हिन्दू धर्म में भगवान काल भैरव की उपासना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति को रोग-दोष और सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान भैरव को शिव का ही एक उग्र रूप माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच श्रेष्ठता को लेकर चर्चा चल रही थी, तब ब्रह्मा जी ने घमंड में आकर भगवान शिव की निंदा कर दी। यह सुनकर भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने अपने क्रोध से भैरव को उत्पन्न किया।

 

भगवान भैरव ने ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सिर काट दिया, क्योंकि ब्रह्मा जी ने मर्यादा का उल्लंघन किया था। इसलिए यह ब्रह्महत्या के समान माना गया, इसलिए भगवान भैरव को ब्रह्महत्या दोष लग गया। इसके प्रायश्चित के लिए उन्हें काशी नगरी जाकर तपस्या करनी पड़ी। वहां उन्होंने भिक्षाटन करते हुए अपने पाप का प्रायश्चित किया। तभी से उन्हें ‘भिक्षाटन भैरव’ और ‘काशी के कोतवाल’ कहा जाने लगा।

 

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भैरव के 52 रूप कौन-कौन से हैं?

भैरव के कुल 52 रूप माने गए हैं जिन्हें 8 प्रमुख भागों में बांटा गया है। ये 8 भैरव ‘अष्ट भैरव’ कहलाते हैं, और इन्हीं से 52 भैरवों की शाखाएं बनी हैं। अष्ट भैरव हैं- 

  • काल भैरव,
  • क्रोध भैरव,
  • संहार भैरव,
  • रूद्र भैरव,
  • उन्मत्त भैरव,
  • कपाल भैरव,
  • भिषण भैरव,
  • संहारक भैरव

इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध काल भैरव हैं, जो समय और मृत्यु के अधिपति माने जाते हैं। सभी भैरव रक्षात्मक शक्तियां हैं और शिव के गण माने जाते हैं। 52 भैरवों के कुछ अन्य नाम हैं- चंड भैरव, भूतनाथ भैरव, अघोर भैरव, संहार भैरव, आदि। इन सभी का स्वरूप उग्र होता है लेकिन यह भक्तों की रक्षा करने वाले और उनके भय दूर करने वाले देवता होते हैं। इसके साथ एक मान्यता यह भी है कि इन सभी 52 भैरवों को सभी शक्तिपीठों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था।

  • स्वर्णाकर्षण भैरव
  • नृसिंह भैरव
  • अघोर भैरव
  • काल भैरव (जो अष्ट भैरवों में संहार भैरव से संबंधित माने जाते हैं)
  • प्रचंड भैरव
  • वरुण भैरव
  • गवाक्ष भैरव
  • कामरूप भैरव
  • चक्र भैरव
  • विद्याराज भैरव
  • पद्म भैरव
  • विष्णु भैरव
  • मुण्डपाल भैरव
  • शव भैरव
  • भूतनाथ भैरव
  • पिंड भैरव
  • योगिनी भैरव
  • जटा भैरव
  • कंकाल भैरव
  • धूम्र भैरव
  • त्रिनेत्र भैरव
  • त्रिशूलपाणि भैरव
  • खड्गपाणि भैरव
  • अज भैरव
  • इंद्राचूर भैरव
  • इंद्रा मूर्ति भैरव
  • कुस्मांड भैरव
  • विमुक्ता भैरव
  • लिपिटक भैरव
  • एकदंश भैरव
  • एरावत भैरव
  • औषधि गणा भैरव
  • बंधक भैरव
  • दियाक भैरव
  • गावनिया भैरव
  • घंट भैरव
  • वियाल भैरव
  • अडु भैरव
  • चंद्र वरुण भैरव

कालाष्टमी का महत्व और भैरव की पूजा

कालाष्टमी हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं, भगवान भैरव के मंदिर में जाकर तेल, नारियल, काले तिल, सरसों के दाने और श्वान (कुत्ता) को भोजन अर्पित करते हैं, क्योंकि कुत्ता भैरव जी का वाहन माना जाता है।

जून 2025 कालाष्टमी व्रत

वैदिक पंचांग के अनुसार, जून महीने में आषाढ़ कालाष्टमी व्रत का पालन किया जाएगा। आषाढ़ अष्टमी तिथि 18 जून, दोपहर 01:34 पर शुरू होगी और 19 जून सुबह 11:55 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में जून महीने में कालाष्टमी व्रत 18 जून 2025, बुधवार के दिन रखा जाएगा।

 

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कालाष्टमी पर भैरव उपासना के लाभ

मान्यता है कि कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान भैरव की उपासना करने से भय और शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है। साथ ही कर्ज और संकट से राहत मिलती है। नौकरी, व्यापार में बाधा दूर होती है। इसके साथ तंत्र-बाधा, नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।

भैरव की पूजा कैसे करें?

सूर्योदय से पूर्व स्नान करें।

भगवान भैरव की मूर्ति या चित्र पर काले वस्त्र, लाल फूल और धूप-दीप चढ़ाएं।

तेल और उड़द चढ़ाना शुभ माना जाता है।

‘ॐ भैरवाय नमः’ मंत्र का जाप करें।

कुत्तों को रोटी या दूध देना पुण्यदायक होता है।