भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में देवर्षि नारद की भी गिनती होते हैं। कई पटकथाओं में उन्हें केवल नारायण-नारायण नाम का उच्चारण करते हुए देखा जाता है। हालांकि धर्म-ग्रंथों में त्रेतायुग की एक रोचक और भावनात्मक कथा भी वर्णित है, जिसमें भगवान विष्णु को स्वयं नारद मुनि का श्राप झेलना पड़ा। यह प्रसंग अहंकार, मोह और भक्ति की परीक्षा से जुड़ा है। आइए इस कथा को संवाद के रूप में समझते हैं।

भगवान विष्णु और देवर्षि नारद मुनि का संवाद

एक दिन नारद मुनि तपस्या कर रहे होते हैं-

 

श्री हरि (आकाशवाणी करते हैं): हे नारद! तुमने कठोर तपस्या की है, अब तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो गई है।

 

नारद (गर्व से): तो अब मुझे सिद्धि प्राप्त हो गई! अब मैं स्त्री-सौंदर्य के प्रभाव में नहीं आ सकता।

 

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यह सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराते हैं। वे नारद मुनि के अहंकार को तोड़ने के लिए एक लीला रचते हैं।

 

प्रसंग: नारद मुनि एक नगर में प्रवेश करते हैं और एक सुंदर राजकुमारी का स्वयंवर चल रहा होता है-

 

राजा: स्वागत है, महामुनि! आप पधारें, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।

 

राजकुमारी (मुग्ध होकर सोचती है): कितना तेजस्वी साधु है! यदि ये मुझे वरण करें तो मैं धन्य हो जाऊं।

 

नारद (सोचते हैं): यदि मुझे भगवान विष्णु का रूप मिल जाए तो राजकुमारी निश्चित मुझे ही वरेगी।

 

नारद (ध्यान लगाते हुए): हे प्रभु विष्णु, कृपा करें और मुझे अपना रूप दें!

 

भगवान विष्णु (मन ही मन): नारद, अभी तुम्हारे अंदर अहंकार शेष है। तुम्हें सच्चा ज्ञान देना आवश्यक है।

 

भगवान विष्णु, नारद मुनि को बंदर का चेहरा दे देते हैं, जिसे वे स्वयं नहीं देख पाते।

 

राजकुमारी (हंसते हुए): यह कौन बंदर-मुखी साधु है? मैं इन्हें नहीं वर सकती!

 

यह सुनते ही पूरा दरबार हंसी में डूब जाता है और नारद को अपमान सहना पड़ता है। वह क्रोधित होकर दूर जाते हैं और जल में चेहरा देखकर सच्चाई जानते हैं।

 

नारद (आहत होकर): हे प्रभु! आपने मुझे धोखा दिया? मेरे मन में कोई छल नहीं था, फिर भी आपने मेरा अपमान करवाया!

 

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तभी भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और उन्होंने कहा-

 

भगवान विष्णु: हे नारद! तुम्हारे मन में अहंकार उत्पन्न हो गया था। यह लीला केवल तुम्हें सच दिखाने के लिए थी।

 

नारद (क्रोध में): हे विष्णु! आपने मेरे साथ छल किया। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं — जब आप पृथ्वी पर अवतार लेंगे और विवाह का नाटक करेंगे, तब आपको भी पत्नी के लिए दुख सहना पड़ेगा और आपको एक साधारण मानव की तरह कष्ट उठाने होंगे!

 

भगवान विष्णु (सहनशीलता से): तथास्तु, हे नारद! मैं तुम्हारे श्राप को स्वीकार करता हूं, क्योंकि यह भी भविष्य में गठित होने वाली महत्वपूर्ण लीला का ही भाग है।

 

यह श्राप आगे चलकर रामावतार में सच हुआ, जब भगवान राम को सीता माता के वियोग और वनवास का दुख झेलना पड़ा। हालांकि, देवर्षि नारद के मन से माया का प्रभाव हटा तब उन्होंने तुरंत श्री हरि से क्षमा मांगी। देवर्षि नारद द्वारा दिए गए श्राप से भगवान राम वनवास गए लेकिन उन्होंने इसी दौरान अधर्म का भी नाश किया।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।