पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत एक बार फिर से चर्चा में है। चर्चा में रहने की वजह कोई ऐसी-वैसी नहीं है बल्कि बलूचिस्तान स्थित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने पाकिस्तान रेलवे की एक पूरी की पूरी 450 यात्रियों से भरी ट्रेन को हाईजैक कर लिया। बीएलए ने इस पूरी घटना की जिम्मेदारी ली। इस घटना ने पाकिस्तान सरकार को हिलाकर रख दिया है, जिसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है।
अलगाववादी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के विद्रोहियों ने 450 लोगों को ले जा रही ट्रेन, जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक किया। 30 घंटे तक ट्रेन हाइजैक रही, जिसमें 21 लोगों की हत्या कर दी गई, वहीं कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के 28 जवान शहीद हो गए। हाताल की गंभीरता को देखते हुए पाक आर्मी ने मोर्चा संभालते हुए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और 33 विद्रोहियों को मार गिराया।
बलूचिस्तान 1948 में पाकिस्तान में शामिल हुआ
बलूचिस्तान साल 1948 में पाकिस्तान में शामिल हुआ था, लेकिन बलूचिस्तान में बीएलए, बलूच लिबरेशन फ्रंट, और मजीद ब्रिगेड जैसे संगठन स्वतंत्र बलूचिस्तान की मांग करते रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल ये है कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ हथियार क्यों उठा लिए हैं? आखिर वहां के हालात ऐसे क्यों हैं कि हर गुजरते साल वहां से कोई-न-कोई हिंसक विद्रोह की खबर आती हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं कि बलूचिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों की कहानी क्या है...
दरअसल, बलूचिस्तान में जातीय बलूच बहुसंख्यक हैं। बलूचियों और पाकिस्तान की सरकार के बीच सालों से संघर्ष चलता रहा है। यह संघर्ष सिर्फ बलूचियों के अधिकार तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह भाषा, जातीयता, इतिहास, भौगोलिक भेद, असमानताओं और राजनीतिक अलगाव के आधार पर और भड़क रहा है।
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण
बलूचिस्तान के लगभग 1.5 करोड़ लोगों का मानना है कि अंग्रेजों कि तरह ही पाकिस्तान की सरकारें और आर्मी ने यहां के प्राकृतिक संसाधनों और इसकी भू-रणनीतिक स्थिति के लिए इस प्रांत का शोषण किया है। लोग मानते हैं कि सरकार आज भी उनका हर तरीके से दोहन कर रही है।

बलूचिस्तान भौगोलिक रूप से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह कुल पाकिस्तान का 46 फीसदी हिस्सा है, लेकिन जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटा। यह कुल जनसंख्या का लगभग 6 फीसदी है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान के किसी भी प्रांत के मुकाबले सामाजिक-आर्थिक विकास ना के बराबर है।
खनिजों के अलावा प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध
बलूचिस्तान में बड़ी मात्रा में जनजातीय समाज रहते हैं। यह इलाका हाइड्रोकार्बन और खनिजों के अलावा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। बावजूद इसके यहां के 70 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। इन वजहों से पाकिस्तान के बनने के बाद से ही बलूचिस्तान का इतिहास उग्रवाद और विद्रोही भरा हो गया है।
दरअसल, 80-90 के दशक में आर्थिक, राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा की वजह से बलूचिस्तान के युवा यहां से पलायन कर गए। अब इसमें से बड़ी मात्रा में युवा वापस लौट आए हैं। इन युवाओं के पास विजन और आधुनिक विचार दोनों हैं। इन सबके बावजूद पाकिस्तान के अंदर इन युवाओं को भी सरकारी नौकरियों या सेना में बड़े पदों से बाहर रखा जाता है। उनका आरोप है कि बलूचिस्तान में ज्यादातर पाकिस्तानी पंजाब और सिंध प्रांतों के लोगों का कब्जा है।
पाकिस्तान सरकार और आर्मी ने बलूचिस्तान में किसी भी आक्रोश या अशांति को दबाने के लिए हथियार का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं किया है। माना जाता है कि बलूचिस्तान में आर्मी के साथ में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई सक्रियता से काम करती हैं।
प्राकृतिक संसाधनों की लूट, बलूचों के पेट पर लात
बता दें कि पाकिस्तान सरकार ग्वादर मेगा-पोर्ट परियोजनाओं के विकास प्रांत में 62 बिलियन डॉलर चीन के साथ मिलकर बना रही है। पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिए औद्योगिक इकाइयां यहां लगाई जा रही है। इसी तरह यहां कि सुई गैस भंडार का दोहन और को डिक खदान का विकास किया जा रहा है। इन प्रोजेक्ट्स के बारे में बलूच लोगों का मानना है कि इससे सिर्फ उनके संसाधनों का शोषण हो रहा है। इससे पाकिस्तान और पंजाब प्रांत के लोगों को फायदा हुआ है, हमें नहीं। बलूचों ने कहा है कि इससे होने वाली कमाई भी पाकिस्तान के लोगों के बीच गई है, उनको इसका लाभ नहीं मिला। यह असंतोष और अलगाव का एक प्रमुख कारण है।

जबरन गुमशुदगी और फर्जी एनकाउंटर
बलूचिस्तान में हर साल सैकड़ों लोग गायब हो जाते हैं। यह मुद्दा काफी बड़ा है क्योंकि जो लोग गायब होते हैं वे मुश्किल से अपनों के पास लौटकर आते हैं। आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां और सेना लोगों को जबरदस्ती उठा लेती हैं और उनको मार देती हैं। एक रिपोर्ट के मुकाबिक, पाकिस्तानी सेना पिछले दो दशकों में 40,000 से ज्यादा बलूच नागरिकों को गायब कर चुकी है।
बलूचिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आए अन्य प्रमुख कारण
- जबरन कब्ज़ा और बलूचिस्तान की आजादी को छीनना।
- पाकिस्तानी सेना का नरसंहार और मानवाधिकार हनन।
- नवाब अकबर बुग्ती की हत्या, बलूच संघर्ष का सबसे बड़ा मोड़।