सनातन धर्म में शिवजी को 'सर्वेश्वर' और 'कल्याणकारी' माना गया है। वह सृष्टि के संहारक ही नहीं, बल्कि सृजन की ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी कृपा से न केवल जीवन में शांति और भक्ति आती है, बल्कि आत्मा को भी शक्ति और साहस प्राप्त होता है। ऐसे ही भगवान शिव की कृपा पाने और उनके संरक्षण में रहने के लिए एक दिव्य स्तोत्र है ‘शिव रक्षा स्तोत्र’।
शिव रक्षा स्तोत्र स्तोत्र ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित माना गया है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए, यह प्रार्थना की गई है कि वह भक्त की रक्षा करें और उन्हें जीवन में किसी भी प्रकार की पीड़ा न करना पड़े। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सुरक्षा प्रदान करता है।
शिव रक्षा स्तोत्र का अर्थ और भाव
विनियोग- ॐ अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमंत्रस्य याज्ञवल्क्यऋषिः,
श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुपछन्दः श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिव रक्षा स्तोत्रजपे विनियोगः।
विनियोग में कहा गया है कि इस स्तोत्र के रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि हैं, देवता भगवान सदाशिव हैं, और छंद अनुष्टुप है। इस स्तोत्र का पाठ शिव की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम् ।1।
भगवान शिव का चरित्र पवित्र, उदार और चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को प्रदान करने वाला है।
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गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नरः ।2।
जो भक्त शिव, पार्वती और गणेश सहित पंचमुखी, त्रिनेत्री और दशभुजाधारी शिव का ध्यान करता है और यह रक्षा स्तोत्र पढ़ता है, उसे सब प्रकार की सुरक्षा मिलती है।
गंगाधरः शिरः पातु भालमर्धेन्दु शेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषणः ।3।
गंगा को सिर पर धारण करने वाले शिव मेरा सिर, अर्धचंद्र धारण करने वाले मेरा ललाट, और त्रिपुर संहार करने वाले मेरी आंखों की रक्षा करें।
घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः ।4।
पुरों का नाश करने वाले शिव मेरी नाक की, जगत के स्वामी मुख की, वाणी के स्वामी जीभ की और नीले कंठ वाले मेरी गर्दन की रक्षा करें।
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।5।
कंठ में विष धारण करने वाले मेरी गर्दन, सारा भार सहन करने वाले दोनों कंधों, और त्रिशूलधारी शिव दोनों भुजाओं की रक्षा करें।
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ।6।
शंकर मेरे हृदय की, पार्वतीपति मेरे पेट की, मृत्युंजय मेरी नाभि की और व्याघ्रचर्म पहनने वाले मेरी कमर की रक्षा करें।
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सलः।
उरु महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ।7।
दुखियों पर दया करने वाले मेरी जांघों, महेश्वर मेरे ऊरुओं की, और जगत के स्वामी मेरे घुटनों की रक्षा करें।
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ।8।
सृष्टिकर्ता मेरी पिंडलियों की, गणों के अधिपति मेरे टखनों की और करुणा के सागर शिव मेरे चरणों सहित पूरे शरीर की रक्षा करें।
एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ।9।
जो कोई श्रद्धापूर्वक यह स्तोत्र पढ़ता है, वह सभी सांसारिक इच्छाओं को प्राप्त कर अंततः शिव के स्वरूप में लीन हो जाता है।
गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ।10।
जो भी पिशाच, भूत या नकारात्मक शक्तियां पृथ्वी पर घूम रही हैं, वे शिव के नाम से दूर भाग जाती हैं।
अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।11।
पार्वतीनाथ का यह कवच जिसे कोई भक्त अपने गले में धारण करता है या पढ़ता है, वह तीनों लोकों पर प्रभावशाली होता है।
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इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत् ।12।
यह स्तोत्र स्वयं नारायण ने सपने में याज्ञवल्क्य ऋषि को बताया था, जिसे ऋषि ने सुबह उठकर लिखा।
। इति श्री शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम ।
सावन सोमवार पर इसका विशेष महत्व
सावन का महीना शिवभक्ति के लिए सबसे पवित्र समय माना गया है। यह महीना वर्षा ऋतु का होता है, जो हरियाली, शुद्धता और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। सावन के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव को जल, बेलपत्र, धतूरा, आक, गंगाजल आदि अर्पित किया जाता है।
शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ सावन सोमवार को करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इसका कारण यह है कि इस स्तोत्र में शिव के प्रत्येक अंग और उनके विभिन्न स्वरूपों का ध्यान कर उनसे सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। यह स्तोत्र भक्त के शरीर की रक्षा करता है।