हर की एकता पर विशेष बल दिया गया है। साथ ही इस पुराण में भगवान शिव के तांडव नृत्य और नटराज रूप का भी वर्णन मिलता है।
जब शिव तांडव करते हैं, तो संसार में परिवर्तन आता है- या तो संहार होता है या सृजन। इस पुराण में शिव को योग और ध्यान के आदि गुरु के रूप में भी माना गया है। वे आदियोगी हैं, जिन्होंने संसार को ध्यान और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
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क्या है भगवान शिव का वास्तविक रूप?
हर बार जब हम भगवान शिव की कल्पना करते हैं तो उन्हें मृगछाल से बने वस्त्र पहने हुए, गले में सर्प और जटा से गंगा बहते हुए देखते हैं। हालांकि, भगवान शिव का स्वरूप इन तीनों पुराणों में व्यापक रूप से दर्शाया गया है। वे संहारक होते हुए भी सबसे करुणामय हैं, वे निर्गुण होते हुए भी सगुण रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।
वे ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति हैं, फिर भी एक सरल और सहज रूप में अपने भक्तों के समक्ष प्रकट होते हैं। उनकी तीसरी आंख ज्ञान, संहार और सृजन का प्रतीक है। उनका नटराज स्वरूप यह दर्शाता है कि संहार के बाद ही नया सृजन संभव होता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।