उत्तर प्रदेश में स्थित तीर्थराज प्रयागराज में इस समय महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, जो फरवरी माह के अंत में खत्म होगा। बता दें कि महाकुंभ में तीसरा अमृत स्नान बसंत पंचमी के दिन किया जाएगा। इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ और स्नान-दान करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। साथ ही बसंत पंचमी के दिन प्रयागराज में स्थित देवी सरस्वती के एक प्रसिद्द मंदिर में पूजा-पाठ करने से भी विशेष लाभ प्राप्त होता है।

 

प्रयागराज में अनेक मंदिर और धार्मिक स्थल हैं लेकिन इनमें से एक विशेष मंदिर ऐसा है जो ज्ञान, विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती को समर्पित है। इस मंदिर का नाम सरस्वती कूप है, प्रयागराज के प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम के पास स्थित है।

सरस्वती कूप का महत्व और इतिहास

सरस्वती कूप को पौराणिक काल से ही देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां अदृश्य सरस्वती नदी गंगा और यमुना से मिलती है। यहां स्थित सरस्वती कूप का अपना एक विशेष महत्व है। यह कूप बहुत गहरा और रहस्यमयी माना जाता है, जिसके जल को अत्यंत पवित्र और ज्ञानवर्धक माना जाता है।

 

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सरस्वती कूप की उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा जी की कृपा से हुई थी। जब उन्होंने सृष्टि की रचना की, तब ज्ञान और विद्या के प्रचार के लिए देवी सरस्वती प्रकट हुईं। उन्होंने इस स्थान को अपना दिव्य निवास बनाया। ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को शिक्षा, कला और संगीत में सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, वे इस स्थान पर आकर सरस्वती देवी की विशेष पूजा करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बसंत पंचमी पर विशेष पूजा

बसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पूरे भारत में विशेष रूप से विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है लेकिन प्रयागराज के सरस्वती कूप में इसका विशेष महत्व है। इस दिन यहां हजारों श्रद्धालु देवी सरस्वती की आराधना करने के लिए एकत्रित होते हैं।

 

सुबह से ही मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लग जाती हैं। लोग पीले वस्त्र पहनकर मां सरस्वती की आरती करते हैं और उन्हें पीले फूल, हल्दी, चंदन और सफेद वस्त्र अर्पित करते हैं। विद्यार्थी और कलाकार विशेष रूप से यहां आकर मां सरस्वती की उपासना करते हैं।

पौराणिक मान्यताएं और किंवदंतियां

सरस्वती कूप से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में भी इस स्थान का विशेष महत्व था। पांडवों ने भी अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर मां सरस्वती की आराधना की थी। ऐसा भी माना जाता है कि जब आदिगुरु शंकराचार्य भारत भ्रमण कर रहे थे, तब उन्होंने इस स्थान पर ध्यान लगाया और मां सरस्वती की कृपा से वे वेदों और शास्त्रों में पूर्ण रूप से पारंगत हो गए।

 

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एक और मान्यता के अनुसार, महान ऋषि भारद्वाज, जिन्होंने प्राचीन शिक्षा पद्धति का निर्माण किया था, उन्होंने इसी स्थान पर रहकर देवी सरस्वती की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां सरस्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।

सरस्वती कूप की विशेषता

सरस्वती कूप एक रहस्यमयी कुंड है, जिसका जल हमेशा स्वच्छ और पवित्र रहता है। कहा जाता है कि इस जल का रंग कभी-कभी हल्का सफेद या दूधिया हो जाता है, ऐसी मान्यता है कि यह देवी सरस्वती के आशीर्वाद से होता है। भक्तों का विश्वास है कि इस जल में स्नान करने से बौद्धिक क्षमता बढ़ती है और विद्यार्थियों को पढ़ाई में विशेष लाभ मिलता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।