उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसा शाकंभरी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र माना जाता है। अन्न और सब्जियों की अधिष्ठात्री मानी जाने वाली देवी शाकंभरी को समर्पित यह प्राचीन शक्तिपीठ अपनी अनोखी परंपराओं और सदियों पुरानी मान्यताओं के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भयंकर अकाल के समय देवी ने धरती पर फल, सब्जियों और अनाज की वर्षा की थी, इसी वजह से उन्हें ‘शाकंभरी’ नाम मिला और मंदिर अन्नपूर्णा परंपरा का प्रमुख तीर्थ बन गया।
इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है और पांडवों के वनवास से लेकर मुगल काल तक इसके कई प्रमाण मिलते हैं। हर वर्ष चैत्र और शारदीय नवरात्र में लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं, जहां देवी को सब्जियों और अनाज का विशेष प्रसाद चढ़ाने की अनोखी परंपरा आज भी जीवित है।
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मंदिर की विशेषता
देवी शाकंभरी 'सब्जियों और अन्न की देवी' हैं
माना जाता है कि शाकंभरी देवी का वह रूप हैं जिन्होंने भयंकर अकाल के समय पृथ्वी पर सब्जियों, फलों और अनाज की वर्षा की थी। इसी वजह से उन्हें अन्नपूर्णा के समान 'पोषण देने वाली देवी' कहा जाता है।
विशेष प्रसाद - सब्जियां और अनाज
अन्य मंदिरों की तरह केवल मिठाई नहीं, बल्कि इस मंदिर में सब्जियां और अनाज भी चढ़ाए जाते हैं, जो उनकी विशेष पहचान है।
प्राकृतिक वातावरण
यह मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिससे यह आध्यात्मिक और प्राकृतिक दोनों रूप में आकर्षण का केंद्र माना जाता है।
मंदिर से जुड़ी मान्यता
देवी ने अकाल से पृथ्वी को बचाया
मान्यता है कि एक समय धरती पर भयंकर अकाल पड़ा। तब माता ने सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों की उत्पत्ति कर लोगों को भोजन उपलब्ध कराया। इसी वजह से देवी का नाम शाकंभरी पड़ा।
देवी सतयुग से पूजित हैं
स्थानीय कथाओं के अनुसार, देवी शाकंभरी का यह स्थान सतयुग से सिद्ध पीठ है और यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
राक्षस दुर्गमासुर का वध
प्रचलित कहानी के अनुसार, दुर्गमासुर ने सभी वेद छीन लिए थे, जिससे देवता शक्तिहीन हो गए। तब देवी शाकंभरी ने अवतार लेकर असुर का अंत किया और संसार का कल्याण किया।
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मंदिर का इतिहास
लगभग 1000–1200 वर्ष पुराना माना जाता है
ऐतिहासिक अभिलेखों और स्थानीय दस्तावेजों के अनुसार, यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है।
पांडव काल से भी संबंध माना जाता है
कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के दौरान उन्होंने यहां पूजा-अर्चना की थी।
मुगल काल में संरक्षण
कहते हैं कि मुगल काल में भी स्थानीय लोगों ने माता को अत्यंत श्रद्धा से पूजा और मंदिर सुरक्षित रहा।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
स्थान:
सहारनपुर जिले के बेहट कस्बे के निकट शिवालिक पहाड़ियों में।
कैसे पहुँचे?
सड़क मार्ग से:
सहारनपुर शहर से मंदिर की दूरी लगभग 40–45 किमी है। सहारनपुर से बेहट होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। सड़क पूरी तरह पक्की है और पर्सनल गाड़ी, टैक्सी, बस आसानी से पहुंचती है।
रेल मार्ग से:
- नजदीकी रेलवे स्टेशन सहारनपुर जंक्शन है,
- यहां से टैक्सी, बस, ऑटो उपलब्ध रहते हैं।
निकटतम एयरपोर्ट:
- देहरादून जॉलीग्रांट एयरपोर्ट (लगभग 90–95 किमी)
- वहां से सड़क मार्ग से सहारनपुर पहुंचा जाता है
हल्की चढ़ाई
मंदिर के मुख्य परिसर तक कुछ सीढ़ियां हैं लेकिन चढ़ाई ज्यादा कठिन नहीं है।
