हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत एक विशेष पर्व है, जिसे महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं बरगद (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से दो पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है- सावित्री-सत्यवान की कथा और सावित्री-यमराज संवाद। आइए इन दोनों कथाओं को विस्तार से समझते हैं।
सावित्री और सत्यवान की कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा अश्वपति और उनकी रानी मालवती की कोई संतान नहीं थी। राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक तप और पूजा की। अंत में देवी सावित्री उनसे प्रसन्न हुईं और उन्हें एक पुत्री प्राप्त हुई। उस कन्या का नाम उन्होंने देवी के नाम पर 'सावित्री' रखा।
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सावित्री बड़ी होकर अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और गुणवान बनीं। जब विवाह का समय आया, तो उसने स्वयं एक उपयुक्त वर की खोज का निर्णय लिया। अपनी यात्रा के दौरान, सावित्री ने एक वनवासी राजकुमार सत्यवान को देखा, जो एक धर्मात्मा, विनम्र और सच्चरित्र युवक था। वह अपने अंधे और निर्वासित पिता द्युमत्सेन के साथ जंगल में रहता था।
सावित्री ने सत्यवान से विवाह करने का निश्चय कर लिया। जब वह अपने पिता के पास लौटी और यह निर्णय सुनाया, तो राजर्षि नारद ने उन्हें चेतावनी दी कि सत्यवान केवल एक वर्ष ही जीवित रहेगा। परंतु सावित्री अपने संकल्प से पीछे नहीं हटी और सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सावित्री पति के साथ वन में रहने लगी और पूरे समर्पण से अपनी गृहस्थी निभाने लगी। जैसे-जैसे एक वर्ष पूरा होने लगा, सावित्री को उस चेतावनी की याद आई। उसने उपवास और व्रत करना शुरू किया और अपने पति की रक्षा के लिए हर देवी-देवता की पूजा की।
एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल गया, और सावित्री भी उसके साथ गई। काम करते समय सत्यवान को चक्कर आया और वह सावित्री की गोद में गिर गया। तभी यमराज वहां प्रकट हुए और सत्यवान का प्राण हरने लगे।
सावित्री और यमराज संवाद की कथा
जैसे ही यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे, सावित्री भी उनके पीछे चलने लगीं। यमराज ने उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री ने उत्तर दिया, 'जहां तक मेरे पति जाएं, वहां तक पत्नी का साथ धर्म है।'
यमराज उसकी निष्ठा और समर्पण से प्रभावित हुए और बोले, 'तुम मुझसे कोई वर मांग सकती हो, पर सत्यवान का जीवन नहीं।'
सावित्री ने पहला वर मांगा – 'मेरे ससुर द्युमत्सेन को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए।' यमराज ने यह वर दे दिया।
फिर यमराज ने दोबारा लौटने को कहा, पर सावित्री अब भी साथ चलती रही। यमराज ने फिर एक वर देने को कहा।
सावित्री ने दूसरा वर मांगा – 'मेरे सास-ससुर को अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान मिले।' यमराज ने यह भी दे दिया।
फिर से यमराज ने सावित्री को लौट जाने को कहा, पर वह अब भी पीछे चलती रही।
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इसके बाद यमराज ने तीसरा वर देने की अनुमति दी।
सावित्री ने तीसरा वर मांगा – 'मैं सौ पुत्रों की मां बनूं।' यमराज ने यह वर भी दे दिया।
अब सावित्री ने युक्ति से कहा, 'हे यमराज, आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान दिया है लेकिन मेरे पति के बिना यह कैसे संभव है?'
यमराज को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। वे दोनों लौट आए और सत्यवान का परिवार सुख-शांति से राज्य में रहने लगा।
व्रत का महत्व
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि सावित्री ने अपने पति के लिए तप, व्रत, धैर्य, साहस और बुद्धिमानी का परिचय दिया। इसीलिए यह व्रत उनके नाम पर 'वट सावित्री व्रत' कहलाता है।
वट वृक्ष को अजर-अमर जीवन का प्रतीक माना जाता है, और इसी कारण महिलाएं इस व्रक्ष की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।