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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग: जहां भगवान शिव ने किया कुंभकर्ण के बेटे का वध

भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर का विशेष स्थान है। आइए जानते हैं, इस स्थान से जुड़ा इतिहास और महत्व।

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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिंदू धर्म में भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में 12 ज्योतिर्लिंग का नाम शीर्ष पर लिया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं, जहां भक्त दूर-दूर से आते हैं। इन्हीं में से एक है भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी अधिक है। आइए जानते हैं, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा और पौराणिक मान्यताएं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति का संबंध दैत्यराज भीम और भगवान शिव से है। भीम, जो कि राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था, जब बड़ा हुआ तो उसे ज्ञान हुआ कि उसके पिता को भगवान श्रीराम ने मारा था। इस बात से क्रोधित होकर उसने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे अजेय शक्ति का वरदान प्राप्त कर लिया।

 

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वरदान प्राप्त करने के बाद भीम ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और स्वर्गलोक तक को जीतने का प्रयास किया। उसने भगवान विष्णु के परम भक्त राजा इंद्रदत्त को पराजित कर दिया और उसे कारागार में डाल दिया। जब भीम ने देवताओं को भी अपना दास बनाने का प्रयास किया, तब सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की।

 

भगवान शिव ने उनकी पुकार सुनी और स्वयं प्रकट होकर भीम के साथ युद्ध किया। यह युद्ध कई वर्षों तक चला। अंत में भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से दैत्यराज भीम का संहार कर दिया। इसके बाद, देवताओं और ऋषियों के अनुरोध पर भगवान शिव ने यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयं को स्थापित किया, जिसे आज हम भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का महत्व

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह मंदिर भगवान शिव के अनन्य भक्तों के लिए एक विशेष तीर्थस्थल है। यहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करता है, उसे जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है। बता दें कि भीमाशंकर मंदिर की वास्तुकला प्राचीन नागर शैली में बनी हुई है, जो अपने शिल्पकारी और नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

 

महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भारी संख्या में भक्तजन एकत्रित होते हैं और भगवान शिव की विशेष आराधना करते हैं। मंदिर के निकट एक पवित्र जलधारा बहती है, जिसे 'गुप्त गंगा' कहा जाता है। मान्यता है कि यह जलधारा स्वयं भगवान शिव के आशीर्वाद से प्रवाहित होती है और इसका जल अत्यंत पवित्र होता है। एक अन्य कथा के अनुसार, यहां भगवान शिव ने अपने भक्त कामरूपेश्वर की रक्षा के लिए स्वयं प्रकट होकर उसका उद्धार किया था।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुड़े रहस्य

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से कई रहस्य जुड़े हुए हैं, जो इसे और भी विशेष बनाते हैं। जैसे अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का आकार थोड़ा अलग है। मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है और इसमें दिव्य ऊर्जा समाहित है। साथ ही मंदिर परिसर में बहने वाली गुप्त गंगा नामक जलधारा का वास्तविक स्रोत आज भी रहस्य बना हुआ है। कई शोधकर्ताओं ने इसके जलस्रोत को खोजने का प्रयास किया लेकिन कोई निश्चित जानकारी नहीं मिली। इसके साथ भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर घना जंगल है, जो कई दुर्लभ प्रजातियों का घर भी है। यहां 'भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य' स्थित है, जिसमें दुर्लभ मालाबार जायंट गिलहरी पाई जाती है।

 

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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में छठे स्थान पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही एक मान्यता है कि यहां पूजा-पाठ करने व्यक्ति को कई प्रकार के ग्रह दोष से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही भय और बाधाओं से लड़ने की शक्ति मिलती है।

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