दिल्ली विश्वविघालय में छात्रसंघ चुनाव के लिए प्रचार जोरों पर है। आइए ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए समझते हैं कि डूसू के चुनाव को लेकर स्टूडेंट्स के मन में क्या चल रहा है?
डूसू के चुनाव की रैली और प्रचार की तस्वीर: Photo Credit: Khabargaon
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में छात्र संघ चुनाव के ठीक पहले हम पहुंचे DU के नार्थ कैंपस, जहां चुनाव प्रचार जोरों पर है। कैंपस के गलियारों से लेकर कॉफी हाउस तक, हर जगह राजनीति और बदलाव की चर्चा सुनने को मिल रही है। छात्रों ने बातचीत में साफ कहा कि उन्हें वादों से अब थकान हो चुकी है, वे काम और नतीजे देखना चाहते हैं। कई छात्रों ने बताया कि बीते वर्षों में उनकी असली समस्याओं पर ज्यादा काम नहीं हुआ है। हॉस्टल की सुविधा अब भी सीमित है, लाइब्रेरी और लैब की व्यवस्था में अभी तक सुधार नहीं हुआ है। वहीं, मेट्रो कंसेशन कार्ड और स्कालरशिप की बातें अभी तक अधूरी पड़ी हैं। छात्रों का मानना है कि नेता चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं।
बता दें कि इस साल DUSU के चुनाव में अखिल भारतीय विघार्थी परिषद (ABVP) से आर्यन मान प्रेसिडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। वहीं, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) में प्रेसिडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में बड़ा बदलाव किया गया है। 17 साल बाद NSUI ने दोबारा एक महिला छात्रा को मैदान में उतारा है। इस बार एनएसयूआई की तरफ से जोसलीन नंदिता चौधरी डूसू के चुनाव में प्रेसिडेंट पद की उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। साल 2024-25 में NSUI के उम्मीदवार रौनक खत्री डूसू के अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे। डूसू के चुनाव का मतदान 18 सितम्बर 2025 को होगा और मतगणना 19 सितम्बर को होगी।
जब हम डीयू के नार्थ कैंपस में स्थित आर्ट फैकल्टी में पहुंचे तो हमने वहां बहुत से स्टूडेंट्स से बातचीत की, जिनमें से कुछ स्टूडेंट्स ने कहा कि यहां डीयू के कॉलेज से ज्यादा बाहर के बच्चे इलेक्शन कैंपेनिंग में आते हैं। डीयू की एक छात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा, 'बड़ी राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार, 200 से 250 रुपये खर्च करके बाहर के बच्चों को बुलाकर भीड़ इकठ्ठा करते हैं।' लड़कियों का कहना है कि अभी तक किसी भी यूनियन प्रेसिडेंट ने लड़कियों की सुरक्षा को लेकर काम नहीं किया है, ये सारे उम्मीदवार केवल पार्टी के मुद्दों में लड़कियों की सुरक्षा की बातें करते हैं, ग्राउंड लेवल पर लड़कियों की सुरक्षा पर कोई भी काम नहीं करता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र संघ चुनाव हमेशा से राष्ट्रीय राजनीति की झलक देता आया है। इस बार भी यहां का रुख बड़े राजनीतिक दलों के लिए संकेतक साबित हो सकता है लेकिन छात्रों की एक ही मांग है, वादों से नहीं, असली काम से हमें विश्वास दिलाइए। ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान बातचीत में कई छात्रों ने कहा कि वे ऐसे उम्मीदवार को वोट देंगे जो उनकी बुनियादी समस्याओं पर ध्यान दे और शिक्षा के साथ-साथ रोजगार, सुरक्षा और कैंपस के माहौल को बेहतर बनाए। जब हमने वहां की फीमेल स्टूडेंट्स से बात की तो उन्होंने बताया कि लड़कियां अपने आपको कॉलेज कैंपस में सुरक्षित नहीं महसूस करती हैं, उनका कहना है कि छात्र संघ के चुनाव प्रचार के दौरान कॉलेज में बाहर के लड़के आते हैं, जिनकी वजह से वहां रह रही लड़कियां खुद को इनसिक्योर महसूस करती हैं।
कुछ लड़कियों ने आरोप लगाया कि छात्रसंघ चुनाव के दौरान जब भी वे कहीं आती-जाती रहती हैं, तो 10 से 12 लड़के उन्हें घेर कर अपनी संबंधित पार्टी का प्रचार करने लगते हैं, जिसकी वजह से उन्हें रास्ता बदलकर, दूसरे रास्ते से घूमकर जाना पड़ता है।