कजरी तीज एक प्रमुख हिंदू व्रत है जो खासकर उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह तीज सावन के बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को आती है। इस व्रत को मुख्य रूप से पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए रखा जाता है। इसे 'भादवा तीज' भी कहा जाता है।
यह विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन वे अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत अच्छे और योग्य वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं।
कजरी तीज 2025 तिथि
वैदिक पंचाग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि 12 अगस्त, 2025 को सुबह 08:30 से शुरू हो होगी और इस तिथि का समापन 13 अगस्त 2025 को सुबह के समय होगा। ऐसे में कजरी तीज का व्रत 12 अगस्त 2025 के दिन रखा जाएगा। इस व्रत का पारण 13 अगस्त 2025 को किया जाएगा।
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व्रत रखने की विधि
- स्नान और शुद्धता – व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
- संकल्प लेना – भगवान शिव-पार्वती के सामने जल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें कि दिनभर उपवास रखेंगे।
- निर्जला या फलाहार व्रत – अधिकांश महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं लेकिन स्वास्थ्य अनुसार फलाहार भी ले सकती हैं।
- पति के कल्याण का संकल्प – यह व्रत मुख्य रूप से पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।
- व्रत का पालन – दिनभर संयम रखें, कोई झूठ, कटु वचन या अशुभ कार्य न करें।
पूजा करने की विधि
- पूजा स्थल तैयार करना – घर के पवित्र स्थान पर या किसी मंदिर में मिट्टी का छोटा मंच बनाकर उस पर भगवान शिव, देवी पार्वती और गणेश जी की मूर्ति या चित्र रखें।
- वृक्ष पूजा – इस दिन आमतौर पर नीम या केले के पेड़ के नीचे भी पूजा की जाती है।
- व्रत सामग्री – पूजा के लिए हल्दी, कुंकुम, रोली, अक्षत, फूल, बेलपत्र, फल, मिष्ठान और पानी से भरा कलश रखें।
- श्रृंगार अर्पण – देवी पार्वती को लाल चुनरी, सिंदूर, कंगन, बिंदी और श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
- दीपक जलाना – पूजा स्थल पर घी का दीपक जलाएं और धूप-दीप से आरती करें।
- कथा सुनें – कजरी तीज की कथा सुनें या पढ़ें। यह व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- भजन-कीर्तन – पारंपरिक कजरी गीत और भजन गाएं।
- व्रत समाप्ति – अगले दिन सूर्योदय के बाद भगवान शिव-पार्वती को अर्घ्य देकर और भोजन करके व्रत तोड़ें।
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कजरी तीज व्रत कथा
कजली तीज की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की कजरी तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज देवी का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज देवी का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो लेकिन मेरे लिए सत्तू लेकर आओ।
रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।
साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज देवी का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सत्तू बना कर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला।
साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली देवी की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे... कजली देवी की कृपा सब पर हो।

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पौराणिक मान्यता
कजरी तीज का संबंध भगवान शिव और देवी पार्वती की उस कथा से है जिसमें देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। मान्यता है कि भाद्रपद मास की तृतीया तिथि को उनकी तपस्या सफल हुई और भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया। यह व्रत उसी पवित्र दिन की स्मृति में मनाया जाता है। इसके अलावा कुछ लोककथाओं के अनुसार, इस दिन धरती और प्रकृति का विशेष महत्व होता है। सावन-भाद्रपद के समय हरियाली अपने चरम पर होती है और महिलाएं झूलों, गीतों और उत्सवों से इस मौसम का आनंद मनाती हैं।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के कल्याण के लिए निर्जला या फलाहार व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे और योग्य वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। ऐसा माना जाता है कि कजरी तीज पर देवी पार्वती ने कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था, इसलिए यह व्रत दांपत्य जीवन में सुख और स्थायित्व का आशीर्वाद देता है।
