दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ (DUSU) का चुनाव हर साल देशभर में चर्चा का विषय बन जाता है। इन चुनावों में बड़े राजनीतिक दल अपने छात्र संघ के जरिए ताल ठोकते हैं। इस साल के चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने कांग्रेस के छात्र संघ नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) को मात दी है। ABVP के आर्यन मान दिल्ली यूनिवर्सिटी के नए प्रधान बन गए हैं। वहीं NSUI के राहुल झांसला यादव ने उपाध्यक्ष पद पर जीत का परचम लहराया। ABVP सचिव पद पर कुणाल चौधरी (ABVP) और संयुक्त सचिव पद पर दीपिका झा (ABVP) ने जीत दर्ज की। चुनावी नतीजों के बाद लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि DUSU में छात्रसंघ प्रतिनिधियों की पावर कितनी है और उन्हें क्या सुविधाएं मिलती हैं।

 

छात्रसंघ चुनावों को राजनीति की नर्सरी भी कहा जाता है। देश की राजधानी में स्थिति DU में तो पूरे देश के छात्र पढ़ने आते हैं ऐसे में इसे मिनी इंडिया का चुनाव भी कहते हैं। इन चुनावों के जरिए राजनीतिक दल अपने एजेंडे देश के हर हिस्से तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। DUSU चुनाव जीत कर छात्र नेता DU की स्टूडेंट लाइफ को कुछ हद तक अपने हिसाब से चला सकते हैं। 

 

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DUSU 2025-26

DUSU का इतना क्रेज क्यों?

DUSU प्रेसिडेंट बनना सिर्फ एक यूनिवर्सिटी का प्रसिडेंट बनना नहीं बल्कि पॉलिटिकल करियर की शुरुआत माना जाता है। प्रेसिडेंट को पॉलिटिशियंस, मिनिस्टर्स से मिलने का मौका मिलता है और बडे़-बड़े नेता उनके लिए चुनाव प्रचार करने आते हैं। अगर किसी राष्ट्रीय पार्टी या संगठन से जुडे़ छात्रसंघ का नेता यह चुनाव जीत जाता है तो वह पूरे देश में अपने संगठन का प्रचार करता है। कैंपस इलेक्शन में किसी विधायक या सांसद के चुनावों की तरह मनी और मसल पावर का इस्तेमाल किया जाता है और छात्र नेताओं के लिए यह राजनीति में एंट्री से पहले की ट्रेनिंग की तरह होता है। साथ ही पूरे एक साल तक कैंपस की लाइफ पर चुने हुए नेता अपना प्रभाव डाल सकते हैं। DUSU के कई पूर्व छात्र नेताओं ने देश की राजनीति में नाम कमाया है।

क्या है पावर?

छात्रसंघ के अध्यक्ष की पावर की अगर बात करें तो उनकी पावर उनके साथ खड़े छात्र ही होते हैं। चुने हुए प्रतिनिधि होने के कारण यूनिवर्सिटी के हर एक अधिकारी को उनके साथ मिलकर काम करना होता है। अगर छात्र संघ के नेता किसी अधिकारी से कोई जानकारी मांगते हैं तो अधिकारियों को वह जानकारी उन्हें देनी होती है। हालांकि, इन सब के लिए कई बार छात्र संघ के नेता और अधिकारियों में तीखी बहस और विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिलता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ संविधान के अनुसार, छात्र संघ के नेता कई तरह के प्रोग्राम करवा सकते हैं और इन प्रोग्राम के लिए वे यूनिवर्सिटी की संपत्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी की काउंसिल के लिए चुने गए सारे प्रतिनिधियों को मीटिंग में वोट करने का अधिकार होता है। काउंसिल में सबसे बड़ा पद DUSU अध्यक्ष का ही होता है। 

 

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बजट का इस्तेमाल

दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों से हर साल एडमिशन फीस में 20 रुपये छात्र संघ के कामों के लिए चार्ज किए जाते हैं। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी भी छात्र संघ को बजट देती है। यह बजट हर साल कम ज्यादा हो सकता है लेकिन एक अनुमान के अनुसार, करीब 24 लाख रुपये DUSU का बजट होता है। इस बजट का इस्तेमाल छात्र संघ के नेता अलग-अलग कामों के लिए करना होता है और इसका पूरा हिसाब वाइस चांसलर को दिया जाता है। छात्र नेता इस बजट का इस्तेमाल प्रोग्राम करवाने और अन्य कामों के लिए कर सकते हैं। चुनावों के 15 दिन के अंदर यह बजट DUSU को मिल जाता है। 

अन्य सुविधाएं

DUSU अध्यक्ष के पास और भी बहुत सारी पावर होती हैं। वह छात्रों का चुना हुआ नेता होता है इसलिए वह छात्रों के कई काम करवाता है। फीस रिडक्शन, हॉस्टल अलॉटमेंट, एग्जाम में आने वाली दिक्कतों को हल करने के लिए वह सीध संबंधित अधिकारियों से बात कर सकता है। यूनिवर्सिटी हॉस्टल और कैंपस की कैंटीन में खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए रेड कर सकता है। अध्यक्ष  DU के कई कमेटीज का मेंबर भी होता है। अध्यक्ष को काम करने के लिए अपना ऑफिस मिलता है जहां वह छात्रों से मिल सकता है मीटिंग कर सकता है। 

 

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कैसे काम करता है प्रेसिडेंट?

DUSU प्रेसिडेंट का काम छात्रों की समस्याएं हल करना और छात्रों और यूनिवर्सिटी प्रशासन के बीच कड़ी का काम करना होता है। ल्चरल फेस्ट, स्पोर्ट्स मीट जैसे इवेंट्स प्लान करता है। अधिकारियों से बातचीत करने छात्रों के मुद्दे हल करवाता है। अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके यूनिवर्सिटी के फैसलों को प्रभावित करता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे रौनक खत्री ने कहा था कि पावर से स्टूडेंट्स हेल्प होती है और वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके छात्रों की मदद करते हैं।