होली का नाम सुनते ही रंग, गुलाल, मिठाइयां और धमाल-चौकड़ी का ध्यान आता है लेकिन देश के हिस्से में चिता से होली खेली जाती है। बता दें कि बनारस में विभिन्न अखाड़ों के नागा साधु और अघोरी साधु श्मशान में ‘मसाने की होली’ खेलते हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये लोग रंग-गुलाल छोड़कर चिता की राख से होली क्यों खेलते हैं? आइए जानते हैं, इस परंपरा के पीछे की कहानी और इससे जुड़ी मान्यताएं।

क्या है मसाने की होली?

मसाने की होली का सीधा संबंध भगवान शिव से है। बनारस यानी काशी को महादेव की नगरी कहा जाता है और यहां की सबसे प्रसिद्ध होली गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है, जो कि एक श्मशान घाट है। नागा साधु और अघोरी मानते हैं कि मृत्यु का शोक मनाने के बजाय उसे जीवन के चक्र का हिस्सा मानना चाहिए। इसलिए, जहां आम लोग होली के दिन रंगों से खेलते हैं, वहीं ये साधु भस्म (चिता की राख) उड़ाकर ‘मसाने की होली’ खेलते हैं।

 

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पौराणिक कथा: भगवान शिव और श्मशान का संबंध

इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती ने जब हवनकुंड में आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान शिव इतने दुखी हुए कि उन्होंने उनका जला हुआ शरीर कंधे पर उठा लिया और सृष्टि में घूमने लगे। उनके इस विकराल रूप को देखकर सृष्टि संकट में आ गई। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए, जो अलग-अलग जगहों पर गिरे और वह शक्ति पीठ कहलाए।

 

माता सती के जाने के बाद भगवान शिव श्मशान में चले गए और वहीं रहने लगे। तब से उन्हें ‘श्मशानवासी’ भी कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि महादेव संहार के देवता हैं, जो जन्म और मृत्यु को नियंत्रित करते हैं, वहीं भगवान शिव के भक्तों में से एक नागा साधु और अघोरी साधुओं का यह मानना है कि जब उनके भगवान श्मशान में आनंद लेते हैं, तो उन्हें भी वहीं जाकर महादेव की भक्ति करनी चाहिए। यही कारण है कि वे श्मशान में भस्म की होली खेलते हैं और इसे महादेव की लीला का हिस्सा मानते हैं।

क्या आम लोग इस होली में शामिल हो सकते हैं?

मसाने की होली में हिस्सा कोई भी ले सकता है। हालांकि, कई आध्यात्मिक जानकार यह सलाह देते हैं कि आम लोगों को इस होली में शामिल नहीं होना चाहिए। इस होली में साधु और अघोरी इसलिए हिस्सा लेते हैं क्योंकि उन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया है। वहीं आम लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं, जिस वजह से श्मशान में हर किसी नहीं जाना चाहिए। इसके साथ मसाने की होली में जाने के लिए दिल मजबूत होना चाहिए, क्योंकि वहां चिता जलती रहती है और माहौल गंभीर होता है, इस बीच साधु-संतों की मस्ती अलग होती है।

 

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वास्तव में, यह जीवन और मृत्यु के बीच के अंतर को मिटाने का एक तरीका है। नागा साधु और अघोरी मानते हैं कि मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं, बल्कि उसे गले लगाने की जरूरत है। जब दुनिया रंगों से होली खेलती है, तब ये साधु चिता की राख से खेलकर यह संदेश देते हैं कि आखिर में सब कुछ राख ही तो बन जाना है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।