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चीन ने बैन किया रेयर अर्थ मटीरियल, कैसे बचाएगा भारत अपनी EV इंडस्ट्री?

ईवी में प्रयोग होने वाले रेयर अर्थ मटीरियल पर चीन का लगभग एकाधिकार है। इस पर भारत की गहरी निर्भरता है। अब इसके बाद भारत के पास क्या विकल्प है जानें।

PM Narendra Modi । Photo Credit: PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी । Photo Credit: PTI

चीन ने 4 अप्रैल, 2025 से रेयर अर्थ मटीरियल, खासकर मैग्नेट, पर सख्त निर्यात प्रतिबंध लगा दिए है, जिससे भारत के तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) उद्योग को झटका लगा है। ये मटीरियल, विशेष रूप से नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट, ईवी मोटर, स्टीयरिंग सिस्टम, ब्रेक और अन्य हिस्सों के लिए जरूरी हैं। चीन वैश्विक रेयर अर्थ मटीरियल के उत्पादन का 90% से ज्यादा नियंत्रित करता है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऑटोमोटिव बाजार भारत ने पिछले साल 460 टन मैग्नेट आयात किए और 2025 में 700 टन ($30 मिलियन मूल्य) आयात करने की योजना थी। भू-राजनीतिक तनाव के चलते लगाए गए इस प्रतिबंध ने चीनी बंदरगाहों पर शिपमेंट अटका दिए हैं, जिससे जून 2025 तक उत्पादन रुकने का खतरा है। 

 

भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (SIAM) ने कम हो रहे स्टॉक की चेतावनी दी है, और अगर जल्द समाधान नहीं हुआ तो उद्योग ‘पूरी तरह ठप’ हो सकता है। भारत 2025 के बजट और ई-मोबिलिटी योजनाओं के जरिए ईवी को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन यह संकट उसकी चीन पर निर्भरता को उजागर करता है। स्टॉक घट रहे हैं और तत्काल कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, जिससे बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर जैसी कंपनियों को उत्पादन में देरी और लागत बढ़ने का डर है। सरकार बीजिंग में बातचीत के लिए प्रतिनिधिमंडल भेज रही है, लेकिन भारत को अन्य विकल्पों की तरफ भी देखना होगा। खबरगांव इस लेख में आपको बताएगा कि चीन के इस प्रतिबंध का भारत के ईवी इंडस्ट्री पर क्या प्रभाव पड़ेगा और भारत के सामने क्या विकल्प हैं और क्या कदम उठाने चाहिए?


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भारत के ईवी बाजार पर प्रभाव

चीन के निर्यात प्रतिबंध ने भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र, खासकर तेजी से बढ़ते ईवी सेगमेंट, में संकट पैदा कर दिया है। रेयर अर्थ मैग्नेट ईवी मोटर के लिए जरूरी हैं, जिनमें प्रति वाहन लगभग 550 ग्राम मटीरियल चाहिए, जबकि सामान्य पेट्रोल-डीजल वाहनों में 140 ग्राम। ये मैग्नेट पावर विंडो, ऑडियो सिस्टम और एंटी-लॉक ब्रेक जैसे हिस्सों में भी महत्वपूर्ण हैं।

 

चीन दुनिया के 85-95% रेयर अर्थ मैग्नेट की आपूर्ति करता है और भारत की इस पर निर्भरता ने उद्योग को जोखिम में डाल दिया है। जटिल आयात परमिट और एंड-यूज सर्टिफिकेट की जरूरत ने चीनी बंदरगाहों पर शिपमेंट अटका दिए हैं। 

 

मारुति सुजुकी, बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर जैसी कंपनियों ने चेतावनी दी है कि जून या जुलाई 2025 तक आपूर्ति बाधित रही तो उत्पादन रुक सकता है। मारुति सुजुकी ने अभी कोई तत्काल प्रभाव न होने की बात कही, लेकिन उनकी आगामी इलेक्ट्रिक एसयूवी, ई विटारा, को जोखिम है।

 

बजाज ऑटो के कार्यकारी निदेशक राकेश शर्मा ने कहा कि कमी से इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर उत्पादन पर ‘गंभीर प्रभाव’ पड़ेगा, जो भारत की ई-मोबिलिटी योजना का अहम हिस्सा है। SIAM और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) ने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, क्योंकि एक भी हिस्से की कमी असेंबली लाइन रोक सकती है। 

 

यह आर्थिक गति को रोक सकता है क्योंकि ऑटो सेक्टर अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और इसकी लागत बढ़ने और ईवी लॉन्च में देरी से भारी नुकसान हो सकता है और 2030 तक 30% ईवी लक्ष्य को झटका लग सकता है।

कौन से देश हैं विकल्प

चीन के रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन पर दबदबे के कारण भारत को इसकी आपूर्ति के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा। संभावित साझेदार देशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया, जो रेयर अर्थ मटीरियल का बड़ा उत्पादक है, उसके पास लिनास रेयर अर्थ्स जैसी कंपनियां हैं, जो कच्चा माल दे सकती हैं।

 

वहीं अमेरिका में कैलिफोर्निया की खदानें और जनरल मोटर्स की टेक्सास में मैग्नेट उत्पादन इकाई से इसकी आपूर्ति की जा सकती है। जापान, जो रेयर अर्थ प्रोसेसिंग में अग्रणी है, हिताची मेटल्स जैसी कंपनियों के जरिए भारत की जरूरतें पूरी कर सकता है। वियतनाम और मलेशिया जैसे उभरते देश भी इसके विकल्प हो सकते हैं, लेकिन उनकी क्षमता सीमित है।

 

हालांकि, इन देशों से आपूर्ति हासिल करना आसान नहीं है। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका अपनी घरेलू जरूरतों और सहयोगी देशों (जैसे यूरोपीय संघ) को प्राथमिकता देते हैं, जिससे भारत को आपूर्ति सीमित हो सकती है। जापान का उत्पादन महंगा है और भारत की मांग को पूरा करने के लिए बड़े निवेश और समय की जरूरत होगी।

 

क्वॉड जैसे ढांचों के जरिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भू-राजनीतिक सहयोग साझेदारी को आसान बना सकता है, लेकिन भारत को जटिल व्यापार वार्ताओं और पर्यावरण नियमों का पालन करना होगा, क्योंकि रेयर अर्थ मटीरियल को निकालने में काफी प्रदूषण पैदा होता है।

 

जर्मनी जैसे यूरोपीय देश, जो खुद आपूर्ति संकट का सामना कर रहे हैं, तकनीकी विशेषज्ञता दे सकते हैं, लेकिन उनसे जरिए तत्काल मटीरियल आपूर्ति की संभावना कम है। भारत को ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ द्विपक्षीय समझौतों और संयुक्त उद्यमों पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही दीर्घकालिक निर्भरता कम करने के लिए घरेलू प्रोसेसिंग क्षमता में निवेश करना चाहिए।

क्या हैं चुनौतियां?

चीन से रेयर अर्थ आपूर्ति की निर्भरता कम करना भारत के लिए बड़ी चुनौती है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन का 70-80% प्रोसेसिंग और 90% से ज्यादा मैग्नेट उत्पादन पर नियंत्रण है। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोतों की प्रोसेसिंग क्षमता सीमित है, और इसे बढ़ाने में सालों और अरबों रुपये का निवेश चाहिए।

 

पर्यावरण चिंताएं भी बड़ी बाधा हैं, क्योंकि रेयर अर्थ को निकालने और इसकी प्रोसेसिंग की प्रक्रिया बहुत प्रदूषण पैदा करती है, जिसके लिए सख्त नियमों का पालन जरूरी है, जो साझेदार देशों में परियोजनाओं को देरी कर सकता है।

लागत भी बड़ी समस्या

लागत भी एक बड़ी समस्या है। जापान की उन्नत प्रोसेसिंग तकनीक भरोसेमंद है, लेकिन महंगी है, जिससे भारत के कीमत-संवेदनशील बाजार में ईवी की लागत और कीमत बढ़ सकती है। भू-राजनीतिक जटिलताएं स्थिति को और कठिन बनाती हैं।

 

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका भले ही रणनीतिक साझेदार हों, लेकिन उनकी निर्यात नीतियां अपनी जरूरतों और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे भारत को सीमित आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।

क्या है उपाय

रेयर अर्थ मटीरियल के संकट से निपटने और ईवी उद्योग को बचाने के लिए भारत को अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय अपनाने होंगे-

 

कूटनीतिक प्रयास- भारत जून 2025 में बीजिंग में ऑटो इंडस्ट्री लीडर्स का प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बना रहा है ताकि निर्यात मंजूरी तेज हो। सरकार को वाणिज्य और विदेश मंत्रालयों के जरिए अस्थायी राहत हासिल करनी चाहिए और चीनी अधिकारियों के साथ भरोसा बनाना चाहिए। 

 

सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन- भारत को ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौते या क्वॉड पहल के जरिए साझेदारी करनी चाहिए। लिनास रेयर अर्थ्स या हिताची मेटल्स जैसी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम कच्चा माल और प्रोसेसिंग तकनीक हासिल कर सकते हैं। 

 

घरेलू उत्पादन- भारी उद्योग मंत्रालय स्थानीय मैग्नेट उत्पादन के लिए प्रोत्साहन और ढांचा तैयार कर रहा है। भारत को राजस्थान और ओडिशा जैसे क्षेत्रों में रेयर अर्थ भंडारों की खोज तेज करनी चाहिए और प्रोसेसिंग सुविधाओं में निवेश करना चाहिए, भले ही पर्यावरण और लागत चुनौतियां हों। 

 

रिसर्च और इनोवेशन- गैर-रेयर अर्थ मैग्नेट या रीसाइक्लिंग तकनीकों पर रिसर्च में निवेश से निर्भरता कम हो सकती है। जापानी और अमेरिकी विश्वविद्यालयों या टेक कंपनियों के साथ सहयोग इसे तेज कर सकता है।

 

स्टॉकपाइलिंग और इन्वेंट्री मैनेजमेंट- भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों को भविष्य के संकटों से बचने के लिए रेयर अर्थ मटीरियल का रणनीतिक भंडार बनाना चाहिए, जैसा कि वर्तमान संकट में जून 2025 तक स्टॉक खत्म होने का डर है। 

 

पॉलिसी सपोर्ट- सरकार को 2025 के बजट में स्थानीय मैग्नेट उत्पादन के लिए सब्सिडी और वैकल्पिक सप्लाई चेन में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए कर छूट शामिल करनी चाहिए।

 

वैश्विक पैरोकारी- भारत अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों के साथ विश्व व्यापार संगठन (WTO) के जरिए चीन पर निर्यात प्रतिबंध हटाने का दबाव बना सकता है। ये उपाय, हालांकि चुनौतीपूर्ण, भारत के ईवी उद्योग की मजबूती और ई-मोबिलिटी लक्ष्यों के लिए जरूरी हैं।

 

चीन का रेयर अर्थ निर्यात प्रतिबंध भारत के ईवी उद्योग के लिए बड़ा खतरा है, जिससे उत्पादन रुकने और लागत बढ़ने का डर है। चीन के 90% मैग्नेट नियंत्रण के कोई तत्काल विकल्प नहीं हैं, इसलिए भारत को कूटनीति, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ साझेदारी, और घरेलू उत्पादन में निवेश करना होगा। उच्च लागत, पर्यावरण चिंताएं और भू-राजनीतिक बाधाएं चुनौती हैं, लेकिन सप्लाई चेन में डाइवर्सिफिकेशन, इनोवेशन और वैश्विक सहयोग से भारत अपने ईवी सपनों को बचा सकता है और टिकाऊ ऑटोमोटिव भविष्य की ओर बढ़ सकता है।

 

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