ओडिशा में वन और पर्यावरण विभाग में अधिकारियों के लिए गाड़ियां खरीदने का मामला सुर्खियों में है। सरकारी अधिकारियों के लिए महिंद्रा की एसयूवी थार खरीदी और फिर इसके मोडिफिकेशन के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए। सरकार ने पिछले साल ही ये गाड़ियां खरीदी थी और अब जब इन गाड़ियों के कस्टमाइजेशन के खर्च की डिटेल्स सामने आई तो सरकार पर सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर लोग और विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा है कि गाड़ियों में ऐसा क्या कस्टमाइज करवाया गया, जिस पर करोड़ों रुपये का खर्च करना पड़ा। ओडिशा सरकार ने मामले को बढ़ता देख जांच के आदेश दे दिए हैं।
पिछले साल ओडिशा सरकार के वन विभाग ने फील्ड स्टाफ के लिए 7.1 करोड़ रुपये में 51 महिंद्रा थार गाड़ियां खरीदी थीं। सरकार के अधिकरियों को फील्ड में जाने के लिए इन गाड़ियों की जरूरत थी लेकिन सवाल तब उठे जब पता चला की गाड़ियों की कीमत के लगभग खर्च उनकी मोडिफिकेशन पर भी किया गया है। 7.1 करोड़ की गाड़ियों के मोडिफिकेशन का बिल 5 करोड़ बना दिया गया है। इसी खर्च पर अब बवाल हो रहा है।
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सरकार ने दिए जांच के आदेश
इस मामले के सामने आने के बाद अब सरकार भी एक्शन मोड में आ गई है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अब सरकार ने इस खरीद प्रक्रिया का स्पेशल ऑडिट कराने की बात कही है। वन एवं पर्यावरण मंत्री गणेश राम सिंघखुंतिया की ओर से साइन किए गए एक लेटर के मुताबिक, सरकार ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वाइल्डलाइफ) के ऑफिस स्पेशल ऑडिट कराने का आदेश दिया है। यह ऑडिट अकाउंटेंट जनरल डिपार्टमेंट की स्पेशल ऑडिट टीम करेगी, जिसका मकसद सरकारी खरीद और वाहनों के कस्टमाइजेशन की प्रक्रिया की जांच-पड़ताल करना होगा। पर्यावरण मंत्री ने पहले भी बताया था कि इस मामले में वित्तीय अनियमितताएं सामने आने के बाद जांच की जरूरत है और सरकार निष्पक्ष जांच करेगी।
क्या बोले अधिकारी?
जांच के आदेशों पर ओडिशा सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि ऑडिट टीम इस पूरे मामले में जांच करेगी। जांच के पहलुओं के बारे में भी उन्होंने बताया कि जांच में कुछ सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे और पता लगाया जाएगा कि सब कुछ प्रक्रिया के तहत हुआ है या नहीं।
- क्या गाड़ियों की खरीद में सही प्रक्रिया अपनाई गई है?
- क्या गाड़ी में मोडिफिकेशन कराने से पहले उसकी अनुमति ली गई थी?
- इसमें आने वाली लागत को लेकर भी पहले से अनुमति ली गई थी या नहीं?
- क्या इन सभी खर्चों के लिए फाइनेंस विभाग से अप्रूवल मिल गया था?
- कार में जो भी आइटम इंस्टॉल कराए गए, क्या उनकी जरूरत थी?
- क्या इस पूरी प्रक्रिया में कोई बाहरी एजेंसी भी शामिल थी?
इन सभी सवालों के जवाब सरकार जांच के जरिए तलाश कर रही है। अभी इस जांच के आदेश जारी किए गए हैं लेकिन जांच को लेकर कोई रिपोर्ट शेयर नहीं की गई है। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि वन विभाग की गाड़ियों को मोडिफिकेशन की जरूरत होती है लेकिन इस पर किया गया खर्च सवालों के घेरे में है।
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क्यों करवाया जाता है मोडिफिकेशन?
एक अधिकारी ने बताया कि गाड़ियों की खरीद के बाद हर गाड़ी में 21 आइटम लगाए गए हैं, जिनका कुल बिल करीब 5 करोड़ रुपये आया है। ऐसे में सभी को हैरानी हो रही कि 7 करोड़ की गाड़ी खरीदकर ऐसा क्या लगा दिया जो 5 करोड़ रुपये सिर्फ असेसरीज में चले गए। अधिकारियों का कहना है कि इस कस्टमाइजेशन को तेज पेट्रोलिंग, मॉनिटरिंग और सर्विलांस को बढ़ाने के लिए किया गया है। इन असेसरीज से अधिकारियों के समय को बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा और जंगल में शिकार व लकड़ी की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों पर भी रोक लगा जा सकेगी। इसके अलावा गाड़ी को आगजनी जैसी घटनाओं से रोकने के लिए भी तैयार किया गया है, क्योंकि ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाएं अक्सर आती हैं।
