श्रीकृष्ण अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र में भगवान कृष्ण के 108 नाम समाहित हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति, एकाग्रता, घर-परिवार में प्रेम, सौहार्द, ग्रहदोष, बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम होता है। वैदिक और पुराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह मंत्र जीवन के समस्त दुःख, भय और कष्टों को दूर करने की अद्भुत शक्ति रखता है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की लीलाओं, स्वरूपों और अद्वितीय गुणों का वर्णन करता है।

 

आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में यह स्तोत्र आध्यात्मिक ऊर्जा का वह स्रोत है जो न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि आंतरिक शक्ति और स्थिरता भी प्रदान करता है। मान्यताओं के अनुसार, इस स्तोत्र वर्णित 'गोवर्धनाचलोद्धर्ता', 'कंसारि', 'मुरारि', 'गीतातत्त्वप्रदाता', 'वेणुनादविशारद' जैसे नाम न केवल भगवान के कार्यों का स्मरण कराते हैं, बल्कि भक्त के जीवन में आत्मबल, संयम और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।

 

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श्रीकृष्ण अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

श्लोक:


ॐ श्रीकृष्णः कमलानाथो वासुदेवः सनातनः ।
वसुदेवात्मजः पुण्यो लीलामानुषविग्रहः ॥

भावार्थ:

  • श्रीकृष्ण: समस्त आनंद और करुणा के स्वरूप।
  • कमलानाथ: लक्ष्मीजी (कमला) के पति।
  • वासुदेव: सबका पालन करने वाले।
  • सनातन: शाश्वत, जिनका कोई आदि-अंत नहीं।
  • वसुदेवात्मज: वसुदेव के पुत्र।
  • पुण्य: जिनका स्मरण ही पाप नष्ट कर पुण्य देता है।
  • लीलामानुषविग्रह: मानव रूप में लीला करने वाले भगवान।

श्लोक:

 

श्रीवत्सकौस्तुभधरो यशोदावत्सलो हरिः ।
चतुर्भुजात्तचक्रासिगदा शंखाद्युदायुधः ॥

भावार्थ:

  • श्रीवत्सकौस्तुभधरो: वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिह्न और कौस्तुभ मणि धारण करने वाले।
  • यशोदावत्सल: यशोदा मैया के प्रिय।
  • हरि: पाप और कष्ट हरने वाले।
  • चतुर्भुज: चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और तलवार धारण करने वाले।

श्लोक:


देवकीनंदनः श्रीशो नंदगोपप्रियात्मजः ।
यमुनावेगसंहारी बलभद्रप्रियानुजः ॥

भावार्थ:

  • देवकीनंदन: देवकी माता के पुत्र।
  • श्रीश: लक्ष्मी के स्वामी।
  • नंदगोपप्रियात्मज: नंदबाबा के प्रिय पुत्र।
  • यमुनावेगसंहारी: यमुना के उफान को शांत करने वाले।
  • बलभद्रप्रियानुज: बलराम के छोटे और प्रिय भाई।

श्लोक:


पूतनाजीवितहरः शकटासुरभंजनः ।
नंदव्रजजनानंदी सच्चिदानंदविग्रहः ॥

भावार्थ:

  • पूतनाजीवितहर: पूतना राक्षसी का वध करने वाले।
  • शकटासुरभंजन: शकटासुर का संहार करने वाले।
  • नंदव्रजजनानंदी: नंद और पूरे व्रज को आनंद देने वाले।
  • सच्चिदानंदविग्रह: सत्य, चैतन्य और आनंद के स्वरूप।

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श्लोक:


नवनीतविलिप्तांगो नवनीतनटोऽनघः ।
नवनीतनवाहारो मुचुकुंदप्रसादकः ॥

भावार्थ:

  • नवनीतविलिप्तांग: जिनके अंगों पर माखन लिपटा रहता है।
  • नवनीतनट: माखन खाने की चंचल लीला करने वाले।
  • अनघ: पापरहित।
  • नवनीतनवाहार: बार-बार माखन खाने वाले।
  • मुचुकुंदप्रसादक: मुचुकुंद को वरदान देने वाले।

 

श्लोक:


षोडशस्त्री सहस्रेश स्रिभंगि मधुराकृतिः ।
शुकवागमृताब्धींदुर्गोविंदो गोविदांपतिः ॥

भावार्थ:

  • षोडशस्त्रीसहस्रेश: 16,108 रानियों के स्वामी।
  • त्रिभंगि मधुराकृति: त्रिभंग मुद्रा में खड़े मधुर रूप।
  • शुकवागमृताब्धी: जिनके गुणों का वर्णन शुकदेव जैसे संत अमृत के समान करते हैं।
  • गोविंद: गौओं और इंद्रियों को आनंद देने वाले।
  • गोविदांपति: ग्वालों के स्वामी।

श्लोक:


वत्सवाटचरोऽनंतो धेनुकासुरभंजनः ।
तृणीकृततृणावर्तो यमलार्जुनभंजनः ॥

भावार्थ:

 

  • वत्सवाटचर: बछड़ों को चराने वाले।
  • अनंत: अनादि-अनंत।
  • धेनुकासुरभंजन: धेनुकासुर का वध करने वाले।
  • तृणीकृततृणावर्त: तृणावर्त राक्षस को तिनके समान नष्ट करने वाले।
  • यमलार्जुनभंजन: यमल-अर्जुन वृक्ष गिराकर नलकूबर और मणिग्रीव का उद्धार करने वाले।

श्लोक:


उत्तानतालभेत्ता च तमालश्यामलाकृतिः ।
गोपगोपीश्वरो योगी सूर्यकोटिसमप्रभः ॥

भावार्थ:

 

  • उत्तानतालभेत्ता: बड़े वृक्ष उखाड़ने वाले।
  • तमालश्यामलाकृति: तमाल वृक्ष जैसे श्याम रंग।
  • गोपगोपीश्वर: गोप-गोपियों के स्वामी।
  • योगी: परम योगेश्वर।
  • सूर्यकोटिसमप्रभ: करोड़ सूर्यों जैसा तेज।

श्लोक:


इलापतिः परंज्योतिर्यादवेंद्रो यदूद्वहः ।
वनमाली पीतवासाः पारिजातापहारकः ॥

भावार्थ:

  • इलापति: देवी लक्ष्मी (इला) के पति।
  • परंज्योति: परम प्रकाश स्वरूप।
  • यादवेंद्र: यादवों के राजा।
  • यदूद्वह: यदुवंश का गौरव।
  • वनमाली: वनमाला धारण करने वाले।
  • पीतवासा: पीले वस्त्र पहनने वाले।
  • पारिजातापहारक: स्वर्ग से पारिजात वृक्ष लाने वाले।

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श्लोक:


गोवर्धनाचलोद्धर्ता गोपालः सर्वपालकः ।
अजो निरंजनः कामजनकः कंजलोचनः ॥

भावार्थ:

  • गोवर्धनाचलोद्धर्ता: गोवर्धन पर्वत उठाने वाले।
  • गोपाल: गौओं के रक्षक।
  • सर्वपालक: सम्पूर्ण जगत के पालनहार।
  • अज: जन्मरहित।
  • निरंजन: मायारहित।
  • कामजनक: प्रेम और आनंद उत्पन्न करने वाले।
  • कंजलोचन: कमल जैसे नेत्र वाले।

श्लोक:


मधुहा मथुरानाथो द्वारकानायको बली ।
वृंदावनांतसंचारी तुलसीदामभूषणः ॥

भावार्थ:

  • मधुहा: मधु राक्षस का वध करने वाले।
  • मथुरानाथ: मथुरा के स्वामी।
  • द्वारकानायक: द्वारका के राजा।
  • बली: अपार शक्ति के स्वामी।
  • वृंदावनांतसंचारी: वृंदावन में विहार करने वाले।
  • तुलसीदामभूषण: तुलसी की माला धारण करने वाले।

श्लोक:


श्यमंतकमणेर्हर्ता नरनारायणात्मकः ।
कुब्जाकृष्णांबरधरो मायी परमपूरुषः ॥

भावार्थ:

  • श्यामंतकमणेर्हर्ता: श्यामंतक मणि प्राप्त करने वाले।
  • नरनारायणात्मक: नर और नारायण दोनों रूपों के स्वरूप।
  • कुब्जाकृष्णांबरधर: कुब्जा से चंदन और वस्त्र प्राप्त करने वाले।
  • मायी: अपनी माया से संसार को चलाने वाले।
  • परमपूरुष: सर्वोच्च पुरुष।

श्लोक:


मुष्टिकासुरचाणूरमहायुद्धविशारदः ।
संसारवैरी कंसारिर्मुरारिर्नरकांतकः ॥

भावार्थ:

 

  • मुष्टिकासुरचाणूरमहायुद्धविशारद: मुष्टिक और चाणूर असुरों को युद्ध में हराने वाले।
  • संसारवैरी: संसार के बंधनों से मुक्त कराने वाले।
  • कंसारि: कंस के शत्रु।
  • मुरारि: मुर दैत्य के वध करने वाले।
  • नरकांतक: नरकासुर का संहार करने वाले।

 

श्लोक:


अनादिब्रह्मचारी च कृष्णाव्यसनकर्षकः ।
शिशुपालशिरश्छेत्ता दुर्योधनकुलांतकः ॥

भावार्थ:

  • अनादिब्रह्मचारी: जिनका अस्तित्व अनादि और पवित्र है।
  • कृष्णाव्यसनकर्षक: भक्तों के दुख हरने वाले।
  • शिशुपालशिरश्छेत्ता: शिशुपाल का वध करने वाले।
  • दुर्योधनकुलांतक: दुर्योधन वंश का नाश करने वाले।

श्लोक:


विदुराक्रूरवरदो विश्वरूपप्रदर्शकः ।
सत्यवाक् सत्यसंकल्पः सत्यभामारतो जयी ॥

भावार्थ:

  • विदुराक्रूरवरद: विदुर और अक्रूर को वरदान देने वाले।
  • विश्व रूप प्रदर्शक: कुरुक्षेत्र में विराट रूप दिखाने वाले।
  • सत्यवाक्: सदैव सत्य बोलने वाले।
  • सत्यसंकल्प: जिनका संकल्प अटल होता है।
  • सत्यभामारत: सत्यभामा के प्रिय।
  • जयी: सदा विजयी।

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श्लोक:


सुभद्रापूर्वजो विष्णुर्भीष्ममुक्तिप्रदायकः ।
जगद्गुरुर्जगन्नाथो वेणुनादविशारदः ॥

भावार्थ:

  • सुभद्रापूर्वज: सुभद्रा के बड़े भाई।
  • विष्णु: संपूर्ण जगत के पालनकर्ता।
  • भीष्ममुक्तिप्रदायक: भीष्म पितामह को मुक्ति देने वाले।
  • जगद्गुरु: सम्पूर्ण सृष्टि के गुरु।
  • जगन्नाथ: जगत के स्वामी।
  • वेणुनादविशारद: बांसुरी वादन में निपुण।

श्लोक:


वृषभासुरविध्वंसी बाणासुरबलांतकः ।
युधिष्ठिरप्रतिष्ठाता बर्हिबर्हावतंसकः ॥

भावार्थ:

  • वृषभासुरविध्वंसी: वृषभासुर का वध करने वाले।
  • बाणासुरबलांतक: बाणासुर की शक्ति नष्ट करने वाले।
  • युधिष्ठिरप्रतिष्ठाता: युधिष्ठिर को राजा बनाने वाले।
  • बर्हिबर्हावतंसक: मोरपंख धारण करने वाले।

श्लोक:


पार्थसारथिरव्यक्तो गीतामृतमहोदधिः ।
कालीयफणिमाणिक्यरंजितश्रीपदांबुजः ॥

भावार्थ:

  • पार्थसारथि: अर्जुन के सारथि।
  • अव्यक्त: जो इंद्रियों से परे हैं।
  • गीतामृतमहोदधि: गीता के अमृत रूपी समुद्र के स्वामी।
  • कालीयफणिमाणिक्यरंजितश्रीपदांबुज: कालीय नाग के फणों के मणि से शोभित चरणकमल।

श्लोक:


दामोदरो यज्ञभोक्ता दानवेंद्रविनाशकः ।
नारायणः परंब्रह्म पन्नगाशनवाहनः ॥

भावार्थ:

  • दामोदर: कमर पर रस्सी बंधे (यशोदा द्वारा)।
  • यज्ञभोक्ता: यज्ञ के फल के भोगी।
  • दानवेंद्रविनाशक: दैत्यों का नाश करने वाले।
  • नारायण: सभी का आधार।
  • परंब्रह्म: सर्वोच्च सत्य।
  • पन्नगाशनवाहन: गरुड़ पर आरूढ़।

श्लोक:


जलक्रीडासमासक्त गोपीवस्त्रापहारकः ।
पुण्यश्लोकस्तीर्थपादो वेदवेद्यो दयानिधिः ॥

भावार्थ:

  • जलक्रीडासमासक्त: गोपियों के साथ जलक्रीड़ा करने वाले।
  • गोपीवस्त्रापहारक: गोपियों के वस्त्र छिपाने की लीला करने वाले।
  • पुण्यश्लोक: जिनके गुणों का स्मरण पुण्य देता है।
  • तीर्थपाद: जिनके चरण सभी तीर्थों से श्रेष्ठ हैं।
  • वेदवेद्य: वेद जिनकी स्तुति करते हैं।
  • दयानिधि: करुणा के सागर।

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श्लोक:


सर्वतीर्थात्मकः सर्वग्रहरुपी परात्परः ।
एवं श्रीकृष्णदेवस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥

भावार्थ:

  • सर्वतीर्थात्मक: सभी तीर्थों के समान पवित्र।
  • सर्वग्रहरुपी: सब ग्रहों के स्वामी।
  • परात्पर: सभी से ऊपर, सर्वोच्च।
  • नाम्नामष्टोत्तरं शतम्: यह श्रीकृष्ण के 108 नाम हैं।

श्लोक:


कृष्णनामामृतं नाम परमानंदकारकम् ।
अत्युपद्रवदोषघ्नं परमायुष्यवर्धनम् ॥

भावार्थ:

  • कृष्णनामामृत: कृष्ण के नाम अमृत के समान हैं।
  • परमानंदकारक: अत्यंत आनंद देने वाले।
  • अत्युपद्रवदोषघ्न: सभी संकट और दोषों का नाश करने वाले।
  • परमायुष्यवर्धन: आयु बढ़ाने वाले।