चैत्र नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है। साथ ही नवरात्रि पर्व के दौरान मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में भी भक्तों की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है। इनमें से एक नैनीताल में स्थित है और कहा जाता है कि इसी शक्ति पीठ के आधार पर जगह का नामकरण हुआ था। 

 

मान्यता है कि नैनीताल में स्थित शक्तिपीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इसे 'नैना देवी' शक्तिपीठ कहा जाता है और इसी आधार पर इस स्थान का नाम 'नैनीताल' पड़ा। यह जगह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के कारण भी प्रसिद्ध है।

 

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नैना देवी शक्तिपीठ की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें जानबूझकर भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती इस अपमान को सह नहीं सकीं और उन्होंने यज्ञ में स्वयं को आहुति दे दी। जब भगवान शिव को इसकी जानकारी मिली तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गए।

 

वह सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तीनों लोकों में घूमने लगे। इससे सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न हुआ। तब भगवान विष्णु ने स्थिति को संभालने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

 

नैनीताल में सती के नेत्र गिरे थे। इसी कारण इस स्थान को 'नैना देवी शक्तिपीठ' के रूप में पूजा जाता है। 'नयना' शब्द का अर्थ है 'नेत्र' और 'ताल' का अर्थ है 'झील'। इसलिए इस स्थान का नाम 'नैनीताल' पड़ा।

नैना देवी मंदिर और रहस्य

नैना देवी मंदिर नैनीताल झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस मंदिर में देवी सती के नेत्रों की प्रतीकात्मक पूजा होती है। मंदिर में तीन प्रमुख मूर्तियां हैं – मध्य में नैना देवी, बाईं ओर गणेश जी और दाईं ओर भगवान काली। यह मंदिर आध्यात्मिक शांति और शक्ति का केंद्र माना जाता है।


मंदिर का इतिहास बताता है कि 15वीं शताब्दी में इसे स्थानीय लोगों द्वारा बनवाया गया था। लेकिन 1880 में नैनीताल में भारी भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया। इसके बाद 1883 में इसे फिर से स्थापित किया गया। तब से अब तक यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

 

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एक अन्य मान्यता के अनुसार, नैनी झील का संबंध तीन ऋषियों – अत्रि, पुलस्त्य और पुलह – से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि इन ऋषियों ने इस स्थान पर तपस्या की थी और मानसरोवर झील से जल लाकर इस झील की रचना की थी। इसलिए नैनी झील को कभी-कभी 'त्रिऋषि सरोवर' भी कहा जाता है।

 

हर साल जून माह में मां नैना देवी का वार्षिक महोत्सव भव्य रूप से मनाया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। इस अवसर पर झांकियां, भजन-कीर्तन और भव्य आरती का आयोजन होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।