उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ न केवल प्रकृति की गोद में बसा एक सुंदर तीर्थस्थल है, बल्कि यह एक प्राचीन धार्मिक स्थान भी है। यहां स्थित नरसिंह मंदिर को लेकर कई रहस्यमयी और पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह अवतार को समर्पित है और इसका विशेष स्थान बद्रीनाथ धाम की यात्रा से भी जुड़ा हुआ है।

 

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो नरसिंह मंदिर को आदि गुरु शंकराचार्य ने लगभग 8वीं सदी में स्थापित किया था। यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित जोशीमठ में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मंदिर की स्थापत्य शैली काफी प्राचीन और पारंपरिक है, जिसमें लकड़ी और पत्थर का सुंदर प्रयोग किया गया है, जिसकी आकृति केदारनाथ मंदिर से मिलती है। मंदिर में भगवान नरसिंह की एक प्रतिमा स्थापित है, जो श्याम वर्ण के पत्थर से बनी हुई है।

 

इस मंदिर को ‘जोशीमठ के नरसिंह मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है और यह बद्रीनाथ धाम के शीतकालीन मंदिर के रूप में कार्य करता है। जब सर्दियों में बद्रीनाथ धाम बंद हो जाता है, तब भगवान बदरीविशाल की पूजा इस नरसिंह मंदिर में की जाती है।

 

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पौराणिक कथा

नरसिंह भगवान विष्णु के उस रूप को कहते हैं जिसमें उन्होंने असुर हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु ने यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे कोई मानव या जानवर, दिन या रात, घर के अंदर या बाहर, किसी भी अस्त्र से नहीं मार सकेगा। तभी भगवान विष्णु ने आधे मानव और आधे सिंह रूप में प्रकट होकर संध्या के समय, दरवाजे की चौखट पर बैठकर, बिना किसी अस्त्र के अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का अंत किया।

 

जोशीमठ स्थित इस मंदिर से जुड़ी एक लोकमान्यता यह है कि जब कलियुग का अंत निकट होगा, तब भगवान बद्रीनाथ नर रूप में इस मूर्ति से प्रकट होकर नर और नारायण पर्वत को पार करेंगे और बद्रीनाथ धाम सदा के लिए बंद हो जाएगा। ऐसी मान्यता है कि तभी सत्ययुग का आरंभ होगा।

मूर्ति से जुड़ा रहस्य

मंदिर की मुख्य मूर्ति भगवान नरसिंह की है, जिसमें वह उग्र रूप में बैठे हैं। यह मूर्ति अपने आप में एक रहस्य समेटे हुए है। मान्यता है कि भगवान की यह मूर्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है, खासकर उनका बायां हाथ धीरे-धीरे पतला होता जा रहा है।

 

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स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन यह हाथ पूरी तरह से टूट जाएगा, उस दिन जोशीमठ से बद्रीनाथ तक जाने वाला मार्ग भी बंद हो जाएगा और बद्रीनाथ के द्वार सदा के लिए बंद हो जाएंगे। इसी के साथ वर्तमान युग यानी कलियुग का अंत और एक नए युग का आरंभ होगा।