भारत अपनी अनोखे वास्तुकला और प्राचीन मंदिरों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी पौराणिक मान्यताएं और प्राचीन इतिहास का अपना एक विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है कैलाश मंदिर, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा की गुफाओं का एक प्रमुख हिस्सा है। यह मंदिर अपनी भव्यता और अनोखे निर्माण शैली के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह एक ही विशाल चट्टान को काटकर बनाया गया है।
पत्थर से तराशा गया अद्भुत निर्माण
कैलाश मंदिर को एक ही विशाल पर्वत से तराश कर बनाया गया है, जो इसे दुनिया के अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह मंदिर पहाड़ पर नहीं, बल्कि पहाड़ के भीतर से निकला हो। इस मंदिर को आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम के शासनकाल में बनवाया गया था। कहा जाता है कि इसे बनाने में हजारों कारीगरों ने दिन-रात मेहनत की और कई सालों तक पत्थर काटने का काम चलता रहा।
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यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी संरचना कैलाश पर्वत से प्रेरित होकर की गई थी, जिसे हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि यह दूर से देखने पर हिमालय स्थित कैलाश पर्वत जैसा प्रतीत होता है।

मंदिर की वास्तुकला
कैलाश मंदिर को देखने पर यह स्पष्ट होता है कि इसकी बनावट अद्भुत और जटिल है। यह मंदिर लगभग 276 फीट लंबा, 154 फीट चौड़ा और 107 फीट ऊंचा है। इसे गुफा संख्या 16 के रूप में जाना जाता है और यह पूरे एलोरा गुफा परिसर में सबसे अधिक आकर्षक है।
साथ ही इस मंदिर की दीवारों महाभारत और रामायण की कहानियों को चित्र और मूर्तियों के रूप में उकेरा गया है। मंदिर की छत, स्तंभ और दीवारों पर की गई बारीक नक्काशी इसकी भव्यता को और भी बढ़ाती है। इस मंदिर में नंदी मंडप, विशाल द्वार, शिवलिंग और कई अन्य संरचनाएं हैं जो इसे पूर्ण शिव मंदिर का रूप देती हैं।
प्राचीन मान्यताएं और इस मंदिर के बनने की कहानी
कैलाश मंदिर से जुड़ी एक लोकप्रिय कहानी यह है कि एक समय एलोरा क्षेत्र के राजा कृष्ण प्रथम की रानी बहुत बीमार थीं। राजा ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उनकी रानी यदि स्वस्थ हो जाती हैं, तो वह भगवान शिव का एक भव्य मंदिर बनवाएंगे। रानी ने यह संकल्प लिया कि मंदिर तब तक नहीं देखा जाएगा जब तक कि यह पूरी तरह से बनकर तैयार न हो जाए।
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राजा ने अपने शिल्पकारों को मंदिर बनाने का आदेश दिया लेकिन समस्या यह थी कि यदि मंदिर पारंपरिक तरीके से बनाया जाता, तो इसे पूरा होने में कई वर्ष लग जाते। तब एक कुशल शिल्पकार ने सुझाव दिया कि यदि मंदिर को ऊपर से नीचे की ओर तराशा जाए, तो इसे जल्दी पूरा किया जा सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल करके इस विशाल मंदिर का निर्माण किया गया और रानी ने बिना देखे इसे पूरा करवा लिया।
कैलाश मंदिर में पूजा का महत्व
कैलाश मंदिर भगवान शिव को समर्पित होने के कारण विशेष महत्व रखता है। यहां महाशिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके अलावा, साल भर भक्त यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामनाएं भगवान शिव के चरणों में अर्पित करते हैं। इसके साथ इस मंदिर की वास्तुकला और बनावट को देखने के लिए कई लोग दूर-दूर से यहां खिंचे चले आते हैं।