भारत में होली का पर्व हर्षोल्लास और उमंग से मनाया जाता है। हालांकि, ब्रज की होली का अपना एक अलग ही महत्व है। ब्रजभूमि, जिसे श्रीकृष्ण की लीलाओं से जोड़कर मनाया जाता है, यहां की होली न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक आनंद का संगम भी है।

2025 ब्रज होली कैलेंडर

बात दें कि हर साल होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। ब्रज क्षेत्र में होली का आयोजन कई दिनों तक चलता है। इसका शुभारंभ होलाष्टक से होता है और यह विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें- लट्ठमार होली, फूलों की होली, धुलेंडी, दाऊजी की हुरंगा आदि।

 

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28 फरवरी को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर बरसाना के श्रीराधारानी मंदिर में रंगोत्सव का आयोजन होगा। इसके बाद 7 मार्च को नंदगांव में फाग आमंत्रण उत्सव मनाया जाएगा, जिसमें सखियों को होली खेलने के लिए न्योता दिया जाता है। इसी दिन बरसाना में प्रसिद्ध लड्डू मार होली भी खेली जाएगी।

 

8 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली का आयोजन होगा और 10 मार्च को रंगभरी एकादशी के दिन बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर रंगभरी होली खेली जाएगी, जो भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।

 

11 मार्च को गोकुल के रमणरेती में होली खेली जाएगी। इसके बाद 13 मार्च को पूरे ब्रज में होलिका दहन होगा और 14 मार्च को धुलेंडी के दिन ब्रज में रंगों की होली खेली जाएगी।

15 मार्च को बलदेव में दाऊजी का हुरंगा होगा और अंत में 22 मार्च को वृंदावन के रंगनाथ जी मंदिर में भव्य होली उत्सव के साथ इस पर्व का समापन होगा।

ब्रज की होली का महत्व

ब्रज की होली केवल रंगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम और उनकी लीलाओं से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि जब श्री कृष्ण बाल्यावस्था में थे, तब उन्होंने अपनी माता यशोदा से पूछा कि राधा और अन्य गोपियां गोरी क्यों हैं और वे स्वयं श्यामवर्ण के क्यों हैं? इस पर माता यशोदा ने हंसकर कहा कि वे राधा को रंग लगा सकते हैं। तभी से कृष्ण और गोपियों के बीच रंग खेलने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक ब्रज के साथ-साथ देशभर में खेली जाती है।

 

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ब्रज की विशेष होलियां

लट्ठमार होली (बरसाना और नंदगांव) – इसमें राधा रानी की सखियां, नंदगांव से आए गोपालों पर लाठियों से प्रहार करती हैं, और गोपाल ढाल लेकर इन वारों से बचने का प्रयास करते हैं।
फूलों की होली (वृंदावन) – बांके बिहारी मंदिर में फूलों से होली खेली जाती है, जिसमें रंगों के स्थान पर सुगंधित पुष्प बरसाए जाते हैं।
दाऊजी का हुरंगा (बलदेव) – यह होली बलराम जी के मंदिर में मनाई जाती है, जिसमें पुरुषों पर महिलाएं पिचकारियों से रंग डालती हैं और उनके कपड़े फाड़कर हास्यपूर्ण तरीके से खेलती हैं।
रंगभरनी एकादशी (बांके बिहारी मंदिर) – इस दिन से वृंदावन में होली की आधिकारिक शुरुआत होती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।