भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दिया था लेकिन देश में मैला ढोने वालों की प्रथा के बंद होने के 12 साल बाद भी हालात कुछ सुधरे नहीं हैं। कहा जा सकता है कि मैला ढोने वालों की प्रथा महज एक 'काजगी' कार्रवाई बनकर रह गई है क्योंकि पिछले साल 9 अक्टूबर 2024 को दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर 3 मजदूरों की सीवर लाइन साफ करते वक्त मौत हो गई।
उत्तर-पश्चिम दिल्ली के रोहिणी में 15 मई 2024 को एक मॉल के बाहर सीवर की सफाई करते समय एक सफाई कर्मचारी की डूबकर मौत हो गई थी, जबकि एक अन्य कर्मचारी को गंभीर हालत में बाहर निकाला गया था।
हम मैला ढोने वालों की प्रथा का बंद होना महज काजगी कार्रवाई इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार के तमाम दावों के बाद भी यह तीन बेगुनाहों की मौतें सीवर में बिना सुरक्षा उपकरण के घुसकर सफाई करने के दौरान हुई थी। सीवर सफाई के दौरान मौतों का यह सिलसिला रुका नहीं है बल्कि आए दिन ऐसी खबरें अखबारों में मुर्खियां बन रही हैं।
अखबारों की हेडलाइन बन रही मौतें
इसी तरीके के पिछले साल 2024 के अक्तूबर के महीने में ही राजस्थान के सीकर जिले में सीवेज टैंक की सफाई करने उतरे तीन मजदूरों की मौत हो गई थी। दिल्ली से सटे गुरुग्राम में जून में एक मजदूर की सैप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मौत हो गई थी। इसी तरह से नोएडा में भी एक मजदूर की मौत हुई थी।
यह मामले सिर्फ दिल्ली, सीकर, गुरुग्राम और नोएडा से नहीं है, बल्कि ऐसे केस पूरे देश से आए दिन अखबारों की हेडलाइन बन रहे हैं लेकिन इन मामलों में मजदूरों की मौतों के साथ में उनका परिवार दर-दर की ठोकरें खाने के लिए पीछे रह जाता है।
भारत सरकार के दावों की हकीकत
सैप्टिक टैंक में सफाई करते हुए मजदूरों की मौतों की बात करें तो सरकार भारत में साल 1993 के बाद से 'हाथ से मैला ढोने के कारण कोई मौत न होने' की बात कहती है लेकिन तब से अब तक सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 980 से भी ज्यादा लोगों की मौतें हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
अकेले दिल्ली में पिछले सात सालों में हाथ से मैला ढोने वाले 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों में मृतकों के परिवार को मुआवजे का प्रावधान है लेकिन सरकार की तरफ से पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की स्थिति दयनीय है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि जो लोग सीवर की सफाई के दौरान मारे जाते हैं उनके परिवार को सरकारों को 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा और सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता के शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।
दिल्ली में कई जगह सीवर की सफाई आज भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मी कर रहे हैं, जिनकी वजह से कई बार उनकी जान चली जाती है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में सरकार ने इस दिशा में काम भी किए हैं। सरकार ने आधुनिक मशईनें मंगवाई हैं, जिनके जरिए सीवर की सफाई की जाती है।
'खबरगांव' की पड़ताल
राजधानी में सीवर की सफाई आज भी हाथों से हो रही है या मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी पड़ताल करने के लिए 'खबरगांव' दिल्ली के ओखला इलाके में ग्राउंड पर गया। यहां जाने पर पता चला कि शाहीन बाग इलाके की मेन गली में सीवर सफाई और नई पाइप लाइन डालने का काम चल रहा था। सीवर से गंदा पानी निकालने के लिए मोटे पाइप से ट्रैक्टर का इस्तेमाल हो रहा था। यह काम स्थानीय विधायक द्वारा करवाया जा रहा था। इस काम को करने के लिए तैय्यब नाम के सफाईकर्मी के साथ में कुछ लोग लगे हुए थे।
इसके अलावा इलाके की कई गलियों में सीवर सफाई के लिए खुदाई की गई थी। पिछले 6 महीने से की गई खुदाई की वजह से चारों तरफ गंदगी पसरी पड़ी थी। लोग इसी गंदगी में आने-जाने के लिए मजबूर थे।
इसी तरह से ओखला इलाके में सीवर सफाई का काम करने वाले विनोद ने बताया कि अब सीवर की सफाई हाथों से नहीं बल्कि मशीनों से होती है। यह काम ठेकेदार की तरफ से कुछ मजदूरों से करवाया जाता है। ठेकेदार काम खत्म होने के बाद मजदूरों को सफाई के लिए साबुन और मेहनत के पैसे देता है। विनोद के मुताबिक, वह सीवर की सफाई ट्रैक्टर मशीन से करते हैं। उनके जीवन में सह सकारात्मक बदलाव आया है यह एक सच है। हालांकि, आज भी सीवर सफाई के दौरान मौतें हो रही हैं यह भी एक सच है।
दिल्ली में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का अभाव
दरअसल, दिल्ली में एक सुनियोजित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का अभाव है, यह एक ऐसी समस्या है जो इसके रखरखाव और संचालन में शामिल कई सरकारी एजेंसियों की लापरवाहियों की वजह से जटिल हो चुकी हैं। हर साल राजधानी की नालियां जाम हो जाती हैं और सीवर लाइनें अक्सर रिहायशी इलाकों में ओवरफ्लो होकर बहने लगती हैं। इसकी तस्वीरें भी अक्सर सामने आती हैं।
दिल्ली सीवेज मास्टर प्लान 2031 के अनुसार दिल्ली का 50 प्रतिशत हिस्सा अभी भी सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़ा है। दिल्ली का जल निकासी नेटवर्क 40 साल पुरानी एक योजना पर आधारित है, जिसमें स्टॉर्म वॉटर नालियों, बारिश के पानी की नालियों और सीवर लाइनों की एक अलग प्रणाली शामिल है।
दिल्ली में दिल्ली नगर निगम बारिश के पानी की नालियों का रखरखाव करता है जबकि लोक निर्माण विभाग स्टॉर्म वॉटर की निकासी का प्रभारी है। वहीं, सीवर लाइनें दिल्ली जल बोर्ड के दायरे में आती हैं।
नालियां और स्टॉर्म वॉटर प्रणाली
बारिश के पानी की नालियां चार फीट गहरी होती हैं और शौचालय के अलावा अन्य स्रोतों से उत्पन्न वर्षा जल और अपशिष्ट जल को बाहर निकालने के लिए इस्तेमाल में लाई जाती हैं। स्टॉर्म वॉटर नालियां बड़ी होती हैं और अतिरिक्त बारिश और भूजल को पक्की सड़कों, पार्किंग स्थल, फुटपाथ, और छतों जैसी अभेद्य सतहों से निकालने के लिए इस्तेमाल होती हैं। सीवर लाइनें पाइपों का भूमिगत नेटवर्क हैं जो घरों के शौचालय, टब और सिंक से निकलने वाले कचरे को चैनल करती हैं।
यूं तो तीनों ही नालियां कागजों पर अलग-अलग नेटवर्क से काम करती हैं लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि ये नालियां एक-दूसरे में मिल जाती हैं।
सफाई के लिए मशीनों की कमी
आम आदमी पार्टी की पिछली दिल्ली सरकार ने सीवेज की सफाई के काम का जिम्मा अपने हाथों में लेने के लिए 200 मशीनें खरीदी थीं, जो राजधानी के सीवर की सफाई करती हैं लेकिन दिल्ली के आकार और उसकी आबादी को देखकर यह 200 सफाई मशीनें नाकाफी लगती हैं। राजधानी की सभी सीवेज लाइनों को साफ करने के लिए मशीनों पर ही निर्भर नहीं रहा जा सकता।
रिपोर्ट्स कहती हैं कि सफाई मशीनें मुश्किल से दिल्ली में कुल काम का पांच से 10 प्रतिशत हिस्सा ही संभाल पाती हैं और बाकी का काम हाथों से ही किया जाता है। राजधानी में कई ऐसे इलाकें हैं जहां बहुत ही संकरी गलियां हैं। इन गलियों में सफाई मशीनें नहीं जा सकती, ऐसे में सफाई कर्मचारियों को ही सैप्टिक टैंक में घुसकर सुरक्षा उपकरणों के आभाव में सफाई करती पड़ती है।
क्या हैं नियम?
दिल्ली में लगभग 30,000 सफाई कर्मचारी हैं, जो सीवर, सेप्टिक टैंक, सार्वजनिक शौचालय और दूसरी चीजों की सफाई करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत वाल्मीकि समुदाय से हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की साल 2021 की एडवाइजरी कहती है कि सभी सफाई कर्मचारियों को सेप्टिक टैंक/सीवर लाइनों में उतरने और सफाई करने के लिए हेलमेट, सुरक्षा जैकेट, दस्ताने, मास्क, गमबूट प्रदान सुरक्षात्मक चश्मा, टॉर्च की रोशनी के साथ ऑक्सीजन सिलेंडर प्रदान करना जरूरी आवश्यक है लेकिन इस एडवाइजरी की सरकारी एजेंसियां अनदेखी करती हैं।
सफाई कर्मचारियों के लिए आयोग का गठन
दिल्ली में सफाई कर्मचारियों के हित में काम करने के लिए सफाई कर्मचारी आयोग की स्थापना साल 2006 में की गई थी। आयोग सफाई कर्मचारियों के विकास के लगभग सभी पहलुओं को कवर करता है। आयोग संविधान और अन्य कानूनों के तहत सफाई कर्मचारियों के लिए दिए किए गए कानूनी सुरक्षा उपायों की जांच करने के साथ में उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार को उपाय सुझाता है।
इसके अलावा सफाई कर्मचारी आयोग सफाई कर्मचारियों को प्रभावित करने वाले कानूनों के मौजूदा प्रावधानों की समीक्षा करके शिकायतों पर गौर करना, उनके मामलों का स्वतः संज्ञान लेना और उनका निवारण करने के लिए कदम उठाने के लिए जिम्मेदार है।