ओडिशा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां हर होने वाली रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। इस मंदिर की सेवा और परंपराओं का पालन केवल सेवक वर्ग ही नहीं, बल्कि एक राजवंश भी करता है, जिसे गजपति वंश कहा जाता है। गजपति राजा को भगवान जगन्नाथ का ‘प्रथम सेवक’ कहा जाता है। आज भी इस वंश के राजा धार्मिक कार्यों और विशेष रूप से रथ यात्रा में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

गजपति वंश का इतिहास

गजपति वंश का इतिहास 15वीं शताब्दी से शुरू होता है। इस वंश के संस्थापक राजा कापिलेंद्र देव थे, जिन्होंने 1435 ईस्वी में गजपति साम्राज्य की स्थापना की थी। यह साम्राज्य तत्कालीन कलिंग (वर्तमान ओडिशा), आंध्रप्रदेश, बंगाल और तमिलनाडु तक फैला हुआ था।

 

राजा कापिलेंद्र देव ने श्री जगन्नाथ मंदिर को शाही संरक्षण में लिया और स्वयं को भगवान का दास माना। उन्होंने अपने लिए ‘गजपति’ उपाधि अपनाई, जिसका अर्थ होता है- हाथियों का स्वामी, जो उस समय शक्ति और वैभव का प्रतीक थी। उनके बाद आने वाले सभी शासकों ने भी यही परंपरा अपनाई और स्वयं को भगवान जगन्नाथ का सेवक मानते हुए राज्य किया।

 

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प्रथम सेवक बनने की परंपरा

गजपति राजा को ‘अद्या सेवक’ (प्रथम सेवक) की उपाधि दी गई है। इस परंपरा की शुरुआत तब मानी जाती है जब राजा कापिलेंद्र देव ने स्वयं भगवान जगन्नाथ की सेवा में भाग लेना आरंभ किया। उन्होंने शासन करते हुए भी भगवान की सेवा को सर्वोपरि रखा। राजा ने यह नियम बनाया कि राज्य के किसी भी निर्णय से पहले भगवान की अनुमति ली जाएगी। इसलिए, गजपति राजा आज भी सभी धार्मिक निर्णयों में अंतिम अनुमति देने वाले होते हैं।

रथ यात्रा और गजपति राजा की भूमिका

पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा विश्वप्रसिद्ध पर्व है, जो हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।

 

छेरा पहरा: यह सबसे महत्वपूर्ण रस्म होती है, जिसे गजपति राजा स्वयं निभाते हैं। वे रथ यात्रा से पहले तीनों रथों की सोने की झाड़ू (स्वर्ण झाड़ू) से सफाई करते हैं और चंदन जल छिड़कते हैं। यह कार्य यह दर्शाता है कि भगवान के सामने राजा भी केवल एक सेवक है।

 

दर्शन नाला: रथ यात्रा के दिन गजपति राजा अपने महल के खास झरोखे (चिल्हरा झरोखा) से भगवान जगन्नाथ के रथ को निहारते हैं और हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। यह विशेष दर्शन आम जनता के लिए भी उत्सव जैसा होता है।

 

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आज्ञा पालन: रथ यात्रा की तिथि, रथ निर्माण की शुरुआत और अन्य प्रमुख धार्मिक आयोजनों में अंतिम स्वीकृति गजपति राजा द्वारा ही दी जाती है। गजपति के अन्य विशेषणों में ‘श्रीमद् गजपति महाराजा’, ‘अद्या सेवक’, ‘जगन्नाथ भक्तराज’ जैसे शब्द आते हैं। यह उपाधियां केवल सम्मान की नहीं, बल्कि सेवा और दायित्व की पहचान भी होती हैं।

वर्तमान गजपति महाराज दिव्यसिंह देब

वर्तमान समय में पुरी के गजपति राजा का नाम है महाराजा श्री दिव्यसिंह देब। इनका जन्म 1949 में हुआ था और ये 1970 के दशक से गद्दी पर हैं। ये गोपबंधु विद्यार्थी और संस्कृत परंपरा में प्रशिक्षित हैं। वह धार्मिक कार्यों, सामाजिक सेवा और श्री जगन्नाथ मंदिर की परंपराओं को बनाए रखने में सक्रिय हैं। मंदिर समिति (श्रीमंदिर प्रबंधन समिति) के वह अध्यक्ष हैं और हर बड़े धार्मिक निर्णय में इनकी स्वीकृति आवश्यक होती है।