भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 2025 में जिस गति से बढ़ रही है, वह कई मायनों में अभूतपूर्व है। एक ओर देश में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन अभी भी सीमित हैं, हाईवे चार्जिंग नेटवर्क शुरुआती चरण में है, और छोटे शहरों में EV इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति असमान बनी हुई है। दूसरी ओर इसी दौरान EV रजिस्ट्रेशन और बिक्री लगातार नए रिकॉर्ड बना रही है। इस विरोधाभास ने नीति-निर्माताओं, उद्योग विशेषज्ञों और उपभोक्ताओं के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—जब चार्जिंग सुविधाएं कम हैं, तो आखिर लोग EV की ओर इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं? इसका जवाब भारत की आर्थिक वास्तविकताओं, उपभोक्ता व्यवहार, तकनीकी बदलाव और बाजार की संरचना में छिपा हुआ है। एक डेटा के मुताबिक भारत में ईवी की मार्केट साल-दर-साल 61 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रही है। गुरुवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि 2030 तक भारत की ईवी मार्केट 20 लाख करोड़ की वैल्यू तक पहुंच जाएगी।
दरअसल, भारतीय उपभोक्ता के लिए EV अपनाने का सबसे बड़ा कारण पेट्रोल और डीज़ल की लगातार ऊंची कीमतें हैं। पिछले कुछ वर्षों में ईंधन-मूल्य कभी भी उस स्तर पर नहीं लौटे, जिसे आम परिवार सहज मान सके। कई राज्यों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के आसपास बना हुआ है। ऐसे में सामान्य उपभोक्ता के लिए वाहन चलाना एक महंगा खर्च बन चुका है। इसके उलट, एक इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहन की प्रति किलोमीटर लागत लगभग 20–50 पैसे आती है, जबकि पेट्रोल बाइक में यह लागत 2–3 रुपये प्रति किलोमीटर होती है। यही सीधा सा समीकरण लाखों लोगों को EV खरीदने की ओर आकर्षित कर रहा है, क्योंकि उन्हें लंबी अवधि में भारी बचत का भरोसा नजर आता है। हालांकि, अगर चार्जिंग स्टेशन कुछ ही दूरी पर हों तब भी घर पर चार्जिंग करना ही इसका सुविधाजनक हो पाता है।
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मार्केट स्ट्रक्चर
भारत की EV क्रांति का दूसरा बड़ा कारण बाजार का स्ट्रक्चर है। यह बात सही है कि ईवी की खरीद में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन देश में EV खरीद का 85–90% हिस्सा दो-पहिया और तीन-पहिया वाहनों से आता है। इस श्रेणी को सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों पर निर्भर रहने की जरूरत लगभग नहीं होती। दो-पहिया यूजर्स सामान्यतः घर पर रात भर चार्ज कर लेते हैं और रोज उनको इतनी कम यात्रा करनी होती है कि उन्हें बाहर चार्ज करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। यही स्थिति तीन-पहिया ई-रिक्शा की भी है, जिनका एक फुल चार्ज दिन भर की रन-अप के लिए काफी होता है। इसीलिए EV इन्फ्रास्ट्रक्चर के कमजोर होने के बावजूद भी इन दोनों श्रेणियों में ईवी वाहनों की बिक्री बढ़ रही है। यदि भारत में EV बिक्री का बड़ा हिस्सा कार सेगमेंट पर आधारित होता, तो शायद कहानी बिल्कुल अलग होती।
कम होती कीमतें
तीसरा महत्वपूर्ण पहलू EV की कीमतों में तेज़ गिरावट है। 2023 से 2025 के बीच दो-पहिया EV वाहन 15–25% तक सस्ते हुए हैं, जबकि कई कंपनियों ने लो-कॉस्ट मॉडल लॉन्च किए हैं, जिनकी कीमत 60,000–80,000 रुपये तक है। यही नहीं, इलेक्ट्रिक रिक्शा और छोटे कमर्शियल EVs अब पहले की तुलना में अधिक किफायती और विश्वसनीय हो गए हैं। EV की शुरुआती कीमत कम होने के साथ-साथ EMI विकल्प, लो-डाउन पेमेंट स्कीम और फेस्टिव ऑफर्स ने भी खरीदारी को बढ़ावा दिया है। उपभोक्ता को जब सीधी कीमत कम दिखाई देती है और रनिंग कास्ट लगभग एक-दसवें हिस्से पर आ जाती है, तो EV अपनाना एक आसान निर्णय बन जाता है, चाहे चार्जिंग स्टेशन उनकी कॉलोनी में न हों।
सरकारी नीतियां
इस तेज़ी को बढ़ावा देने वाला एक और बड़ा कारण सरकारी नीतियां हैं। FAME-II सब्सिडी, GST में कमी (12% से घटाकर 5%), रोड टैक्स माफी और रजिस्ट्रेशन शुल्क छूट ने EV की इफेक्टिव कीमत को काफी कम कर दिया है।
EV बाजार को आगे बढ़ाने में निजी कंपनियों की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। ओला, एथर, टाटा, TVS और महिंद्रा जैसी कंपनियों ने न सिर्फ लगातार नए मॉडल लॉन्च किए, बल्कि EV को एक 'प्रीमियम टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट' की बजाय 'जन-सुलभ विकल्प' के रूप में पेश किया। कंपनियों ने घर पर चार्जर इंस्टॉलेशन को आसान बनाया, बैटरी रेंज बढ़ाई, और मेंटेनेंस को लगभग शून्य के स्तर पर ला दिया। यह सब मिलकर EV को सिर्फ एक वाहन नहीं बल्कि एक स्मार्ट अप्लायंस की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं, जो खासकर युवा उपभोक्ताओं को काफी आकर्षित कर रहा है।
कमर्शियल क्षेत्र में EV की मांग इस कहानी का एक अहम अध्याय है। डिलीवरी कंपनियां जैसे जोमैटो, स्विगी, अमेजन और फ्लिपकार्ट साथ ही उबर और ओला जैसी राइड-हेलिंग कंपनियां तेजी से अपनी फ्लीट इलेक्ट्रिक कर रही हैं। ई-रिक्शा और छोटे माल ढुलाई वाले वाहनों में EV अपनाने से ड्राइवरों की आमदनी सीधे बढ़ रही है, क्योंकि ईंधन खर्च लगभग खत्म हो जाता है। यह आर्थिक वास्तविकता चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के कमजोर होने की कमी को कम कर देती है, क्योंकि कॉमर्शियल यूजर अधिकतर अपने डिपो या घर पर चार्जिंग की व्यवस्था करते हैं।
बढ़ते चार्जिंग स्टेशन
एक और दिलचस्प कारण चार्जिंग स्टेशन बढ़ने की उम्मीद है। भले ही वास्तविक संख्या सीमित हो, लेकिन पिछले तीन वर्षों में चार्जिंग नेटवर्क में पांच गुना विस्तार हुआ है। हाईवे पर फास्ट-चार्जिंग कॉरिडोर बन रहे हैं, और निजी कंपनियां बड़े पैमाने पर चार्जिंग हब स्थापित कर रही हैं। उपभोक्ताओं को लगता है कि आने वाले समय में चार्जिंग नेटवर्क और मजबूत होगा, और यही भरोसा EV खरीद के निर्णय को आसान बनाता है।
अंत में, पर्यावरण-जागरूकता और ग्रीन-मोबिलिटी का वातावरण युवाओं और शहरी परिवारों में तेजी से बढ़ रहा है। पॉल्यूशन, क्लाइमेट चेंज और स्मॉग की समस्या ने कई शहरों में नागरिकों को EV की ओर मोड़ दिया है। लोग अब EV को सिर्फ सस्ता वाहन नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार विकल्प समझकर अपना रहे हैं।
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कुल मिलाकर भारत की EV ग्रोथ 'इन्फ्रास्ट्रक्चर-पुल' नहीं बल्कि 'कस्टमर-पुश' पर आधारित है। चार्जिंग स्टेशन की कमी बाधा जरूर है, परंतु आर्थिक बचत, कीमतों में गिरावट, सरकारी प्रोत्साहन, कंपनियों की रणनीति और दो-पहिया/तीन-पहिया सेगमेंट की प्रमुखता ने EV को एक अत्यंत व्यवहारिक विकल्प बना दिया है। यही कारण है कि चार्जिंग नेटवर्क अभी अधूरा है, फिर भी EV बिक्री बढ़ती जा रही है।
