भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हैं। यह पवित्र मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटण नामक स्थान पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय इतिहास, आस्था और गौरवशाली संस्कृति को भी दर्शाता है। यह मंदिर अनादि काल से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। कई आक्रमणों और विध्वंस के बावजूद इसे बार-बार पुनर्निर्मित किया गया।
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रदेव को अपने सौंदर्य और तेज का बहुत अभिमान था। उन्होंने प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से विवाह किया,लेकिन अपनी पत्नी रोहिणी को अन्य पत्नियों की तुलना में अधिक प्रेम देने लगे। यह देखकर अन्य कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से शिकायत की।
यह भी पढ़ें: कैलाश मंदिर: एक ही पत्थर से तराशा गया अनोखा शिव मंदिर, ये है खासियत
दक्ष ने चंद्रदेव को श्राप दिया कि उनका तेज धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगा और वे क्षय रोग से ग्रसित हो जाएंगे। इस श्राप से बचने के लिए चंद्रदेव ने अनेक तीर्थों में तपस्या की लेकिन उन्हें कहीं शांति नहीं मिली। अंत में वे प्रभास क्षेत्र में आए और वहां भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें इस श्राप से मुक्त किया। साथ ही उन्हें यह आशीर्वाद भी दिया कि इस स्थान पर वे सदा के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान रहेंगे। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ‘सोमनाथ’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘चंद्रदेव के नाथ’ (स्वामी)।
सोमनाथ मंदिर का गौरवशाली इतिहास
सोमनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे कई बार नष्ट कर पुनर्निर्माण किया गया। यह मान्यता है कि सबसे पहले स्वयं चंद्रदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के समय में इसे फिर से बनाया गया। जब श्रीकृष्ण ने पृथ्वी छोड़कर अपने दिव्य धाम को प्रस्थान किया, तब प्रभास क्षेत्र में ही उनका शरीर त्याग हुआ था। इसलिए यह स्थान और अधिक पवित्र हो गया।
इस्लामिक आक्रमणकारी महमूद गजनी ने 1025 ईस्वी में इस भव्य मंदिर पर हमला किया और इसे लूटकर पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। कहा जाता है कि इस मंदिर में अपार संपत्ति थी, जिसे लूटकर गजनी अपने साथ ले गया था।
इसके बाद 12वीं शताब्दी में राजा भीमदेव सोलंकी ने इसका पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी और औरंगजेब ने इसे पुनः नष्ट कर दिया। अंत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1951 में इस मंदिर को भव्य रूप से पुनर्निर्मित कराया।
सोमनाथ मंदिर से जुड़े अद्भुत रहस्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान सोमनाथ का यह ज्योतिर्लिंग स्वयं प्रकट हुआ था और इसकी ऊर्जा अद्वितीय है। भक्तों का मानना है कि जो भी सच्चे मन से यहां पूजा करता है, उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। साथ मंदिर के गर्भगृह में एक अखंड दीप जलता है, जिसे कभी भी बुझने नहीं दिया जाता। मान्यता है कि यह शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
यह भी पढ़ें: क्यों श्रीकालहस्ती मंदिर को कहा जाता है 'दक्षिण का काशी', ये है वजह
सोमनाथ मंदिर के पास समुद्र के किनारे एक स्तंभ है, जिसे ‘बाणस्तंभ’ कहा जाता है। यह स्तंभ दर्शाता है कि इस स्थान से सीधे दक्षिण दिशा में कोई भूखंड नहीं है, यानी यह सीधा दक्षिणी ध्रुव की ओर इशारा करता है। साथ ही इस मंदिर में एक विशेष चुंबकीय प्रभाव महसूस किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक इसे मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर और उनकी संरचना से जोड़ते हैं लेकिन इसे लेकर आज भी रहस्य बना हुआ है।
सोमनाथ मंदिर का आध्यात्मिक महत्व
शास्त्रों में सोमनाथ मंदिर में महादेव के दर्शन के महत्व को विस्तार से बताया गया है। यहां हर साल लाखों भक्त भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। विशेष रूप से महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा और श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक मान्यता यह भी है कि जो भक्त यहां जल अर्पण करता है, उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे शिव कृपा प्राप्त होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।