हिंदू धर्म में मुख्य रूप से 13 प्रमुख अखाड़े हैं। इन अखाड़ों के लाखों की संख्या में साधु-संत व सन्यासी हिस्सा होते हैं और महाकुंभ अथवा किसी बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान एकत्रित होते हैं। इन अखाड़ों में ‘महामंडलेश्वर’ का पद सबसे उच्च और प्रतिष्ठित होता है। यह पद किसी भी साधु के लिए गौरव का प्रतीक है और उसे अखाड़े की सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से एक संभालने का अवसर मिलता है। महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन, अनुशासनपूर्ण और तपस्या आधारित होती है।
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी साधु को पहले अखाड़े में दीक्षित होना पड़ता है। इसके लिए उन्हें पहले एक गुरु चुनना होता है और साधु जीवन के शुरुआती चरण में उसे अपने गुरु के सान्निध्य में रहकर कठोर साधना और तपस्या करनी होती है।
यह भी पढ़ें: शाही बाराती भी है महाकुंभ का मुख्य आकर्षण, भगवान शिव से है संबंध
एक साधु को अखाड़े में अपनी योग्यता, भक्ति, ज्ञान और अनुशासन के आधार पर पहचाना जाता है। उन्हें शास्त्र और धर्मग्रंथों का गहरा अध्ययन करना होता है और समाज के प्रति सेवा भावना दिखानी होती है। जब साधु अपनी विद्वता, तपस्या और व्यवहार के माध्यम से खुद को सक्षम सिद्ध कर देता है, तब अखाड़े के वरिष्ठ संत और गुरु उसकी उम्मीदवारी पर विचार करते हैं।
महामंडलेश्वर की पदवी देने के लिए एक भव्य समारोह आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले के दौरान यह प्रक्रिया विशेष रूप से देखी जाती है। साधु को अखाड़े के संतों और महामंडलेश्वरों के सामने प्रतिज्ञा लेनी होती है कि वह धर्म, समाज और अखाड़े की परंपराओं का पालन करेंगे। इस पट्टाबंधन कहा जाता है। दीक्षा समारोह में महामंडलेश्वर को पवित्र वस्त्र, मुकुट और चंदन देकर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद उन्हें आधिकारिक रूप से अखाड़े के महामंडलेश्वर के रूप में स्वीकार किया जाता है।
महामंडलेश्वर के कार्य और जिम्मेदारियां
महामंडलेश्वर अखाड़े के धार्मिक और आध्यात्मिक नेता होते हैं। वे अखाड़े के साधुओं और अनुयायियों को धर्म का पालन करने और समाज के कल्याण के लिए काम करने की प्रेरणा देते हैं। इसके साथ महामंडलेश्वर समाज में धर्म और संस्कृति का प्रचार करते हैं। वे प्रवचन, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से समाज को नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं।
महामंडलेश्वर के कार्य में अखाड़े के संगठन, संपत्तियों और प्रशासन का प्रबंधन करना भी होता। साथ ही वे अखाड़े के विभिन्न कार्यक्रम, धर्मशाला और आश्रमों का संचालन करते हैं। अखाड़े के साधुओं और संतों के मार्गदर्शक रूप में इन्हें जाना जाता है। वे उन्हें धर्मशास्त्र का पाठ करने और साधना के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ मेले और अन्य धार्मिक आयोजनों में महामंडलेश्वर अखाड़े का नेतृत्व करते हैं। वे शाही स्नान का आयोजन करते हैं और अखाड़े की शोभायात्रा का नेतृत्व करते हैं। महाकुंभ में अखाड़ों की शोभायात्रा देखने के लिए और इनसे दीक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से लोग मेले में पहुंचते हैं। साथ ही कुंभ मेले में संतों को नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है, उस अनुष्ठान का संचालन भी महामंडलेश्वर करते हैं।
यह भी पढ़ें: इस अखाड़े में 70 फीसदी हैं पढ़े-लिखे साधु, जानिए निरंजनी अखाड़े का इतिहास
महामंडलेश्वर का इतिहास
महामंडलेश्वर की परंपरा भारत के प्राचीन अखाड़ों की स्थापना के साथ जुड़ी हुई है। आदि गुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना के समय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संतों को संगठित किया था। इन अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद संत समाज के लिए एक मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में स्थापित किया गया।
इतिहास में महामंडलेश्वरों की भूमिका केवल धार्मिक तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने समाज की रक्षा और सेवा में भी बड़ा योगदान दिया। विदेशी आक्रमण और सामाजिक संकटों के समय भी इन संतों ने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए नेतृत्व किया था।
अखाड़े में महामंडलेश्वर का महत्व
अखाड़े में महामंडलेश्वर अखाड़े की गतिविधियों का केंद्र होते हैं और धर्मशास्त्र के पालन को सुनिश्चित करते हैं। किसी भी अखाड़े की प्रतिष्ठा उनके महामंडलेश्वर से जुड़ी होती है। उनकी विद्वता और व्यक्तित्व अखाड़े की पहचान को मजबूती प्रदान करते हैं।
महामंडलेश्वर अखाड़े के संतों और अनुयायियों के बीच एकता और एकजुटता बनाए रखने का कार्य करते हैं। वर्तमान समय में, अखाड़ों के महामंडलेश्वर भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भी काम करते हैं। वे अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भी भाग लेकर भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचार करते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।